नैनीताल(एस पी न्यूज़)। उत्तराखंड के निजी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में बढ़ी हुई फीस के मामले में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इस आदेश ने छात्रों को बड़ी राहत दी है, क्योंकि कोर्ट ने शैक्षिक सत्र 2017-18 और 2018-19 के दौरान फीस में बढ़ोतरी को गैरकानूनी ठहराया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इन वर्षों में प्रवेश लेने वाले छात्रों से बढ़ी हुई फीस नहीं ली जा सकती। कोर्ट के इस आदेश से आयुर्वेदिक कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे छात्रों में खुशी की लहर दौड़ गई है, क्योंकि अब उन्हें अतिरिक्त शुल्क का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा।
यह मामला तब सामने आया जब कई छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने 2019 में हुई फीस बढ़ोतरी के खिलाफ आवाज उठाई थी। इन छात्रों ने दावा किया था कि जब उन्होंने प्रवेश लिया था, तब ट्यूशन फीस केवल 80,500 रुपये प्रति वर्ष थी, लेकिन नियामक आयोग ने 2019 में इसे बढ़ाकर 2.15 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दिया। यह बढ़ी हुई फीस शैक्षिक सत्र 2017-18 से लागू करने का निर्णय लिया गया था, जो छात्रों के लिए बहुत बोझिल था। कोर्ट ने इस फैसले को गलत मानते हुए इसे रद्द कर दिया और छात्रों को राहत दी।
हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों को छात्रों को एनओसी जारी करनी होगी, ताकि वे अपनी डिग्री प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही, विश्वविद्यालय को छात्रों के शैक्षिक प्रमाण पत्र तत्काल प्रदान करने के निर्देश दिए गए हैं। इस आदेश के बाद, छात्रों को अब अपने प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कोई रुकावट नहीं होगी, जिससे उनका भविष्य संवर सकेगा। कई छात्र जो इंटर्नशिप की प्रक्रिया में बाधित हो रहे थे, अब उन्हें अपने प्रमाण पत्र मिल सकेंगे, जिससे उनकी इंटर्नशिप की राह भी आसान हो जाएगी।
दरअसल, दून इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, सहसपुर (देहरादून) के छात्रों ने इस फीस वृद्धि को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इन छात्रों का कहना था कि जब उन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया था, तब ट्यूशन फीस 80,500 रुपये थी, लेकिन नियामक आयोग ने 2019 में इसे बढ़ाकर 2.15 लाख रुपये कर दिया। इस फैसले ने छात्रों को वित्तीय संकट में डाल दिया था और कई छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था।
नियामक आयोग के इस आदेश को चुनौती देने वाले छात्रों का तर्क था कि 2017-18 में प्रवेश के समय फीस वृद्धि का कोई जिक्र नहीं था और जब यह वृद्धि बाद में लागू की गई, तो यह उनके लिए अनुचित था। कोर्ट ने इस तर्क को सही ठहराया और छात्रों के पक्ष में फैसला सुनाया। अब छात्रों को न केवल अतिरिक्त शुल्क से राहत मिलेगी, बल्कि उन्हें अपने प्रमाण पत्र भी मिल जाएंगे, जो उनकी आगे की पढ़ाई और करियर की दिशा में अहम साबित होंगे।
हाईकोर्ट का यह फैसला छात्रों के हक में बड़ा कदम साबित हुआ है, क्योंकि इससे उनकी पढ़ाई और करियर को नई दिशा मिल सकती है। इसके साथ ही, यह आदेश भविष्य में किसी भी प्रकार की फीस वृद्धि के मामले में छात्रों के अधिकारों की रक्षा करेगा और इस तरह के मामलों में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करेगा। छात्रों के लिए यह एक बड़ा जीत है, जो अब इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं और इसे अपने भविष्य के लिए एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं।