हरिद्वार। उत्तराखंड में शासन की सख्ती अब किसी को भी नहीं बख्श रही, चाहे वह कुर्सी पर बैठा वरिष्ठ अधिकारी ही क्यों न हो। हरिद्वार नगर निगम के बहुचर्चित भूमि घोटाले ने आखिरकार वह तूफान ला दिया है, जिसकी आहट लंबे समय से महसूस की जा रही थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार को लेकर राज्य की नीति “शून्य सहनशीलता” पर टिकी है। इसी के तहत सोमवार को शासन ने एक के बाद एक 12 अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए न केवल उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, बल्कि विभागीय अनुशासनात्मक प्रक्रिया भी तेज कर दी है। इस कार्रवाई की गूंज केवल सचिवालय तक नहीं, बल्कि ज़िले के कोने-कोने तक सुनाई दी, जहां नौकरशाही की एक परत अचानक बेनकाब हो गई। इस लिस्ट में दो आईएएस अधिकारी और एक पीसीएस अधिकारी भी शामिल हैं, जिनमें जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, उपजिलाधिकारी अजयवीर सिंह और तत्कालीन नगरायुक्त वरुण चौधरी के नाम सबसे ऊपर हैं। इन्हें न सिर्फ मौजूदा पदों से हटाया गया है, बल्कि इनके विरुद्ध गहराई से जांच की शुरुआत भी कर दी गई है।
इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अगर सरकार चाह ले तो प्रशासनिक धांधलियों की जड़ों तक पहुंचकर सच्चाई को बेनकाब किया जा सकता है। वरुण चौधरी पर यह आरोप गंभीर रूप से दर्ज हैं कि उन्होंने नगर निगम की प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए ज़मीन खरीद का प्रस्ताव बिना जरूरी जांच के पास कर दिया। उनके कार्यकाल में जो निर्णय हुए, उनमें वित्तीय अनियमितता की बुनियाद ही गड़बड़ी से भरी हुई पाई गई। वहीं, जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह की भूमिका भी सवालों के घेरे में है क्योंकि उन्होंने इस ज़मीन खरीद को न सिर्फ मंजूरी दी, बल्कि प्रशासनिक अनुमति भी प्रदान कर दी, जो कि मामले की गंभीरता को और बढ़ाता है। उपजिलाधिकारी अजयवीर सिंह की ओर से जिस रिपोर्ट को शासन तक पहुंचाया गया, उसमें सत्यापन की प्रक्रियाओं की पूरी तरह अनदेखी की गई। इससे स्पष्ट होता है कि पूरे मामले में एक सुनियोजित तरीके से मिलीभगत कर घोटाले को अंजाम दिया गया।
सिर्फ उच्चाधिकारी ही नहीं, बल्कि नगर निगम से लेकर तहसील कार्यालय तक के कई अन्य अधिकारी और कर्मचारी भी इस कार्रवाई की चपेट में आए हैं। निकिता बिष्ट, जो कि वरिष्ठ वित्त अधिकारी हैं, उन्हें भी सस्पेंड कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त विक्की (वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक), राजेश कुमार (रजिस्ट्रार कानूनगो) और कमलदास (मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार) को भी शासन ने निलंबित करते हुए उनके खिलाफ विभागीय अनुशासन की कार्यवाही शुरू कर दी है। यह पहली बार नहीं जब सरकार ने इतनी बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की हो, लेकिन यह उदाहरण इसलिए महत्वपूर्ण बनता है क्योंकि इसमें उच्च स्तर के अधिकारियों को भी संरक्षण नहीं मिला। इस फैसले ने यह दिखा दिया कि अब केवल ‘पद’ का नहीं, ‘कर्तव्य’ और ‘ईमानदारी’ का मूल्यांकन होगा।
नगर निगम में तैनात प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को भी प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया गया है। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया और उनके विरुद्ध सिविल सर्विसेज रेगुलेशन के अनुच्छेद 351(ए) के तहत कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। यह सभी कदम एक ही दिशा में बढ़ रहे हैंकृयह संदेश देने के लिए कि अब प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को शुद्ध करने का समय आ चुका है। यह कार्रवाई एक चेतावनी है उन सभी अधिकारियों के लिए जो नियमों की धज्जियां उड़ाकर अपने निजी हित साधते हैं।
शासन ने अब इस पूरे प्रकरण की विजिलेंस जांच भी बैठा दी है, जिससे यह संकेत साफ है कि यह मामला अब गहराई से खंगाला जाएगा और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मंशा साफ है कि उत्तराखंड में प्रशासन का चेहरा अब पारदर्शिता और जवाबदेही के रंगों से रंगा जाएगा। इस फैसले के बाद प्रदेश भर के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और कहीं न कहीं एक सन्नाटा सा छा गया है। यह निर्णय केवल एक घोटाले की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक व्यापक संदेश है कि अब लापरवाही, भ्रष्टाचार और मिलीभगत का युग खत्म हो चुका है। जनता ने जिन उम्मीदों के साथ अपने प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपी है, सरकार अब उन्हीं उम्मीदों पर खरा उतरने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है।