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हर की पौड़ी पर उमड़ा आस्था का सागर सोमवती अमावस्या पर श्रद्धा ने रचा आध्यात्म का भव्य दृश्य

हरिद्वार। पुण्यभूमि पर सोमवार को आस्था, श्रद्धा और सनातन संस्कृति का अनुपम संगम देखने को मिला। सोमवती अमावस्या के पावन अवसर पर हर की पौड़ी सहित तीर्थनगरी के सभी घाटों पर एक अलौकिक दृश्य उपस्थित हुआ, जहां लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा के निर्मल जल में डुबकी लगाकर अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु तर्पण, हवन और दान का पुण्य अर्जित किया। दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से प्रारंभ हुए इस विशेष स्नान पर्व की अवधि अगले दिन प्रातः 8रू22 बजे तक तय की गई थी, जिसमें श्रद्धालु गंगा की गोद में बैठकर केवल स्नान नहीं कर रहे थे, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं को जीवन्तता प्रदान कर रहे थे। चारों ओर मंत्रोच्चारण की ध्वनि और भक्ति की अनुभूति के साथ यह पर्व धर्म और संस्कृति की महत्ता को एक बार फिर उजागर कर गया, जिसमें हर श्रद्धालु की आंखों में अपार भक्ति का भाव स्पष्ट झलक रहा था।

नारायणी शिला की ओर श्रद्धालुओं का विशेष रुझान देखा गया, जहां पंडित मनोज त्रिपाठी के अनुसार इस दिन गंगा स्नान के साथ-साथ उस पवित्र शिला को भी स्नान कराने से विशेष पुण्यलाभ की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस पावन शिला में भगवान नारायण का हृदय निवास करता है और यहां किया गया तर्पण सीधे पितृलोक तक पहुंचकर पितरों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। सोमवती अमावस्या का योग इस बार विशेष रूप से दुर्लभ था, जिसने इस पर्व को और भी पवित्र बना दिया। इस योग का लाभ उठाते हुए श्रद्धालु न केवल गंगा स्नान में लीन रहे, बल्कि अपने कुल की परंपराओं का निर्वहन भी करते दिखे। नारायणी शिला, ब्रह्मकुंड और कुशावर्त घाट जैसे प्रमुख स्थानों पर हजारों लोगों ने अपने पितरों के नाम से विधिवत तर्पण कर, श्रद्धा और पुण्य दोनों का संगम किया।

हरिद्वार के घाटों पर जहां एक ओर वैदिक मंत्रों की गूंज ने वातावरण को पावन बना दिया, वहीं दूसरी ओर महिलाएं वट सावित्री व्रत की परंपरा निभाने में लगी रहीं। सती सावित्री की अमर गाथा को स्मरण करते हुए सुहागिनों ने वट वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा कर अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना की। यह दृश्य केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं था, बल्कि भारतीय नारी परंपरा की गहराई को भी दर्शाता था। श्रद्धालुओं ने स्नान उपरांत भगवान का स्मरण करते हुए गंगा तट पर बैठकर पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और कथा श्रवण का भी आनंद उठाया। धर्म और श्रद्धा के इस संगम में आस्था की लहरें हर ओर फैल चुकी थीं और गंगा के किनारे एक अलग ही आध्यात्मिक वातावरण बना हुआ था, जिसमें हर व्यक्ति अपने कर्मों के शुद्धिकरण की अनुभूति करता दिखा।

गंगा सेवा से जुड़े संतों और पुरोहितों ने स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति तीर्थस्थल पर आकर सच्चे मन से भगवान का स्मरण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो वहां अपवित्रता फैलाता है, वह महान दोष का भागी बनता है। यह तथ्य न केवल पुराणों में वर्णित है, बल्कि आस्था के केंद्र हरिद्वार में व्यावहारिक रूप से महसूस किया जा सकता है। श्रद्धालु जहां स्नान के साथ-साथ सफाई का भी विशेष ध्यान रखते दिखे, वहीं गंगा सेवा समितियों ने भी पूरे आयोजन को सुव्यवस्थित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूरे दिन घाटों पर पुलिस प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं की सतर्कता भी सराहनीय रही, जिससे कोई अव्यवस्था उत्पन्न नहीं हुई। यह समर्पण भाव और सेवा का अद्भुत संगम इस पर्व को और भी अलौकिक बना गया।

स्नान के उपरांत श्रद्धालुओं ने मां गंगा से सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख-शांति की कामना की और पुण्य कमाकर अपने गंतव्यों को लौट गए। हर की पौड़ी केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आस्था का वह महासागर बन चुका था, जिसकी लहरें हर अमावस्या को एक नया आयाम प्रदान करती हैं। सोमवती अमावस्या जैसे विशेष योग ने श्रद्धा का स्वरूप और अधिक भव्य बना दिया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि सनातन परंपराएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायी हैं। हरिद्वार की यह जीवंत तस्वीर न केवल धार्मिक भावनाओं का प्रतीक बनी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश भी देती रही कि आस्था की परंपरा केवल निभाई नहीं जाती, बल्कि उसे जीया भी जाता है। यह पर्व भले ही एक दिन का था, लेकिन उसकी आध्यात्मिक गूंज हर मन में लंबे समय तक बनी रहेगी।

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