काशीपुर।उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इन दिनों एक चौंकाने वाला प्रकरण सुर्खियों में है, जिसने न केवल प्रशासन को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि आम जनता के बीच भी आक्रोश और चिंता का माहौल खड़ा कर दिया है। काशीपुर में सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान संचालित करने वाले दिव्यांग दुकानदार दलजीत सिंह रंधावा ने एक कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की है, जिसमें एक उच्च पदस्थ खाद्य विभाग का अधिकारी उनसे भारी रिश्वत मांगते सुना जा रहा है। यह मामला केवल स्थानीय नहीं रह गया, बल्कि उधम सिंह नगर और नैनीताल जिले में भी जमकर चर्चा का विषय बन चुका है। दलजीत सिंह का आरोप है कि इस अधिकारी ने उनकी दुकान को निलंबित कर दिया था और पुनः बहाली के बदले उनसे 5 लाख रुपये की डिमांड की गई। इस ऑडियो के वायरल होने के बाद प्रदेश भर में हड़कंप मच गया है।
कथित बातचीत की यह ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रही है, जिसमें स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है कि संबंधित अधिकारी दलजीत सिंह से ‘दीवाली की मिठाई’ के नाम पर रकम मांग रहा है। इस बातचीत में आरोपी अधिकारी कई बार धनराशि की बात करता है, यहां तक कि एक ऑडियो में वह स्पष्ट तौर पर कहता है कि ‘पांच लाओ’, और जब दलजीत सिंह पूछते हैं कि पांच हजार? तो जवाब मिलता है, ‘पांच हजार नहीं, पांच लाख’। यह सुनकर दलजीत सिंह हंसते हुए कहते हैं कि उनके पास इतनी रकम तो दूर, उतनी संपत्ति भी नहीं है। यह पूरा मामला अब एक गंभीर और संगीन भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा है, जहां एक दिव्यांग दुकानदार से सरकारी तंत्र के लोग कथित रूप से धन वसूल रहे हैं और उसके अधिकारों का हनन कर रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण में एक और सनसनीखेज बात यह सामने आई है कि कथित अधिकारी स्वयं रिश्वत की राशि नहीं लेता था, बल्कि सरकारी वाहन के ड्राइवर को भेजकर रकम मंगवाता था। ऑडियो में दलजीत सिंह द्वारा पूछा गया है कि ड्राइवर कौन—निजी या सरकारी? जवाब मिलता है—‘सरकारी गाड़ी का ड्राइवर’। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किस स्तर तक हो रहा है। इतना ही नहीं, दलजीत सिंह जब बनवारी लाल नामक किसी अन्य व्यक्ति का कार्य कराने की बात करते हैं, तो वह अधिकारी उस व्यक्ति से भी ‘दीवाली की मिठाई’ लाने को कहता है। यह पूरे तंत्र के भीतर फैले भ्रष्ट्राचार और भयावह लालच का प्रमाण बन गया है, जिससे अब लोग खुलकर सामने आ रहे हैं।

ऑडियो क्लिप के अनुसार, अधिकारी खुद दलजीत सिंह से सस्पेंशन खत्म करने की तारीख पूछता है, जबकि यह जानकारी विभाग के पास पहले से होनी चाहिए थी। इससे यह भी साफ होता है कि भ्रष्टाचार के साथ-साथ प्रशासनिक लापरवाही भी किस हद तक व्याप्त है। अधिकारी बेहद व्याकुल और जल्दबाजी में तारीख जानने की कोशिश करता है, जिससे स्पष्ट होता है कि वह अपने साजिशन कार्य को लेकर बहुत ही असहज और संदेहास्पद मनःस्थिति में था। यह बातचीत न केवल अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि जब कोई व्यक्ति अपने हक के लिए आवाज़ उठाता है, तो किस तरह उसका उत्पीड़न किया जाता है।
दलजीत सिंह रंधावा का कहना है कि उन्होंने अब तक इस अधिकारी को ढाई लाख रुपये की राशि दे दी है, इसके बावजूद अधिकारी और अधिक रकम की मांग करता रहा। जब दलजीत सिंह की परेशानियां हद पार कर गईं, तब उन्होंने इस पूरी बातचीत को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। उन्होंने यह रिकॉर्डिंग मुख्यमंत्री पोर्टल, खाद्य सचिव तथा कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत की जनसुनवाई में भी प्रस्तुत की है। उनका कहना है कि अब वे चुप नहीं बैठेंगे और जो भी अन्याय उनके साथ हुआ है, उसके लिए न्याय की मांग करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चाई सामने लाने के लिए उन्होंने ही यह ऑडियो रिकॉर्डिंग सार्वजनिक की है, जिससे इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगे और कोई और पीड़ित न हो।
प्रदेश की खाद्य मंत्री रेखा आर्या ने इस मामले पर गंभीरता दिखाते हुए जांच के आदेश दे दिए हैं। उनका साफ कहना है कि यदि संबंधित अधिकारी दोषी पाया गया तो उसके विरुद्ध सख्त से सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट है—भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस घटनाक्रम ने राज्य सरकार की छवि पर भी सवाल खड़े किए हैं कि आखिर किस हद तक विभागीय लोग अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। वहीं, जनता अब यह मांग कर रही है कि दोषी को निलंबित ही नहीं, बल्कि कानूनी सजा भी दी जाए ताकि ऐसे लोगों को सबक मिल सके।
काशीपुर निवासी दलजीत सिंह रंधावा का मामला अब पूरे प्रदेश में एक उदाहरण बन गया है कि कैसे एक आम नागरिक अपनी हिम्मत और तकनीक के सहारे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठा सकता है। उन्होंने जिस साहस के साथ एक उच्च अधिकारी की सच्चाई उजागर की है, वह प्रशंसनीय है। अब देखना यह होगा कि शासन-प्रशासन इस गंभीर प्रकरण में कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है और पीड़ित दुकानदार को न्याय दिलाने में कितनी संवेदनशीलता दिखाता है। एक ओर जहां दलजीत सिंह ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, वहीं दूसरी ओर यह मामला प्रशासनिक ढांचे में व्याप्त सड़ांध को भी उजागर करता है।