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सरकारी भवन गिराने पर हरिद्वार में बड़ा एक्शन, सीडीओ आकांक्षा कोंडे के निर्देश पर दर्ज हुई एफआईआर

सरकारी भवन गिराने के दुस्साहस पर प्रशासन ने दिखाई सख्ती, सीडीओ आकांक्षा कोंडे के आदेश से दर्ज हुई एफआईआर, जांच में भू-माफिया संदेह के घेरे में।

हरिद्वार। जनपद में सरकारी जमीनों पर बढ़ते दुस्साहस अब प्रशासन की सख्ती के घेरे में आ गए हैं। विकासखंड बहादराबाद के अंतर्गत शाहपुर और शीतलाखेड़ा क्षेत्र में स्थित परिवार कल्याण उपकेंद्र भवन को अनधिकृत रूप से ध्वस्त कर दिया गया, और यह कार्य बिना किसी वैध अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के किया गया। इस गंभीर मामले ने जैसे ही तूल पकड़ा, वैसे ही मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोंडे ने न केवल इसपर संज्ञान लिया, बल्कि अत्यंत तत्परता से कार्यवाही करते हुए संबंधित धाराओं में प्राथमिकी भी दर्ज करवा दी। यह एफआईआर थाना पथरी अंतर्गत पुलिस चौकी फेरुपुर में दर्ज हुई है, जो इस बात का संकेत है कि शासन अब सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरतेगा। सीडीओ द्वारा उठाया गया यह सख्त कदम उन लोगों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी बन गया है जो सरकारी जमीनों को निजी लाभ का साधन समझने लगे थे।

प्रशासनिक कार्यवाही के बाद अब पुलिस ने भी इस मामले की जांच को तेज कर दिया है। माना जा रहा है कि जिस तरीके से यह सरकारी भवन तोड़ा गया, उसमें किसी बड़े भू-माफिया की साजिश छिपी हो सकती है। जांच अधिकारियों के अनुसार यह महज एक अवैध निर्माण हटाने की घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित तरीके से सरकारी संपत्ति को हड़पने की कोशिश है। इस मामले ने जिले में पहले से मौजूद उन तमाम घटनाओं की याद ताजा कर दी है जिनमें सरकारी जमीनों पर कब्जा करने या उन्हें अवैध रूप से गिराने के प्रयास होते रहे हैं। अब जबकि मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोंडे ने इसे गंभीरता से लेते हुए मुकदमा दर्ज करवाया है, उम्मीद की जा रही है कि इससे भविष्य में सरकारी भूमि को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों पर लगाम लगेगी और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ पत्रकार ओम गौतम फक्कड़ ने भी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना किसी सामान्य व्यक्ति का कार्य नहीं हो सकता। इसमें कहीं न कहीं किसी संगठित भू-माफिया के इशारे पर यह कार्य हुआ प्रतीत होता है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर कौन है जो सरकारी जमीनों पर गिद्ध जैसी नजरें गड़ाए बैठा है और किसकी शह पर ऐसा दुस्साहस किया गया? यह सारे पहलू पुलिस जांच के दायरे में आने चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सीडीओ आकांक्षा कोंडे की कार्यशैली इस मामले में प्रशंसा के योग्य है, क्योंकि उन्होंने बिना देर किए इस पर कानूनी कार्रवाई की और जनता को यह भरोसा दिलाया कि प्रशासन अब चुप नहीं बैठेगा।

हरिद्वार जनपद में इससे पहले भी कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जब सरकारी भवनों, कार्यालय परिसरों और भूमि पर कब्जा करने या उन्हें गिराने की कोशिश की गई है। चाहे वह वन विभाग की जमीनें हों, या शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत आने वाले भवन, कुछ लोगों ने हमेशा ही इन सरकारी संपत्तियों को अपनी निजी महत्वाकांक्षा की सीढ़ी बनाने का प्रयास किया है। बार-बार शिकायतों के बावजूद जब कार्रवाई नहीं होती थी, तो जनता में प्रशासन के प्रति असंतोष भी पनपता था। लेकिन इस बार जब सीडीओ आकांक्षा कोंडे ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए एफआईआर दर्ज करवाई है, तब जाकर एक मजबूत संदेश गया है कि अब सरकारी संपत्तियों की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता।

हरिद्वार जैसे तीर्थनगरी क्षेत्र में जहां बाहरी निवेश, शहरी विस्तार और भूमि खरीद-फरोख्त की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं, वहां प्रशासन की यह सख्ती बेहद जरूरी हो गई है। जमीनों के कारोबारी और उनके पीछे खड़े नेटवर्क किस तरह योजनाबद्ध तरीके से सरकारी भूखंडों पर नजरें गड़ाए बैठे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। अब जब अधिकारियों द्वारा त्वरित और कड़े कदम उठाए जा रहे हैं, तो इससे भविष्य में भू-माफियाओं के हौसले पस्त होंगे और सरकारी परिसंपत्तियों की रक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। इस कार्रवाई को उदाहरण बनाकर अन्य जिलों के प्रशासन को भी सतर्कता के साथ कदम उठाने की जरूरत है, ताकि पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि किसी भी कीमत पर सरकारी व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जा सकती।

इस पूरे मामले ने न केवल हरिद्वार के प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि आम जनता के बीच भी आशा की एक नई किरण जगाई है। लोग अब यह उम्मीद कर रहे हैं कि इसी प्रकार अन्य लंबित मामलों में भी कार्रवाई की जाएगी और भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ कड़े फैसले लिए जाएंगे। यह केवल एक सरकारी भवन को गिराए जाने की घटना नहीं थी, बल्कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की पहली अग्नि परीक्षा भी थी, जिसमें मुख्य विकास अधिकारी आकांक्षा कोंडे सफल साबित हुई हैं। उनके इस कदम ने यह साबित कर दिया है कि जब अधिकारी ईमानदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं, तो जनहित में बड़े बदलाव संभव होते हैं।

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