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हरिद्वार में खत्म हो चुका फुटपाथ, कांवड़ यात्रा में श्रद्धालुओं की जान जोखिम में

हरिद्वार(सुरेन्द्र कुमार)। धार्मिक नगरी में जहां लाखों श्रद्धालु हर साल गंगा स्नान और विशेष रूप से कांवड़ यात्रा के दौरान दर्शन हेतु उमड़ते हैं, वहां की आधारभूत व्यवस्था इन दिनों सवालों के घेरे में है। हर की पौड़ी, मालवीय दीप, रेलवे स्टेशन से अपर रोड हर की पौड़ी तक का मार्ग, और भीमगौड़ा चौक जैसे महत्वपूर्ण स्थल अब श्रद्धालुओं के लिए संकट का कारण बन चुके हैं। इन स्थानों पर जो फुटपाथ श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुगमता के लिए बने थे, वे पूरी तरह गायब हो चुके हैं। इनकी जगह अब अवैध ठेले, अस्थायी दुकानें और स्थानीय व्यापारियों का कब्ज़ा दिखाई देता है। परिणामस्वरूप, श्रद्धालुओं को बीच सड़क से गुजरना पड़ रहा है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका कई गुना बढ़ गई है। कांवड़ यात्रा के दौरान जब हरिद्वार की ओर लाखों भक्त आते हैं, तब यहां की अव्यवस्था मानवीय संवेदनाओं और सरकारी तैयारियों पर सवाल खड़ा कर रही है।

हर की पौड़ी जो कि पूरे देश और विदेशों से आने वाले भक्तों के लिए मोक्षदायिनी गंगा की सबसे पवित्र स्थल मानी जाती है, उसके चारों ओर के मार्ग अब दुकानों और ठेलों से पूरी तरह पटा हुआ है। नतीजा ये हुआ कि पैदल चलने वालों को सड़क के किनारे चलने की बजाय बीच रास्ते से होकर जाना पड़ रहा है, जिससे वाहनों और भीड़ के बीच टकराव का खतरा हमेशा बना रहता है। नगर निगम और प्रशासन द्वारा समय-समय पर दावा किया जाता है कि कांवड़ यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता की जाएगी, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है। श्रद्धालुओं के लिए बनाए गए फुटपाथ केवल नाम मात्र रह गए हैं और जब लोग हरिद्वार पहुंचते हैं, तो उनके लिए गंगा स्नान तक का मार्ग भी चुनौती बन जाता है। इस भव्य यात्रा को लेकर प्रशासन जितनी तैयारी कागज़ों पर करता है, हकीकत में हालात उतने ही विपरीत नज़र आते हैं।

भीमगौड़ा चौक, जो कि हर की पौड़ी से कुछ ही दूरी पर स्थित है, वहां पर स्थिति और भी चिंताजनक हो चुकी है। यहां आने-जाने वाले रास्तों को चारों ओर से अतिक्रमण ने जकड़ लिया है। एक ओर यातायात का दबाव और दूसरी ओर सड़क पर दुकानदारों का साम्राज्य कृ इन दोनों के बीच फंसे श्रद्धालुओं के लिए यह मार्ग एक संघर्ष बन चुका है। विशेषकर जब कांवड़ यात्रा जैसी बड़ी धार्मिक परंपरा का आयोजन होता है, उस समय यह अतिक्रमण प्रशासनिक लापरवाही की सबसे बड़ी गवाही देता है। श्रद्धालु जो देवभूमि में शांति, भक्ति और आस्था की अनुभूति के लिए आते हैं, उन्हें यहां ट्रैफिक जाम, धक्का-मुक्की और असुविधा का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो यह स्थिति जानलेवा तक बन जाती है, जब किसी श्रद्धालु को वाहन की चपेट में आने का खतरा बना रहता है। ऐसी परिस्थिति में यह सवाल उठता है कि इतने बड़े आयोजन के दौरान क्या प्रशासन की जिम्मेदारी केवल टेंट और बैरिकेडिंग तक ही सीमित रह गई है?

हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लेकर अपर रोड तक का मार्ग, जहां से हर दिन हज़ारों यात्री हर की पौड़ी की ओर बढ़ते हैं, वहां भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। फुटपाथ पूरी तरह दुकानों में तब्दील हो चुके हैं, और हर थोड़ी दूरी पर ठेले वालों की कतार लगी हुई है। इन अतिक्रमणों की वजह से न केवल पैदल यात्रियों को परेशानी हो रही है, बल्कि एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएं भी कई बार ट्रैफिक में फंस जाती हैं। इसके बावजूद स्थानीय प्रशासन और नगर निगम की ओर से अब तक कोई ठोस और स्थायी कदम नहीं उठाया गया है। कांवड़ मेला, जो कि उत्तर भारत की सबसे विशाल धार्मिक यात्राओं में से एक है, उसके दौरान हरिद्वार में ऐसी बदइंतज़ामी न केवल प्रशासन की नाकामी दर्शाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा को कितनी प्राथमिकता दी जा रही है।

बढ़ती भीड़ और ट्रैफिक व्यवस्था की चुनौती को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि प्रशासन समय रहते स्थिति को संभाले। विशेषकर ऐसे स्थान, जहां से रोज़ाना हजारों श्रद्धालु गुजरते हैं, वहां बुनियादी ढांचे का मजबूत होना अनिवार्य है। अगर फुटपाथ जैसी मूलभूत सुविधा भी श्रद्धालुओं को उपलब्ध नहीं है, तो इसका सीधा अर्थ यह है कि प्रशासन ने कांवड़ मेले की वास्तविकता को केवल रस्म अदायगी तक सीमित कर दिया है। यह न केवल भक्ति की भावना के साथ अन्याय है, बल्कि यह श्रद्धालुओं की जान से खिलवाड़ के समान भी है। जिस हर की पौड़ी पर आस्था की ज्योति जलती है, उसी के रास्ते अगर मौत के साये में बदल जाएं, तो यह समाज और शासन दोनों के लिए चिंतन का विषय बन जाना चाहिए।

यह समय है जब नगर निगम और पुलिस प्रशासन को मिलकर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। अतिक्रमण हटाने के लिए विशेष अभियान चलाए जाएं, अस्थायी दुकानों को उचित स्थान पर विस्थापित किया जाए और श्रद्धालुओं के लिए बने फुटपाथ को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए। साथ ही इस व्यवस्था की नियमित निगरानी हो ताकि दोबारा यही हालात न बनें। वरना जिस श्रद्धा और भक्ति के साथ लोग हरिद्वार पहुंचते हैं, वह यात्रा उनके लिए तकलीफ और त्रासदी में बदलती जाएगी। और तब यह सवाल बार-बार उठेगाकृकौन देगा जवाब?

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