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श्रीराम संस्थान में हरेला पर्व बना पर्यावरण जागरूकता और सांस्कृतिक गर्व का अद्भुत संगम

विद्यार्थियों से लेकर अतिथियों तक हर दिल में बसी हरियाली की अलख, वृक्षारोपण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने रचा जागरूकता और परंपरा का नया इतिहास

काशीपुर। श्रीराम संस्थान का प्रांगण उस समय पारंपरिक उल्लास और संस्कृति की छांव में रंग उठा जब परिवर्तन ‘बी द चेंज’ सोशल वेलफेयर सोसायटी के सानिध्य में आयोजित हरेला पर्व को प्रकृति और विरासत की रक्षा के संकल्प के साथ अत्यंत श्रद्धा और उत्साह से मनाया गया। यह अवसर केवल एक कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि यह समस्त संस्थान के लिए पर्यावरण संरक्षण की ओर एक सामूहिक कदम था। छात्रों से लेकर शिक्षकवर्ग तक, हर कोई इस आयोजन में पूरी निष्ठा से सम्मिलित हुआ। मंच पर दीप प्रज्वलन के माध्यम से आरंभ हुआ यह उत्सव प्रतीक बना उस रौशनी का, जो हरियाली और सांस्कृतिक गरिमा को समाज में प्रसारित करने का संदेश लेकर आई। श्रीराम संस्थान की पहचान इस आयोजन के माध्यम से एक ऐसे केन्द्र के रूप में उभरी, जहाँ शिक्षा के साथ प्रकृति और संस्कृति को समर्पण का भाव भी जीवंत है।

कार्यक्रम में दीप प्रज्वलन की विधि उस पल का केंद्र बनी, जब मुख्य अतिथि राम मेहरोत्रा (प्रदेश संयोजक, सहकारिता प्रकोष्ठ व चेयरमैन, उत्तराखंड प्रादेशिक सहकारिता यूनियन) तथा विशिष्ट अतिथि पूनम मंझारिया (अध्यक्ष, परिवर्तन ‘बी द चेंज’) मंच पर पहुँचे। उनके साथ भाजपा की प्रदेश मंत्री सीमा चौहान, अभिनव अग्रवाल (उपाध्यक्ष, श्रीराम संस्थान), अर्पित अग्रवाल (सचिव, सोशल वेलफेयर एजुकेशनल सोसायटी), नीलम अग्रवाल (संयुक्त सचिव), अर्जुन सिंह (मण्डल अध्यक्ष भाजपा), श्रीमती कल्पना राणा (मण्डल अध्यक्ष भाजपा), ईश्वर गुप्ता (वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता), अजय कौशिक (प्रधानाचार्य, गोविन्द बल्लभ पंत इंटर कॉलेज), शेष कुमार सितारा (सेवानिवृत्त शिक्षक, उदयराज हिन्दू इंटर कॉलेज), अभय मंझारिया, आयुष मंझारिया, राधा चौहान, निशा शर्मा, सरिता चौहान, पूजा शर्मा सहित अनेक गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति ने समारोह को विशेष बना दिया। सभी विशिष्ट जनों का अभिनंदन पुष्पगुच्छ और स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया, जिससे पूरे आयोजन में गर्मजोशी और सम्मान का माहौल साकार हुआ।

श्रीराम संस्थान के अध्यक्ष रवीन्द्र कुमार ने अपने उद्बोधन में पर्व के महत्व को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हरेला केवल प्रकृति से जुड़ने का माध्यम नहीं, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से हम भावी पीढ़ियों को प्रकृति के साथ सामंजस्य, संवेदनशीलता और सतत विकास का संदेश दे सकते हैं। उनका यह संदेश न केवल छात्रों के लिए बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायक था। राम मेहरोत्रा ने भी अपने संबोधन में विद्यार्थियों से प्रकृति के प्रति सजग रहने की अपील की। वहीं पूनम मंझारिया ने पर्यावरणीय संकटों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि यदि आज हम नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने विद्यालय स्तर पर ऐसे आयोजनों को नियमित करने पर भी बल दिया।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला ने पूरे माहौल को भावविभोर कर दिया। छात्रों द्वारा प्रस्तुत सामूहिक गीत, पारंपरिक लोकनृत्य, और प्रेरणास्पद प्रस्तुति ‘ये कौन चित्रकार है’ ने सभी दर्शकों को अपनी संस्कृति से जुड़ने का अवसर दिया। ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि’ पर आधारित गायन व प्रदर्शन ने हॉल में उपस्थित प्रत्येक श्रोता के मन में गर्व और श्रद्धा का संचार किया। छात्रों द्वारा मंचित नाट्य प्रस्तुति में यह दर्शाया गया कि कैसे उत्तराखंड की परंपरा में हरेला केवल एक रीति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है। इस कला प्रस्तुति के माध्यम से बच्चों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि एक गंभीर सामाजिक संदेश भी पहुँचाया।

आयोजन का वह क्षण भी अविस्मरणीय बन गया जब परिसर में वृक्षारोपण अभियान का शुभारंभ हुआ। छात्रों व शिक्षकों ने मिलकर विद्यालय प्रांगण में विविध प्रकार के पौधे लगाए और उनके संरक्षण की शपथ ली। “वृक्ष लगाओ, जीवन बचाओ” जैसे नारों से गूंजता परिसर मानो हरियाली की पुकार बन गया। इस वृक्षारोपण में केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी दिखा। हर पौधा एक उम्मीद बनकर जमीन में रोपा गया, और हर हाथ उस उम्मीद को जीवंत रखने का वादा कर रहा था।

कार्यक्रम का समापन एक गहन विचार के साथ हुआ। पर्यावरण संतुलन, सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी को केंद्र में रखकर जो संदेश दिया गया, उसने उपस्थित प्रत्येक प्रतिभागी को भीतर तक प्रभावित किया। यह आयोजन केवल एक पर्व तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह उस जन-जागरण की शुरुआत बन गया, जिसमें शिक्षा, समाज और संस्कृति मिलकर एक हरित, सजग और संवेदनशील भविष्य की नींव रखते हैं। काशीपुर के श्रीराम संस्थान ने इस आयोजन के माध्यम से न केवल प्रकृति से प्रेम का परिचय दिया, बल्कि एक जागरूक नागरिक समाज के निर्माण की दिशा में भी एक सार्थक पहल की।

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