काशीपुर। मुरादाबाद रोड स्थित सूर्या रोशनी लिमिटेड में गुरुवार को हाइड्रोजन सिलेंडर फटने से हुई दर्दनाक घटना के बाद, अब पीड़ित परिवार को राहत देने के प्रयास शुरू हो चुके हैं। इस भयावह विस्फोट में जान गंवाने वाले उत्तर प्रदेश के सीतापुर निवासी श्रमिक श्यामूसिंह यादव के परिजनों को पहली बार औपचारिक तौर पर मुआवजा प्रदान किया गया। नगर निगम महापौर दीपक बाली ने सूर्या रोशनी लिमिटेड के एचआर हेड संजीव कुमार की ओर से उपलब्ध कराए गए पांच लाख रुपये के चेक को अपने कार्यालय में शोकग्रस्त पिता हरिसिंह को सौंपा। हादसे की गंभीरता और परिवार की स्थिति को देखते हुए यह कदम संवेदनात्मक और मानवीय दोनों दृष्टियों से सराहनीय माना जा रहा है। इस धनराशि से अलग कंपनी की ओर से और भी आर्थिक सहायता दी जाएगी, जिसकी प्रक्रिया अलग से पूरी की जाएगी और जिसकी पुष्टि महापौर द्वारा की गई है। मौके पर मौजूद परिवार की व्यथा और दर्द को समझते हुए महापौर ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी और अपने स्तर से हर संभव सहायता का आश्वासन भी परिजनों को दिया।
उक्त हादसे में जान गंवाने वाले श्यामूसिंह यादव की पत्नी को भी हर महीने लगभग बीस हजार रुपये पेंशन के रूप में दिए जाने की घोषणा की गई है, जो कि परिवार की भविष्य की आर्थिक स्थिति को संभालने की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। इस निर्णय से यह संकेत मिलता है कि केवल तात्कालिक सहायता ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक पुनर्वास की दिशा में भी ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। मुआवजे की यह प्रक्रिया केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि इसमें भावना, करुणा और जवाबदेही का समावेश दिखाई दिया। जिस संवेदनशीलता के साथ दीपक बाली ने इस पूरे प्रकरण को संभाला और कंपनी प्रबंधन से लगातार संपर्क में रहकर मदद सुनिश्चित की, वह निश्चित रूप से एक जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी का आदर्श उदाहरण बन गया है। इस हादसे के बाद, महापौर ने तत्काल दो बार सूर्या प्रबंधन से संवाद स्थापित किया और मृतक के परिजनों को तुरंत सहायता देने की पुरजोर मांग की, जिस पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कंपनी ने मुआवजे की पहली किस्त के रूप में पांच लाख रुपये का चेक सौंपने का निर्णय लिया।
दीपक बाली द्वारा की गई पहल का असर केवल आर्थिक मदद तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने शोकग्रस्त परिजनों के सम्मान और सुविधा का विशेष ख्याल रखते हुए शव को पूरी गरिमा के साथ एम्बुलेंस के माध्यम से सीतापुर भेजवाया, जिससे परिवार को इस दुःख की घड़ी में कम से कम प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़े। वहीं दूसरी ओर, इस मामले में सूर्या रोशनी लिमिटेड के एचआर हेड संजीव कुमार की तत्परता और जिम्मेदारी की भावना की भी सराहना की गई, जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित किया कि मुआवजे की राशि शीघ्र उपलब्ध कराई जाए। यह कदम जहां एक ओर औद्योगिक जवाबदेही का परिचायक बना, वहीं दूसरी ओर समाज और उद्योग के बीच सकारात्मक संबंधों की मिसाल भी पेश की। इस पूरे घटनाक्रम में जिस प्रकार प्रशासन, उद्योग और जनप्रतिनिधित्व ने मिलकर पीड़ित परिवार की मदद की, वह निश्चित रूप से एक अनुकरणीय उदाहरण है, जो भविष्य में ऐसी घटनाओं में सहानुभूति और उत्तरदायित्व की राह दिखाएगा।

महापौर दीपक बाली ने न केवल सूर्या प्रबंधन का आभार व्यक्त किया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि वह आगे भी मृतक के परिवार के साथ खड़े रहेंगे और उन्हें हर स्तर पर सहायता दिलाने का प्रयास जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि जो अन्य मुआवजा राशि दी जानी है, उसके लिए प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ाई जाएगी ताकि पीड़ित परिवार को यथाशीघ्र संपूर्ण सहायता प्राप्त हो सके। इस घटना ने यह भी सिद्ध किया है कि जब जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्य को संवेदनशीलता और सक्रियता से निभाते हैं, तो बड़ी से बड़ी कठिनाई को भी इंसानियत की ताकत से हल किया जा सकता है। एक तरफ सूर्या रोशनी लिमिटेड द्वारा तत्काल मदद देने का निर्णय लिया गया, वहीं दूसरी ओर नगर निगम महापौर ने पूरे प्रकरण को मानवीय दृष्टिकोण से संभालकर यह दिखा दिया कि एक संवेदनशील प्रशासनिक दृष्टिकोण किस प्रकार समाज में उम्मीद की किरण जगा सकता है।
यह घटना जितनी पीड़ादायक थी, उससे निपटने का तरीका उतना ही प्रेरणादायक और अनुकरणीय बनकर सामने आया। फैक्ट्री विस्फोट जैसी गंभीर त्रासदी के बाद जिस तत्परता और मानवीय संवेदना के साथ मदद की गई, वह समाज के लिए एक नई दिशा दर्शाती है। मृतक को तत्काल पांच लाख रुपये की सहायता, पत्नी को दी जाने वाली आजीवन पेंशन की व्यवस्था और शव को पूरी गरिमा के साथ उसके गांव तक पहुंचाने की जिम्मेदारी, ये सभी कदम केवल औपचारिकता नहीं थे, बल्कि समाज में उत्तरदायित्व और संवेदनशीलता के प्रतीक बनकर उभरे हैं। दीपक बाली की व्यक्तिगत सक्रियता और सूर्या मैनेजमेंट की त्वरित कार्रवाई ने यह साबित कर दिया कि यदि इच्छाशक्ति और इंसानियत हो, तो किसी भी त्रासदी को संवेदना और मदद में बदला जा सकता है। यह घटना अब केवल एक औद्योगिक हादसा नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और करुणा की अमिट गाथा बन गई है।