रामनगर। बन विश्राम भवन, रामनगर की पावन धरती आज उस सेवा भावना की मिसाल बन गई जब वन्यजीवों की रक्षा में समर्पित कर्मियों के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें एक साथ तीन मजबूत नाम—कार्बेट टाइगर रिजर्व, द दून स्कूल ओल्ड बॉयज सोसाइटी (The DSOBS) और के०वी०आर० अस्पताल, काशीपुर—ने एक साझा लक्ष्य के लिए हाथ मिलाया। सुबह आठ बजे से लेकर शाम छह बजे तक चले इस चिकित्सा सेवा महाकुंभ ने वन विभाग के उन नायकों को समर्पित श्रद्धांजलि दी जो अपनी जान जोखिम में डालकर जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा में दिन-रात तैनात रहते हैं।
रामनगर के बन विश्राम भवन में आयोजित इस गरिमामय चिकित्सा शिविर का उद्घाटन मा० विधायक दीवान सिंह बिष्ट एवं निदेशक डॉ० साकेत बडोला द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिन्होंने इस पहल को केवल एक औपचारिक आयोजन न मानकर इसे एक मानवीय कर्तव्य और वन रक्षकों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक बताया। इस शिविर में वन विभाग के कर्मचारियों, उनके परिजनों, पंजीकृत नेचर गाइडों और जिप्सी चालकों के लिए संपूर्ण सम्मान और संवेदनशीलता के साथ निःशुल्क परामर्श, दवाएं और जरूरी जांचें उपलब्ध कराई गईं। चिकित्सा सेवाओं की इस सुलभता ने वनकर्मियों को न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की प्रेरणा दी, बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें एक नया संबल प्रदान किया। यह शिविर उन गुमनाम नायकों को समर्पित रहा, जो जंगलों की सुरक्षा में दिन-रात बिना रुके डटे रहते हैं और जिनकी सेहत अब प्राथमिकता बन चुकी है।

रामनगर की फिजाओं में जब उम्मीद की किरणें जागीं, तो बन विश्राम भवन में आयोजित इस दिवसीय स्वास्थ्य शिविर में वनकर्मियों और उनके परिजनों की उपस्थिति ने इसे एक जन आंदोलन में बदल दिया। आंखों की रोशनी से लेकर रक्तचाप, शुगर, नाड़ी दर, शरीर का तापमान, नाक-कान-गला और महिलाओं की विशेष स्वास्थ्य जांच तक, हर व्यक्ति को एक सम्पूर्ण चिकित्सा सेवा का अनुभव मिला। फील्ड स्टाफ, दैनिक श्रमिक, नेचर गाइड और जिप्सी चालकों के लिए यह शिविर किसी संजीवनी से कम नहीं रहा, जहां उन्हें न केवल विशेषज्ञ डॉक्टरों से परामर्श मिला, बल्कि मुफ्त दवाइयों का वितरण भी हुआ। इस शिविर में कुल 530 से अधिक लोगों की जांच की गई जिसमें 117 फील्ड स्टाफ, 83 फॉयरवॉचर, 32 नेचर गाइड, 100 जिप्सी चालक और 173 वनकर्मियों के परिवार शामिल रहे। इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए तो संरक्षण कार्य की गुणवत्ता भी कई गुना बेहतर हो सकती है।

दीवान सिंह बिष्ट ने अपने वक्तव्य में जो बात कही, वह हर श्रोता के दिल में उतर गई—“वन्यजीवों की रक्षा तभी संभव है जब हमारे रक्षक, यानि वन कर्मी, खुद स्वस्थ हों।” उन्होंने इस शिविर को एक संवेदनशील पहल बताया और डॉ० साकेत बडोला, के०वी०आर० अस्पताल और द दून स्कूल ओल्ड बॉयज सोसाइटी (The DSOBS) के प्रयासों को सराहनीय और अनुकरणीय बताया। उनके अनुसार, यह महज चिकित्सा शिविर नहीं था बल्कि एक सामाजिक क्रांति थी जिसमें स्वास्थ्य को अधिकार के रूप में देखा गया। वहीं डॉ० साकेत बडोला ने इस अवसर पर कहा कि फील्ड में कार्यरत वनकर्मी अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा कर बैठते हैं और यह शिविर उन्हें उनकी सेहत की ओर लौटने का सशक्त माध्यम है। उन्होंने जनता से अपील की कि ऐसे शिविरों में अधिक से अधिक लोग भाग लें और इस सेवा को जनांदोलन का रूप दें।

The DSOBS से जुड़े शिवेन्द्र सिंह ने जब यह बात कही कि वन संरक्षण तभी टिकाऊ होगा जब वन रक्षक स्वस्थ रहेंगे, तो उनकी बात हर किसी को झकझोर गई। उन्होंने घोषणा की कि भविष्य में भी इसी तरह के और निःशुल्क शिविर आयोजित किए जाएंगे ताकि कार्मिकों की सेवा भावना को और ऊर्जा मिल सके। कार्यक्रम की सफलता का श्रेय उन सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी जाता है जो इस आयोजन में तन-मन से जुटे रहे। उपस्थित अधिकारियों में दीवान सिंह बिष्ट, डॉ० साकेत बडोला, प्रकाश चन्द्र आर्या, दिंगथ नायक, राहुल मिश्रा, अमित ग्बासीकोटी, किरन शाह, अंकित बडोला, प्रकाश चन्द्र हर्बोला, उमेश आर्या समेत कई नाम शामिल थे जिन्होंने अपने नेतृत्व और सहभागिता से इस आयोजन को नई ऊंचाइयां दीं। कुल मिलाकर यह शिविर एक ऐसा अनुभव बन गया जिसे वन विभाग के कर्मचारी और उनके परिवारजन न केवल याद रखेंगे बल्कि भविष्य के लिए प्रेरणा भी लेंगे।