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वीरान पड़ा करोड़ों का कन्वेंशन सेंटर सरकारी उदासीनता या भ्रष्टाचार का नया उदाहरण

सरकारी वादे धरे रह गए, करोड़ों की लागत से बना कन्वेंशन सेंटर झाड़ियों में तब्दील, जनता ने पूछा – विकास का सपना या पैसा बर्बाद?

रामनगर। कभी विकास की नई इबारत लिखने के सपने के साथ तैयार किया गया रामनगर के सांवल्दे क्षेत्र का कन्वेंशन सेंटर आज वीरान पड़ा है। पांच करोड़ रुपये की लागत से बने इस केंद्र की दीवारें अब झाड़ियों से घिरी हुई हैं, और इसके भवन खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। सरकारी दावों और वादों के बावजूद यह प्रोजेक्ट आज तक उपयोग में नहीं आया। सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा कौन सा कारण था, जिसने इस बहुप्रतीक्षित परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया?

साल 2021 में उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस कन्वेंशन सेंटर का उद्घाटन किया था। इसे राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों, कॉर्पाेरेट मीटिंग्स और सेमिनार्स के लिए उपयोग में लाया जाना था। योजना यह भी थी कि इस प्रोजेक्ट से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन, आज हकीकत यह है कि चार साल बीत चुके हैं और यह शानदार प्रोजेक्ट एक बार भी उपयोग में नहीं लाया गया।

अब यह कन्वेंशन सेंटर किसी भूतहा इमारत की तरह खड़ा है, जहां सिर्फ उदासीनता और सरकारी लापरवाही की गूंज सुनाई देती है। करोड़ों रुपये खर्च कर बनाई गई यह भव्य इमारत अब झाड़ियों और जंगली घास से ढकी पड़ी है, लेकिन सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं। सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक चुनावी स्टंट था? उद्घाटन के समय बड़े-बड़े वादे किए गए थे, लेकिन हकीकत यह है कि इसके संचालन और रखरखाव के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। अगर सरकार वास्तव में जनता और विकास के बारे में गंभीर होती, तो यह आज वीरान न पड़ा होता। आखिर जनता के टैक्स का पैसा कब तक यूं ही बर्बाद होता रहेगा? क्या सरकार इस पर कोई जवाबदेही लेगी या इसे भी भुला दिया जाएगा?

रामनगर के स्थानीय लोग और राज्य आंदोलनकारी इस प्रोजेक्ट पर सरकार की निष्क्रियता को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक और सरकारी नाकामी का उदाहरण है, जहां जनता के पैसों को बर्बाद किया गया। करोड़ों रुपये की लागत से बना यह केंद्र आज उपयोग में आने के बजाय जंगल में तब्दील हो गया है। स्थानीय लोगों को उम्मीद थी कि यह प्रोजेक्ट क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा, लेकिन अब यह सरकार की उदासीनता और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया है।

राज्य आंदोलनकारी प्रभात ध्यानी ने इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह सरकार की घोर लापरवाही और उदासीनता का उदाहरण है। करोड़ों रुपये खर्च कर बनाया गया रामनगर का कन्वेंशन सेंटर आज जंगल में तब्दील हो चुका है। सरकार और प्रशासन की बेरुखी ने इसे पूरी तरह बेकार कर दिया है, जबकि इसे स्थानीय लोगों और पर्यटन उद्योग के लिए एक बड़े अवसर के रूप में विकसित किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि यदि सरकार वास्तव में विकास के लिए प्रतिबद्ध होती, तो इस परियोजना को संचालित करने और बनाए रखने की ठोस रणनीति पहले से तैयार की जाती। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। अब यह सवाल उठता है कि क्या यह महज एक चुनावी स्टंट था? क्या यह परियोजना सिर्फ पैसों की बर्बादी और नेताओं के फोटो सेशन के लिए शुरू की गई थी? ध्यानी ने कहा कि सरकार को तुरंत इस पर संज्ञान लेना चाहिए और ठोस कदम उठाने चाहिए। अगर इस पर जल्दी कोई निर्णय नहीं लिया गया, तो यह पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो जाएगा, और जनता का करोड़ों रुपया व्यर्थ चला जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द इस पर ध्यान नहीं दिया, तो आंदोलन को तेज किया जाएगा और सरकार को जनता के सवालों का जवाब देना होगा।

जब इस बारे में जिला पर्यटन अधिकारी अतुल भंडारी से सवाल किया गया, तो उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि इस कन्वेंशन सेंटर के संचालन के लिए पहले भी टेंडर निकाले गए थे, लेकिन कोई भी आवेदक नहीं आया। अब दोबारा टेंडर की प्रक्रिया शुरू की जा रही है, ताकि इसे उपयोग में लाया जा सके।

यह बयान यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी महकमे ने इस योजना को लेकर कोई ठोस प्रयास ही नहीं किए। जब इतनी बड़ी परियोजना को अमलीजामा पहनाया गया, तो उसके सुचारू संचालन की जिम्मेदारी भी सरकार की ही बनती थी।

रामनगर के लोगों का कहना है कि अगर सरकार को इस परियोजना का संचालन ही नहीं करना था, तो फिर इस पर करोड़ों रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी? इससे अच्छा तो यह होता कि इस बजट का इस्तेमाल किसी अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्य में किया जाता। स्थानीय निवासी इस बात से भी नाराज हैं कि नेताओं ने उद्घाटन के दौरान बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन अब कोई इस प्रोजेक्ट को देखने तक नहीं आ रहा। स्थानीय निवासी अजय सिंह का कहना है कि अगर यह कन्वेंशन सेंटर शुरू हो जाता, तो स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता, पर्यटन को बढ़ावा मिलता और रामनगर के विकास को एक नई दिशा मिलती। लेकिन सरकार ने इसे खुली आंखों से बर्बाद होने दिया।ष्

अब सवाल यह है कि क्या इस बार सरकार इस प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस कदम उठाएगी? या फिर यह भी सरकारी फाइलों में गुम हो जाएगा? अगर सरकार इस परियोजना को फिर से शुरू करना चाहती है, तो कब तक और कैसे? क्या सिर्फ टेंडर निकालना पर्याप्त होगा, या सरकार खुद इसकी जवाबदेही लेगी?

सरकार की योजनाओं का हश्र अक्सर यही होता है – करोड़ों रुपये लगते हैं, भव्य उद्घाटन होते हैं, अखबारों में बड़ी-बड़ी हेडलाइंस बनती हैं, लेकिन फिर सब भुला दिया जाता है। यह कन्वेंशन सेंटर भी इसी कहानी का एक और उदाहरण बनता जा रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस बार सरकार इस योजना को फिर से पटरी पर लाने के लिए गंभीरता दिखाएगी, या फिर यह केंद्र हमेशा के लिए वीरान पड़ा रहेगा?

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