रामनगर । टांडा मल्लू इलाके में उस दोपहर की हवाएं सिर्फ गरजती नहीं थीं, वे किसी की ज़िंदगी का सपना भी उड़ा ले गईं। नज़र भर में वो खेत, जो सुबह तक हरे गेहूं की बालियों से लहलहा रहा था, दोपहर होते-होते राख की चादर में तब्दील हो गया। मोहम्मद मुकीम नाम का एक साधारण किसान, जिसकी सांसें इस खेत से जुड़ी थीं, आज केवल सिसकियों में जवाब दे रहा है। ये वही खेत था, जहां आज कटाई का पहला दिन था, और मेहनत के महीनों की फसल तैयार खड़ी थी। महिलाएं मदद के लिए आई थीं, उम्मीदें हवा में तैर रही थीं, लेकिन उसी हवा ने बिजली की टकराती तारों से निकली एक चिंगारी को लपेटकर सीधे खेत पर दे मारा और फिर तो मानो आग ने खेत को निगलने की कसम खा ली।
आंधियों की मार और बिजली की चिंगारी से भड़की उस आग ने इतनी तेजी से सबकुछ लील लिया कि न किसी को संभलने का मौका मिला, न भागने का। मोहम्मद मुकीम के सपनों की लहरें जो अभी तक खेत में लहरा रही थीं, अचानक लपटों में तब्दील हो गईं। वहां मौजूद महिलाओं ने जैसे-तैसे जान बचाई, पर खेत नहीं बचा। जो खेत सुबह तक भविष्य का सहारा लग रहा था, वह दोपहर तक सिर्फ जलते हुए राख के ढेरों में बदल गया। अब खेत में न हरी पत्तियां हैं, न बालियांकृबस काले धब्बे और सफेद राख के टुकड़े हैं जो उस किसान की मेहनत और बदकिस्मती की चुप कहानी कह रहे हैं। आग का तांडव इतना तेज था कि न समय मिला बुझाने का, न सोचने का।
तपती ज़मीन पर गिरी हर राख की परत जैसे मोहम्मद मुकीम की बेबसी का ब्योरा थी। पांच बच्चों का पिता, जो ठेके की ज़मीन पर फसल उगाकर अपने घर का चूल्हा जलाता था, आज पूरी तरह खाली हाथ खड़ा है। उसकी आंखें बुझी नहीं हैं, लेकिन उनमें अब कोई चमक नहीं बची। उसने खुद कहाकृष्ये ज़मीन किराए पर ली थी, अब इसके बाद सब्ज़ी लगानी थी, लेकिन अब कुछ भी नहीं बचा। अब मैं किसके दरवाज़े जाऊं?ष् यह आवाज़ सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि उस पूरे वर्ग की चीख है, जो आज भी असुरक्षित बिजली तंत्र, बेरहम हवाओं और लापरवाह व्यवस्था के बीच पिस रहा है। बिजली की तारें खेत के ऊपर से गुजरती थीं, और तेज़ हवाओं में वो टकरा गईंकृफिर उसी चिंगारी ने मोहम्मद मुकीम की पूरी मेहनत को धुएं में उड़ा दिया।
वहां मौजूद महिलाओं के शब्द आज भी हवा में गूंज रहे हैं। ष्अगर हम कुछ सेकंड और रुक जाते तो शायद हमारी जान भी नहीं बचती,ष् उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा। लपटें उनके चेहरों तक पहुंच रही थीं, आग ने ऐसे झपट्टा मारा जैसे उसे किसी का लिहाज़ नहीं। वे सब खेत से भाग निकलीं, पर वह फसल तो वहीं जलती रही। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति भी उस किसान की मेहनत से रुष्ट हो गई हो। आसपास के ग्रामीण और किसान जब मौके पर पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने बुझाने की भरपूर कोशिश की, बाल्टियों से पानी डाला, कपड़े झाड़े, मिट्टी फेंकीकृपर जलती फसल की लपटें मानो कह रही थीं कि उन्हें अब रोका नहीं जा सकता।
स्थानीय लोग बिजली विभाग पर सवाल उठाने से पीछे नहीं हटे। कहा गया कि ये तारें सालों पुरानी हैं, बार-बार हवा में टकराती हैं, लेकिन न कभी बदली गईं, न मरम्मत की गई। नतीजा आज सबके सामने हैकृएक गरीब किसान का सबकुछ खाक हो गया। प्रशासन पर नाराज़गी भी ज़ाहिर की गई, और एक सुर में लोगों ने कहा कि अगर वक्त रहते ध्यान दिया जाता तो आज ये नौबत नहीं आती। हर कोई जानता है कि खेतों से गुजरती इन लचर लाइनों में मौत का पैगाम छुपा होता है, फिर भी उन्हें बदलने की किसी को फिक्र नहीं होती। और जब हादसा होता है, तब केवल बयानबाज़ी होती है।
अब उम्मीद गोविंद सिंह कार्की, अधिशासी अभियंता, बिजली विभाग के उस बयान पर टिकी है जिसमें उन्होंने कहा कि पीड़ित किसान मोहम्मद मुकीम की ओर से नुकसान का विवरण मिलने पर नियमानुसार मुआवजे की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन मुआवज़ा कब आएगा? कितना आएगा? और क्या वह उस जल चुकी उम्मीद को वापस ला पाएगा? ये सवाल आज भी वहीं, राख में दबे हुए हैं। खेत जल गया, सपने जल गए, पर व्यवस्था की चुप्पी आज भी ज्यों की त्यों है।