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हर की पौड़ी पर आस्था की आड़ में भ्रष्टाचार का खुला बाज़ार

गंगा की गोद में पाखंड का खेल, जहां भक्ति के नाम पर चल रहा है अरबों का अवैध धंधा और प्रशासन बना है मूक दर्शक।

हरिद्वार। साँझ ढलती नहीं, जलती है कृ श्रद्धा के दीपों से नहीं, बल्कि पाखंड की आग से, जो धीरे-धीरे इस पवित्र नगरी की आत्मा को भस्म कर रही है। कभी जहां हर कण में आस्था और शांति की ध्वनि सुनाई देती थी, आज वहां का हर कोना किसी न किसी रूप में मुनाफे का अड्डा बन चुका है। हर की पौड़ी, जहां भगवान विष्णु के चरण पड़े थे, अब उन्हीं चरणों के नीचे भ्रष्टाचार, अवैध व्यापार और व्यवस्था की बेइमानी की परतें जम चुकी हैं। गंगा के किनारे की इस धरती पर अब भक्ति की नहीं, कमाई की गूंज सुनाई देती है, और नगर निगम से लेकर बड़े कारोबारियों तक की सांठगांठ ने इस पावन स्थल को एक खुले बाजार में बदल दिया है, जहां आत्मा नहीं बिकती लेकिन ईमानदारी जरूर गिरवी रख दी गई है।

चारधाम यात्रा जैसे महत्वपूर्ण और पवित्र अवसर के आते ही हरिद्वार की गलियाँ और घाट श्रद्धालुओं से भर जाती हैं, लेकिन उसी भीड़ का इस्तेमाल कर निगम और फड़ वालों का गठजोड़ खुलेआम व्यापार की ऐसी धारा बहाता है जो गंगा की स्वच्छता और श्रद्धा दोनों को निगल रहा है। हर की पौड़ी क्षेत्र में जहां गंगा आरती की दिव्यता होनी चाहिए, वहां दर्जनों अवैध फड़, प्लास्टिक की दुकानें और पॉलिथीन का व्यापार बिना किसी भय के फल-फूल रहा है। हर मोड़ पर अनधिकृत विक्रेता बैठे हैं, जो नगर निगम की निगरानी की जगह उसकी मिलीभगत से वहां टिके हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन ने इस तीर्थस्थल की पवित्रता को मोल पर रख दिया है, और अब हरिद्वार किसी पवित्र स्थल की तरह नहीं बल्कि किसी चालाक बाजार की तरह चलाया जा रहा है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने चाहे जितने भी आदेश दे दिए हों, चाहे उन्होंने जुर्माने और जेल की सजा की धमकी दी हो, लेकिन उनकी हैसियत आज एक फीके दस्तावेज से ज़्यादा कुछ नहीं रह गई है। नगर निगम की श्कार्रवाईश् इतनी सतही है कि 50,000 रुपये के जुर्माने की जगह सिर्फ 3,500 रुपये की औपचारिक वसूली कर ली जाती है और फिर मीडिया में शान से प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी कर दी जाती हैं। यह पूरी कार्यप्रणाली मानो न्यायिक आदेशों का उपहास बनकर रह गई है, जिसमें ना तो वास्तविकता है, ना ही नैतिकता, और सबसे ज़्यादा अफसोस की बात कृ इसमें ना ही गंगा का सम्मान बचा है, ना ही श्रद्धालुओं की श्रद्धा।

एक दिन की कार्यवाही, कैमरे, माइक और फोटोग्राफरों की भीड़ कृ फिर अगले ही दिन वही पुराने चेहरे, वही दुकानें, वही अवैध कारोबार। रोडीबेलवाला से लेकर सुभाष घाट और मालवीय द्वीप तक नगर निगम की कार्रवाइयाँ सिर्फ अख़बारों की सुर्खियाँ बनकर रह जाती हैं। अगले दिन इन अवैध दुकानों का पुनः उग आना यह स्पष्ट करता है कि सारी कार्रवाई बस दिखावे की है। यह शहर, जिसकी पहचान आत्मिक ऊँचाई से होती थी, अब झूठे प्रचार और दिखावटी नियमों के नीचे दम तोड़ रहा है। यह पूरा तंत्र अब एक ऐसे नाटक में बदल चुका है, जहां ‘धर्म’ की पृष्ठभूमि में ‘धंधा’ खेला जा रहा है।

हर की पौड़ी में लगाए गए 18 सीसीटीवी कैमरे इस व्यवस्था की पोल खोलने में सक्षम हो सकते थे, पर निगम ने जानबूझकर उन कैमरों की फीड गंगा संरक्षण समिति से छिपाकर रखी है। साफ है कि अवैध गतिविधियों की पोल खुलने का डर निगम को अंदर तक डरा रहा है। 2023 से लगातार मांग के बावजूद यह फीड अब तक साझा नहीं की गई, क्योंकि निगम को डर है कि अगर कैमरों की आँखें सच दिखा देंगी, तो फिर उनका सारा खेल उजागर हो जाएगा। नतीजा ये है कि गंगा की गोद में पल रही यह अवैधता अब निगरानी के नाम पर श्सुरक्षाश् नहीं, बल्कि श्वसूलीश् का साधन बन चुकी है।

हरिद्वार को ‘प्लास्टिक फ्री’ घोषित करना सरकार के लिए केवल एक कागजी तमाशा बनकर रह गया है। सच्चाई ये है कि हर गली, हर घाट, हर मोड़ पर प्लास्टिक की थैलियाँ, पॉलिथीन में लिपटी पूजा सामग्री और प्लास्टिक से बने सजावटी आइटम खुलेआम बिकते हैं। श्रद्धालु इन चीजों को खरीदकर गंगा में प्रवाहित करते हैं, सोचते हैं कि वे पुण्य कमा रहे हैं, जबकि अनजाने में वे न केवल गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं बल्कि अपने धर्म को भी चोट पहुँचा रहे हैं। हर एक थैली, हर एक फूल अब ‘पवित्रता’ नहीं, ‘पाप’ का प्रतीक बन चुका है, और इसकी जिम्मेदारी न सिर्फ उन दुकानदारों की है, बल्कि उस प्रशासन की भी है जो इसे खुला समर्थन दे रहा है।

आँखें बंद करके पूजा करना एक बात है, लेकिन आँखें बंद करके अवैधता को अनदेखा करना महापाप है। हर की पौड़ी पर चल रहे अवैध ठेके अरबों रुपये के काले कारोबार का हिस्सा हैं, जहां हर दुकान से हर महीने पाँच से दस लाख की अवैध कमाई होती है, और यह धनराशि सीधे नगर निगम के अफसरों, कर्मचारियों और यहां तक कि मेयर तक के बीच बंटती है। यह केवल एक भ्रष्टाचार की कहानी नहीं है, यह उस पवित्रता की हत्या है जिसके लिए हरिद्वार को जाना जाता है। एक तरफ भक्त गंगा में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं, दूसरी ओर वहीं उनका विश्वास पैसों की बोली पर बिक रहा होता है।

अब वक्त आ गया है जब इस पाखंड पर से परदा हटाना जरूरी है। अगर अब भी यह लचर व्यवस्था, यह झूठे वादे, और यह निगम-व्यापारी साठगांठ नहीं रुकी, तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा स्वच्छता अभियान सिर्फ एक खोखला नारा बन जाएगा, और हरिद्वार की पहचान तीर्थस्थल नहीं, एक भ्रष्ट बाजार के रूप में हो जाएगी। हर की पौड़ी को ‘नो वेंडिंग ज़ोन’ घोषित करना, सीसीटीवी फीड को सार्वजनिक करना, और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुका है। अगर इस बार भी चुप रहे, तो अगली बार गंगा आरती की लौ भी प्लास्टिक की थैली से ढँकी मिलेगी।

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