हरिद्वार। प्रदेश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान बन चुकी नदियों को संरक्षित करने और जनसहभागिता से जोड़ने की दिशा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हर की पैड़ी से ‘नदी उत्सव’ का भव्य शुभारंभ किया। इस विशेष आयोजन की शुरुआत माँ गंगा की विधिवत पूजा-अर्चना के साथ हुई, जिसमें मुख्यमंत्री ने समस्त उत्तराखंडवासियों की सुख-समृद्धि और राज्य के निरंतर विकास की कामना करते हुए आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर जुटी भारी संख्या में श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों की उपस्थिति ने इस महाअभियान को एक जनांदोलन के रूप में आकार देने की शुरुआत कर दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह उत्सव सिर्फ प्रतीकात्मक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि जल स्रोतों की रक्षा के लिए पूरे राज्य को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी अपनी प्राकृतिक धरोहरों को सुरक्षित देख सकें।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस अवसर पर स्पष्ट किया कि उत्तराखंड की नदियां केवल जल देने वाला माध्यम नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता, संस्कृति और पर्यावरणीय तंत्र की अमूल्य धरोहर हैं। गंगा, यमुना, सरयू, अलकनंदा, मंदाकिनी जैसी नदियों ने सदियों से इस राज्य की पहचान को समृद्ध किया है। ‘नदी उत्सव’ के जरिये अब सरकार नदियों की रक्षा और स्वच्छता को केवल विभागीय दायित्व तक सीमित न रखते हुए, इसे एक जनसंग्रहात्मक अभियान के रूप में स्थापित करने जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों को बचाने के लिए केवल सरकारी योजनाएं काफी नहीं, जब तक समाज का हर व्यक्ति इस प्रयास में भागीदार न बने। इसीलिए यह उत्सव राज्य के हर कोने में स्थानीय नदियों के नाम पर आयोजित किया जाएगा, ताकि जनभावनाएं सीधे इस प्रयास से जुड़ सकें।
मुख्यमंत्री ने बताया कि ‘नदी उत्सव’ के अंतर्गत न केवल नदियों के किनारे साफ-सफाई की जाएगी, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों, जागरूकता रैलियों, पौधारोपण, नदी संवाद और विद्यार्थियों की भागीदारी से इसे एक जीवंत और प्रेरणादायक अभियान बनाया जाएगा। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संगठनों को विशेष रूप से इस महाअभियान में जोड़ा जाएगा, जिससे युवाओं में जल संरक्षण की चेतना का विस्तार हो। मुख्यमंत्री ने विश्वास जताया कि यह आयोजन हर वर्ष और अधिक व्यापक रूप लेगा, और देश भर में एक मिसाल बनेगा। उन्होंने कहा कि जब समाज की शक्ति किसी उद्देश्य के साथ खड़ी होती है, तो असंभव भी संभव हो जाता है, और यह उत्सव इसी सोच का प्रतिबिंब है।

हर की पैड़ी से गंगा की लहरों को नमन कर शुरू हुआ यह कार्यक्रम पूरे राज्य में एक नई ऊर्जा लेकर आएगा। पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हमारी परंपराएं नदियों के बिना अधूरी हैं, और हमें इन नदियों को सिर्फ जल की धार नहीं, बल्कि जीवन की प्रेरणा मानना चाहिए। जब गंगा की स्वच्छ लहरें कलकल करती हैं, तो केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरा भारत आस्था से भर उठता है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम नदियों को सिर्फ पूजा के केंद्र न मानें, बल्कि उनके जीवन को भी सुरक्षित रखने का जिम्मा खुद लें। इस अभियान के जरिए प्रदेशवासी न केवल अपनी सांस्कृतिक पहचान को सहेजेंगे, बल्कि आने वाले भविष्य को भी एक स्थायी और सुरक्षित पर्यावरण देंगे।
मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि आने वाले महीनों में ‘नदी उत्सव’ को हर जिले में ले जाया जाएगा और वहां की प्रमुख नदियों के इर्द-गिर्द यह कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके लिए स्थानीय प्रशासन, पंचायतें, सामाजिक संगठन, युवाओं और स्वयंसेवकों की सहभागिता अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जाएगी। इस जनजागरूकता अभियान में भाग लेने वाले लोगों को प्रमाण-पत्रों और अन्य सम्मान के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे वे अधिक संख्या में जुड़ सकें। मुख्यमंत्री ने यह अपील भी की कि सभी नागरिक इस आंदोलन का हिस्सा बनें और नदियों को प्रदूषण मुक्त, स्वच्छ और संरक्षित रखने में अपनी भूमिका निभाएं।
पुष्कर सिंह धामी ने कार्यक्रम के समापन पर सभी प्रदेशवासियों से आह्वान किया कि इस पहल को केवल एक कार्यक्रम के रूप में न लें, बल्कि इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं। नदियों को स्वच्छ रखने का संकल्प केवल एक दिन का नहीं, यह हर दिन की आदत बननी चाहिए। अगर आज हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियों को केवल नदियों के नाम और तस्वीरें ही बचेंगी। उन्होंने कहा कि नदियों के बहाव में हमारा भविष्य बह रहा है, और अगर हम उन्हें संजोकर नहीं रख पाए, तो यह सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय आपदा का कारण बन सकता है। इसलिए अब हर नागरिक को इस अभियान का दूत बनना होगा। यही उत्तराखंड की पहचान और ध्येय है—प्रकृति और संस्कृति का संतुलन।