रामनगर। 8 नवम्बर को पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में जिले भर के छात्रों ने भाग लिया। इस परीक्षा का आयोजन गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार के सहयोग से हुआ था और इसका समन्वयन संस्कृत विभाग के द्वारा किया गया था। इस परीक्षा के संयोजक डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल थे, जिनकी नेतृत्व में यह परीक्षा संपन्न हुई। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि प्राचार्य प्रोफेसर एम. सी. पाण्डे और डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र के उद्घाटन भाषण से हुई। इस अवसर पर विभाग के सभी प्राध्यापकों को उनकी मेहनत और योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। वहीं, परीक्षा में जनपद में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र हरीश कडाकोटी को नगद राशि और प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के दौरान प्राचार्य प्रोफेसर एम. सी. पाण्डे ने विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की महत्ता बताते हुए कहा कि इस परीक्षा का उद्देश्य न केवल छात्रों में भारतीय संस्कृति और संस्कारों के प्रति जागरूकता फैलाना है, बल्कि उनके जीवन में आत्मविश्वास और नैतिक मूल्यों का समावेश भी करना है। उन्होंने यह भी कहा कि जब छात्र भारतीय संस्कृति के ज्ञान को आत्मसात करते हैं, तो वह अपने आचरण और व्यवहार में सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं, जो समाज के लिए अत्यंत लाभकारी है। इसके साथ ही उन्होंने हरीश कडाकोटी और अन्य सभी छात्रों को उनकी मेहनत और सफलता के लिए बधाई दी।
इस परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों को प्रमाण पत्र भी प्रदान किए गए। जिनमें प्रमुख रूप से जीतेन्द्र सिंह रावत, सपना पाण्डे, हर्षिता जोशी, रोहित खत्री, निकिता रावत, अंकिता नेगी, शीतल, विनीता रावत, दिव्या आर्या, दीक्षा जोशी, निर्मला, हिमांशी वल्दिया, गरिमा जोशी, आकांक्षा रावत, लक्ष्मी बोरा, माया, रेनू, महिमा बोरा, हिमानी सेन, साक्षी खुल्बे, सरिता धोनी और मनोज कुमार का नाम शामिल था। इन छात्रों ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी गहरी समझ और समर्पण को दर्शाया, जिसके चलते उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ।

कार्यक्रम के संयोजक और संस्कृत विभाग के प्रभारी डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल ने इस अवसर पर भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की रूपरेखा और उद्देश्य के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति और संस्कृत के महत्व को विद्यार्थियों के बीच जागरूक करना है। साथ ही, यह विद्यार्थियों को उनके सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का एक प्रयास है। इस परीक्षा के माध्यम से हम यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी भारतीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान को समझे और अपने जीवन में उसे अपनाए।
कार्यक्रम का संचालन किया और अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अन्य प्रमुख शिक्षकों और जिज्ञासु विद्यार्थियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम में शामिल अन्य शिक्षकों में चीफ प्राँक्टर प्रो. एस. एस. मौर्य, डॉ. पुनीता कुशवाहा, डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र, डॉ. लोतिका अमित, डॉ. अलका और डॉ. शंकर मंडल आदि शामिल थे। इस कार्यक्रम ने न केवल छात्रों को भारतीय संस्कृति के महत्व से अवगत कराया, बल्कि उन्हें अपने सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व महसूस कराया।
समारोह में जब मंच पर गरिमामयी उपस्थिति के साथ मुख्य अतिथि प्राचार्य प्रो. एम. सी. पाण्डे एवं वक्ता डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र ने प्राध्यापकों के उत्कृष्ट योगदान को स्मरण करते हुए उनका नाम पुकारा, तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। शिक्षा और संस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय योगदान देने वाले प्राध्यापकों का अभिनंदन करते हुए मुख्य अतिथि ने डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल, डॉ. योगेश चन्द्र, डॉ. दीपक खाती, डॉ. सुभाष पोखरियाल, डॉ. कृष्णा भारती, डॉ. नितिन ढोमणे और डॉ. मुरलीधर कापडी को ससम्मान मंच पर आमंत्रित किया। इन सभी विद्वान प्राध्यापकों को प्रशस्तिपत्र भेंट करते हुए न केवल उनकी शैक्षणिक सेवाओं की सराहना की गई, बल्कि उनके सतत प्रयासों को प्रेरणा का स्रोत बताया गया। यह सम्मान समारोह एक भावनात्मक क्षण बन गया, जहाँ शाब्दिक प्रशंसा से अधिक, वह आत्मीयता झलक रही थी जो सच्चे सम्मान में होती है।