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शराब दुकान के खिलाफ महिलाओं का जोरदार आंदोलन, सरकार पर सवालों की बौछार

महिलाओं का जनआंदोलन शराब माफिया के खिलाफ गहरा विरोध, सरकार की नाकामी पर उठे सवाल, आंदोलन में उग्रता बढ़ने की संभावना, बदलाव की उम्मीद जगाई।

रामनगर। मालधन क्षेत्र में शराब की दुकान को लेकर महिलाओं का जनआंदोलन लगातार प्रगति की ओर बढ़ रहा है। महिलाओं की नाराजगी और विरोध ने इस मुद्दे को एक गंभीर आंदोलन में तब्दील कर दिया है। तीसरे दिन भी महिला एकता मंच के बैनर तले सैकड़ों महिलाएं धरने पर डटी रहीं, जिन्होंने प्रशासन और सरकार के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। यह आंदोलन अब सिर्फ एक क्षेत्रीय विरोध नहीं बल्कि एक बड़े सामाजिक मुद्दे का रूप ले चुका है। महिलाओं का कहना है कि वे अपने गांव में शराब की दुकान नहीं खुलने देंगी, और यदि उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।

धरना स्थल पर आयोजित सभा में समाजवादी लोक मंच के संयोजक मुनीष कुमार ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने उत्तराखंड में शराब माफिया की ताकत और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार की नाकामी पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की नई शराब की दुकानों को बंद करने की घोषणा भी केवल कागजों तक ही सीमित रह गई है, जबकि शराब माफिया का प्रभुत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। मुनीष कुमार ने तंज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री धाकड़ नहीं बल्कि डरपोक हैं, जो एक तरफ जनता के घर अतिक्रमण के नाम पर गिरा सकते हैं, लेकिन शराब माफिया के सामने नतमस्तक हैं।

ग्राम प्रधान पुष्पा देवी ने शराब की दुकान खोलने के खिलाफ अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की। उन्होंने जोर देकर कहा कि वे किसी भी हाल में अपने गांव में शराब की दुकान नहीं खुलने देंगी। उनका मानना था कि शराब की दुकानें खोलने से गांव की युवा पीढ़ी और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। पुष्पा देवी ने सरकार से एक मजबूत अपील की, जिसमें उन्होंने कहा कि शराब की दुकानें खोलने के बजाय, सरकार को स्कूल और अस्पतालों जैसे आवश्यक संस्थानों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उनका कहना था कि यदि सरकार गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में सुधार करने का प्रयास करती, तो यह समाज के लिए अधिक लाभकारी होता। उन्होंने चेतावनी दी कि शराब की दुकानें खोलने से कोई अच्छा परिणाम नहीं मिलेगा, बल्कि इससे समाज में नशे की लत को बढ़ावा मिलेगा, जो समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

मंजू आर्य ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए प्रशासन को चेतावनी दी कि शराब की दुकान खोलने के बजाय प्रशासन को कच्ची शराब पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने बताया कि यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि समाज को नशे से बचाए। यह सिर्फ एक शराब की दुकान की बात नहीं है, बल्कि यह समाज के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है। उनकी बात में गहरी चिंता थी, क्योंकि उनका मानना था कि इस सरकार के कारण ही समाज में नशे की लत बढ़ रही है।

आनंदी ने इस आंदोलन को और भी मजबूती प्रदान करते हुए सरकार की नीतियों पर तीखा सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि अगर स्कूली बच्चे कच्ची शराब और नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं, तो क्या सरकार अंग्रेजी शराब को इसका विकल्प बताकर अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है? उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह सरकार की नाकामी को छुपाने का प्रयास है, जो अपने कार्यों में असफल हो चुकी है। आनंदी ने चेतावनी दी कि शराब की दुकानों को खोलकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है, जो समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक गलत कदम है और सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि नशे की समस्या को कैसे सुलझाया जाए, न कि और अधिक शराब की दुकानों के माध्यम से स्थिति को और बिगाड़ा जाए।

भगवती ने सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए सवाल उठाया कि यह भाजपा का कैसा रामराज्य है। उन्होंने कहा कि जनता अपनी मूलभूत जरूरतों, जैसे इलाज और अस्पताल की सुविधाओं की मांग कर रही है, लेकिन सरकार उन्हें शराब के कारोबार से जोड़ने की कोशिश कर रही है, जो बेहद चिंताजनक है। भगवती ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इस तरह की नीतियां समाज के भले के बजाय उसकी कमजोरियों को और बढ़ावा देती हैं। उनका मानना था कि सरकार की प्राथमिकताएं पूरी तरह से गलत दिशा में जा रही हैं, जबकि उसे जनता की असली समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए था। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का यह कदम जनता के विश्वास को कमजोर करने वाला है और इससे समाज में नशे की समस्या और बढ़ सकती है, जो भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

महिलाओं का आरोप है कि सरकार उनकी आवाज को नजरअंदाज कर रही है और यही कारण है कि वे आंदोलन के रास्ते पर चल पड़ी हैं। उनका कहना है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और तेज होगा। महिलाओं ने सरकार को चेतावनी दी है कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगी और आने वाले समय में आंदोलन की नई रणनीति की घोषणा की जाएगी। धरने को उपपा नेता सुनील आनंदी, पुष्पा, सीता, सरस्वती जोशी, कौशल्या, पूजा, रजनी, गोदुली, सुनीता, विनीता, सरिता और नंदी ने भी संबोधित किया और इस आंदोलन को और बढ़ाने का संकल्प लिया।

मालधन क्षेत्र में इस जनआंदोलन ने अब राजनीति की सीमाओं को पार कर लिया है और यह मुद्दा एक बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष का रूप लेने की दिशा में बढ़ रहा है। महिलाएं अब केवल अपने गांव में शराब की दुकानों के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे समाज के भविष्य के लिए आवाज उठा रही हैं। उनका संघर्ष सिर्फ शराब के कारोबार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है। महिलाएं इस आंदोलन के जरिए यह संदेश देना चाहती हैं कि समाज की बेहतरी के लिए उन्हें अपनी भूमिका निभानी होगी। अगर यह आंदोलन इसी तरह जारी रहा, तो यह केवल शराब की दुकानों के विरोध तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह एक बड़ा सामाजिक संघर्ष बन जाएगा, जो समाज में व्याप्त नशे, अपराध और असमानताओं के खिलाफ होगा। यह आंदोलन समाज की बेहतर दिशा में एक निर्णायक मोड़ ला सकता है।

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