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हाजी मोहम्मद अकरम की ऐतिहासिक जीत ने भाजपा की उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया

हाजी मोहम्मद अकरम की पांचवीं बार जीत से भाजपा को झटका, जनता ने विश्वास और विकास की दी जीत

रामनगर(एस पी न्यूज़)। नगर पालिका परिषद के चुनाव परिणाम ने 23 जनवरी को एक नया इतिहास रच दिया। इस बार हाजी मोहम्मद अकरम ने न केवल अपनी जीत को पक्का किया, बल्कि यह साबित कर दिया कि उनका जनता के बीच अडिग समर्थन है। यह उनकी चौथी बार लगातार और कुल मिलाकर पांचवीं बार जीत है, जो उनके राजनीति के प्रति गंभीरता और जनता के बीच उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाता है। अकरम की यह जीत किसी भी हाल में सामान्य नहीं है, क्योंकि उन्होंने सभी विरोधियों को करारा जवाब दिया है। वहीं, भाजपा इस चुनाव में जीत की उम्मीदें लगाए थी, खासकर नगर पालिका क्षेत्र के विस्तार के बाद, लेकिन फिर से उसकी रणनीतियां बुरी तरह विफल साबित हुईं। भाजपा के उम्मीदवार मदन जोशी का “बटोगे तो कटोगे” जैसे विवादास्पद नारों के सहारे चुनावी मैदान में उतारा गया था, लेकिन वे अपने ही पार्टी के भीतर एकजुटता नहीं कायम कर पाए। भाजपा की इस हार के पीछे की सबसे बड़ी वजह उनकी पार्टी के भीतर की फूट और बागी उम्मीदवार नरेन्द्र शर्मा की दखलंदाजी रही, जिसने भाजपा के लिए मुश्किलें और बढ़ा दीं। यह हार भाजपा के लिए न केवल एक झटका है, बल्कि पार्टी के रणनीतिक ढांचे पर गहरा सवाल भी खड़ा करती है।

कांग्रेस ने इस चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को पार्टी सिंबल नहीं दिया, जिससे कुछ निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में आ गए। इन उम्मीदवारों में भुवन पांडे प्रमुख थे, जिन्होंने भाजपा के संभावित वोट बैंक को बुरी तरह विभाजित किया। पांडे के चुनाव में उतरने से भाजपा को एक और भारी नुकसान हुआ, जबकि हाजी मोहम्मद अकरम के लिए यह मौका सोने पर सुहागा साबित हुआ। अकरम ने वोटों की ऐसी नफरत नहीं फैलने दी, बल्कि वह एकजुट होकर पार्टी के पक्ष में मतदान करने में कामयाब रहे। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अकरम की इस रणनीति का मुकाबला करने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए, और इसका परिणाम यह हुआ कि अकरम ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक ताकत और अपने जनाधार को साबित कर दिया। इस बार की चुनावी प्रक्रिया ने यह भी स्पष्ट किया कि स्थानीय मुद्दों और जनता के मुद्दों को सही तरीके से समझना और उनसे जुड़ी रणनीतियां बनाना जितना जरूरी है, उतना ही अहम यह भी है कि पार्टी के भीतर कोई फूट न हो।

अकरम की सफलता का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि मुस्लिम समुदाय ने उन्हें पहले से ज्यादा एकजुट होकर अपना समर्थन दिया। गुलर घट्टी और खताड़ी जैसे इलाकों के मतदाताओं ने बिना किसी विभाजन के अकरम के पक्ष में मतदान किया, जिससे उनकी जीत और भी पक्की हो गई। यह खासकर उन इलाकों में महत्वपूर्ण था जहां अकरम को मजबूत वोट बैंक मिला और किसी भी तरह का मतदाता विभाजन नहीं हुआ। यही कारण है कि उन्होंने इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय का एकजुटता से समर्थन हासिल करने के बाद हाजी मोहम्मद अकरम ने यह साबित कर दिया कि उनका जनाधार गहरा और स्थायी है। यह अकरम की चुनावी जीत केवल एक जीत नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन चुकी है जो दर्शाता है कि यदि नेता जनता के बीच विश्वास और समर्पण पैदा करते हैं, तो वे चुनावी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

हाजी मोहम्मद अकरम की जीत इस बात का प्रतीक बन गई है कि रामनगर की जनता उनका नेतृत्व और कार्यों पर विश्वास करती है। 20 साल पहले भी उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में वायुयान चुनाव चिन्ह के साथ जीत दर्ज की थी। उस समय भी कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के उम्मीदवारों को हराकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पहचान बनाई थी। अब पांचवीं बार अध्यक्ष बनने के साथ उन्होंने यह साबित कर दिया है कि उनका जनाधार केवल क्षणिक नहीं, बल्कि स्थायी और मजबूत है। अकरम के पास अब एक बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन उनकी छवि और राजनीति के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें जनता के दिलों में एक मजबूत स्थान दिलाया है। इस चुनाव ने भाजपा को साफ संदेश दिया है कि विकास और जनता के बीच विश्वास ही राजनीति की असली कुंजी है। भाजपा को अब अपनी आंतरिक रणनीतियों और मुद्दों को समझकर नये सिरे से काम करने की जरूरत है, ताकि वे भविष्य में फिर से चुनावी मैदान में अपनी पकड़ मजबूत बना सकें।

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