देहरादून। उत्तराखंड की धरती पर हरेपन की चादर फैलाने का जो सपना वन विभाग हर साल अपनी योजनाओं और मुहिमों के सहारे बुनता है, वह सपना कई बार जमीन पर आते-आते दम तोड़ देता है। लाखों-करोड़ों पौधे हर साल रोपे तो ज़रूर जाते हैं, लेकिन उनमें से कितने वाकई पेड़ बनकर धरती को संजीवनी देते हैं, यह सवाल अब वन महकमे की नीतियों और नीयत दोनों पर सवाल खड़ा करने लगा है। पौधरोपण के बाद पौधों के जीवित रहने की दर बेहद कम होना एक ऐसी सच्चाई बन गई थी, जिसे नजरअंदाज करना अब मुश्किल हो चला था। यही वजह रही कि विभाग ने अब इस पूरी प्रक्रिया को तकनीकी निगरानी के दायरे में लाने का फैसला लिया। पेड़ लगाओ, फोटो खिंचवाओ और भूल जाओ वाली पुरानी व्यवस्था को अलविदा कहने की तैयारी अब धरातल पर तेज़ी से उतारी जा रही है।
हरियाली के इस संघर्ष में पारदर्शिता और वास्तविकता लाने की ठोस पहल खुद सुबोध उनियाल के नेतृत्व में शुरू हुई है। सुबोध उनियाल, जो कि राज्य के वन विभाग के मंत्री हैं, ने इस नई सोच को दिशा दी है कि अब हर पौधा सिर्फ़ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उसकी लोकेशन, स्थिति और ग्रोथ पर निगरानी रखना विभाग की प्राथमिकता होगी। अब सेटेलाइट की नज़र और जीपीएस की ताक़त से रोपे गए हर पौधे की रिपोर्टिंग होगी। जीपीएस आधारित इस प्रणाली के तहत जहां पौधा लगाया जा रहा है, वहां उसकी सटीक लोकेशन दर्ज करनी अनिवार्य कर दी गई है। यह बदलाव विभाग के लिए केवल एक नीति नहीं, बल्कि पौधों की असल हिफाज़त की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम है, जो कागज़ी खानापूर्ति को खत्म करने की दिशा में बेहद कारगर साबित हो रहा है।
वनीकरण को लेकर जो सबसे बड़ी आलोचना सामने आती रही है, वह यह कि पौधरोपण केवल योजनाओं और आंकड़ों की होड़ में सिमट कर रह गया है। लेकिन अब तकनीक की चौकसी ने इस सड़ी-गली सोच को तिलांजलि देने की शुरुआत कर दी है। सुबोध उनियाल ने साफ़ कर दिया है कि अब कागज़ों में जंगल नहीं उगेंगे, अब हर पौधा जमीनी हकीकत में खड़ा होगा, उसकी तस्वीर होगी, उसकी स्थिति सेटेलाइट से देखी जाएगी और उसकी लोकेशन किसी मोबाइल स्क्रीन पर देखी जा सकेगी। अब झूठे दावों की कोई जगह नहीं बची है। इसका नतीजा यह है कि राज्य में वास्तविक वन क्षेत्र में इज़ाफा हुआ है और वह भी विभाग के इसी बदले रवैये की बदौलत। वन क्षेत्र के बढ़ते आँकड़े अपने आप में इस बात का प्रमाण हैं कि अगर इच्छाशक्ति हो तो पहाड़ की कठिन ज़मीन भी हरी हो सकती है।
उत्तराखंड के इस बदलाव की लहर के बावजूद यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि सारी समस्याएं खत्म हो गई हैं। हालांकि तकनीकी हस्तक्षेप ने वनीकरण की निगरानी को एक नया आयाम दिया है, लेकिन इसकी सफलता तभी पूरी मानी जाएगी जब हर पौधा पेड़ बनकर नज़र आएगा। यही वजह है कि विभाग के भीतर अभी और सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है। मरे हुए पौधों की संख्या को घटाना, नए पौधों की परवरिश की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करना और स्थानीय समुदायों को वनीकरण की इस लड़ाई में शामिल करनाकृये सब आने वाले समय में विभाग के सामने खड़े बड़े मुद्दे होंगे। अब जब एक अच्छी शुरुआत हो चुकी है, तो इसे अंजाम तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी हर उस हाथ पर है जो इस मुहिम को ज़मीन पर उतार रहा है।
सालों से उत्तराखंड की वादियों में चलती रही हरियाली की यह लड़ाई अब तकनीक के कंधों पर सवार हो चुकी है। आलोचक जो वर्षों से यह कहते रहे कि पेड़ लगाना एक ‘इवेंट’ बनकर रह गया है, उन्हें अब ठोस जवाब मिलना शुरू हो गया है। पौधरोपण की जो तस्वीरें पहले सोशल मीडिया की शोभा बढ़ाती थीं, अब वह सेटेलाइट के लेंस से परखी जा रही हैं। सुबोध उनियाल की मानें तो अब राज्य की वन नीति केवल आंकड़ों की जादूगरी नहीं, बल्कि धरती पर हरियाली के वास्तविक विस्तार की परिकल्पना बन चुकी है। यह परिकल्पना तभी सफल होगी जब हर पौधा अपने वजूद को पेड़ के रूप में साबित करेगा और जंगलों की छांव में आने वाली पीढ़ियां राहत की सांस ले सकेंगी।