रामनगर/पाटकोट। सोमवार का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, जब गांव की धरती पर शराब के खिलाफ गूंजे नारों ने सत्ता और प्रशासन दोनों को झकझोर दिया। यह कोई सामान्य विरोध नहीं था, बल्कि जनआक्रोश का ऐसा विस्फोट था जिसमें महिलाएं, पुरुष, युवा और बुजुर्ग सब एक सुर में बोलते दिखेकृष्या तो शराब हटेगी, या हम पीछे नहीं हटेंगे।ष् गांव के कोने-कोने से उमड़े लोगों ने सड़कों को आंदोलन का मंच बना डाला और अपने दृढ़ संकल्प से साबित कर दिया कि अब पाटकोट नशे के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने को तैयार है। इसी उबाल में जब वत्सल फाउंडेशन की सचिव और देशभर में अपनी निर्भीक सामाजिक सक्रियता के लिए जानी जाने वाली श्वेता मासीवाल मौके पर पहुंचीं, तो आंदोलन को नई ताकत और दिशा मिल गई। उन्होंने मंच से सरकार को दो टूक शब्दों में चेतायाकृष्यदि प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाया, तो हम न्यायालय तक जाएंगे और इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद करेंगे।ष्
धरने के बीच जब रामनगर की आबकारी अधिकारी मीनाक्षी टम्टा पाटकोट पहुंचीं, तो लोगों का आक्रोश देखने लायक था। वहां उपस्थित सैकड़ों ग्रामीणों ने एकजुट होकर साफ शब्दों में कह दिया कि ष्हमें शराब नहीं चाहिए, हमारे गांव में नशे का व्यापार नहीं चलेगा।ष् प्रशासन को जो संदेश मिलना था, वह बहुत स्पष्ट थाकृअब किसी भी स्थिति में गांव की शांति, संस्कृति और भविष्य को शराब के धंधे की भेंट नहीं चढ़ाया जाएगा। इस बीच थोड़ी देर बाद रामनगर के तहसीलदार कुलदीप पांडेय भी मौके पर पहुंचे। उन्होंने लोगों की बात सुनी और श्वेता मासीवाल समेत आंदोलन कर रही महिलाओं को आश्वासन दिया कि इस पूरे मसले की रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारियों तक भेजी जाएगी और शीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
प्रशासन के इस आश्वासन से आंदोलनकारियों ने भले थोड़ी राहत महसूस की हो, लेकिन आंदोलन के तेवर कम नहीं हुए। इसी दौरान एक ऐसा घटनाक्रम हुआ, जिसने आंदोलन को और मजबूती दीकृजिस व्यक्ति ने अपनी दुकान शराब बिक्री के लिए किराए पर दी थी, उसने भारी सामाजिक दबाव और जनविरोध को देखते हुए अब दुकान न देने की बात कह दी। यह इस आंदोलन की पहली बड़ी सफलता मानी जा सकती है, जिसने प्रशासन और सरकार को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब सिर्फ निर्णय नहीं, जनसहमति जरूरी है। लोगों की चेतना और एकता ने साफ कर दिया कि कोई भी फैसला थोपना अब संभव नहीं होगा।
श्वेता मासीवाल ने सभा को संबोधित करते हुए साफ कहा कि यह आंदोलन केवल शराब की दुकान के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह पूरे पहाड़ी क्षेत्र को नशे से बचाने की लड़ाई है। उन्होंने कहा, “हम किसी भी हालत में अपने गांव, अपने बच्चों और अपने समाज को इस दलदल में नहीं गिरने देंगे। अगर सरकार और प्रशासन ने अपनी आंखें मूंदे रखीं, तो हम हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे।” उन्होंने लोगों को यह भी समझाया कि जिस जनप्रतिनिधि को आप वोट देते हैं, उससे सवाल करना आपका हक है। अब समय आ गया है जब लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जवाबदेही तय करनी होगी।
इस पूरे आंदोलन में गांव के लगभग हर वर्ग और हर क्षेत्र से लोगों ने भाग लिया। बड़ी संख्या में महिलाएं मोर्चे पर आगे थीं, जिनके चेहरे पर आत्मविश्वास और आंखों में भविष्य की चिंता थी। इनमें बबीता बिष्ट, नरेंद्र सिंह बिष्ट, ग्राम प्रधान मनमोहन पाठक, बीटीसी मेंबर भावना त्रिपाठी, बीजेपी नेता महेंद्र सिंह मेहरा, पूनम रावत, गोपाल सिंह कुर्या, अंजलि बॉस, गीता देवी, गौरव जोशी, चंपा देवी, मोहनी देवी, नीतू देवी, रेनू तिवारी, गीता काश्मीरा, पूनम काश्मीरा, बचौली देवी, लक्ष्मण सिंह लुधियाल, कमल सिंह तड़ियाल, चंद्र तिवारी, कमल नेगी, प्रियांशु तिवारी और दीपा पपने जैसी शख्सियतें शामिल थीं। इन सभी ने अपनी उपस्थिति से आंदोलन को मजबूती दी और यह दर्शा दिया कि यह सिर्फ कुछ लोगों की नहीं, बल्कि पूरे गांव की लड़ाई है।