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हरेला पखवाड़ा में छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर दिया हरियाली और संरक्षण का संदेश

प्रकृति प्रेम की मिसाल बने छात्र-छात्राएं, वृक्षारोपण कर लिया पर्यावरण बचाने का संकल्प, हरेला पर्व बना हरित चेतना का जनआंदोलन।

रामनगर। पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक सशक्त संदेश उस समय प्रसारित हुआ जब पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामनगर में हरेला पखवाड़ा के तहत वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत की गई। उत्तराखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक परंपराओं को जीवंत बनाए रखने वाले इस महत्त्वपूर्ण पर्व पर कॉलेज परिसर में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भाग लिया और विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपे गए। इस आयोजन का उद्देश्य न केवल पेड़ लगाना था, बल्कि जनमानस में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व की भावना जागृत करना भी था। पौधों की हरियाली और छात्रों के जोश ने यह साबित कर दिया कि युवा वर्ग अब पर्यावरण की रक्षा को केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि कर्तव्य के रूप में देखने लगा है। जैसे-जैसे पौधे मिट्टी में रोपे जाते रहे, वैसे-वैसे प्रकृति के प्रति सम्मान और समर्पण की भावनाएं भी गहराती गईं।

हरेला पर्व की यह श्रृंखला राज्य स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत संचालित नमामि गंगे इकाई द्वारा आयोजित की गई, जिसमें राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) की भी सशक्त सहभागिता रही। इस सात दिवसीय अभियान की शुरुआत 16 जुलाई से हुई जो 23 जुलाई 2025 तक चलाया गया। आयोजन की गरिमा को बढ़ाते हुए प्रभारी प्राचार्य प्रो. एस.एस. मौर्य ने उपस्थित छात्र-छात्राओं को संबोधित किया और अपील की कि प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के अनुकूल आदतें अपनाए। उन्होंने कहा कि एक पेड़ लगाना केवल एक पौधा रोपना नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन और सांसों का इंतजाम करना है। उनके वक्तव्य ने छात्रों के मन में इस पर्व के प्रति और अधिक चेतना उत्पन्न की और पौधारोपण की इस प्रक्रिया को आत्मिक भाव से जुड़ने का जरिया बना दिया।

इस आयोजन में नमामि गंगे की नोडल अधिकारी डॉ. नीमा राणा और एनसीसी प्रभारी एएनओ लेफ्टिनेंट (डॉ.) डी.एन. जोशी ने हरेला पर्व की सांस्कृतिक, धार्मिक और पारिस्थितिकीय महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में हरेला केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है, जो धरती से जुड़ाव और प्रकृति के साथ सामंजस्य की सीख देता है। उनके प्रेरणास्पद विचारों ने विद्यार्थियों को यह समझाने में सफलता पाई कि प्रकृति की रक्षा करना केवल सरकार या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। वृक्षारोपण के माध्यम से उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि यदि आज एक पौधा लगाया जाए, तो कल एक जंगल बन सकता है, जो न केवल छांव देगा, बल्कि जीवन के असंख्य स्रोत भी प्रदान करेगा।

कार्यक्रम में सहभागिता करने वाले शिक्षकों और अधिकारियों की उपस्थिति ने आयोजन को और अधिक प्रभावशाली बना दिया। इस अवसर पर डॉ. पुनीता कुशवाहा, प्रो. अनीता जोशी, डॉ. लव कुश कुमार, डॉ. सुमन कुमार, डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, डॉ. मुरलीधर कापड़ी तथा मुख्य प्रशासनिक अधिकारी गोविंद सिंह जंगपांगी ने भी पौधे लगाकर अभियान में भागीदारी निभाई। इन शिक्षकों और अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी से छात्रों में एक सकारात्मक संदेश गया कि पर्यावरण संरक्षण केवल भाषणों और नारों का विषय नहीं, बल्कि व्यवहार में अपनाने योग्य कार्य है। कार्यक्रम स्थल पर जब वरिष्ठ शिक्षक पौधारोपण कर रहे थे, तब छात्रों में यह उत्सुकता और गर्व का भाव भी देखा गया कि वे अपने गुरुओं के साथ प्रकृति की सेवा में कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं।

एनसीसी के कैडेट्स ने इस कार्यक्रम को विशेष ऊर्जा और अनुशासन के साथ आगे बढ़ाया। कैडेट विक्रम जलाल, यशवंत सिंह, मुकेश रावत, आकाश रावत, पंकज सिंह और भास्कर मावड़ी की सक्रिय भागीदारी ने यह दर्शाया कि आने वाली पीढ़ी अब केवल अपने भविष्य की चिंता नहीं करती, बल्कि पृथ्वी के भविष्य के लिए भी सोचने लगी है। इन युवाओं ने न केवल पौधे रोपे, बल्कि उनके संरक्षण का भी संकल्प लिया, जिससे यह अभियान केवल एक दिवस की औपचारिकता न होकर दीर्घकालिक प्रभाव वाला प्रयास बन गया। जब युवाओं के हाथों में पौधों की जड़ें थीं, तब उनकी आंखों में एक हरित भविष्य का सपना भी देखा जा सकता था।

कुल मिलाकर यह आयोजन केवल एक परंपरा निभाने का माध्यम नहीं था, बल्कि एक विचार क्रांति की शुरुआत थी, जिसमें पर्यावरण के प्रति समर्पण, जिम्मेदारी और प्रेम तीनों भावनाएं एक साथ दिखाई दीं। पीएनजी महाविद्यालय का यह प्रयास क्षेत्र के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बनकर सामने आया, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि शैक्षिक संस्थाएं पर्यावरण संरक्षण को अपने दायित्व में शामिल कर लें, तो यह आंदोलन बन सकता है। इस वृक्षारोपण कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि उत्तराखंड की मिट्टी में केवल हरियाली उगती ही नहीं, बल्कि वहां संवेदनशीलता और जागरूकता की जड़ें भी गहराई तक फैली हुई हैं।

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