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वक्फ भूमि की फसल नीलामी को लेकर गरमाई हलचल, नौ अप्रैल को लगेंगी बोली

ग्राम धीमरखेड़ा की वक्फ ज़मीन पर खड़ी गेहूं की फसल की नीलामी प्रक्रिया को लेकर तहसील परिसर में दिखेगा जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा

काशीपुर। एक बार फिर सरकारी प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक नीलामी को लेकर हलचल तेज हो गई है। वक्फ की बहुचर्चित भूमि पर खड़ी गेहूं की फसल की नीलामी अब तय समय पर नौ अप्रैल को तहसील परिसर में संपन्न होगी। इस पूरी प्रक्रिया को लेकर प्रशासनिक हलकों से लेकर स्थानीय स्तर पर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। मस्जिद काजीबाग काशीपुर से संबद्ध वक्फ संख्या 14 की भूमि पर उगाई गई यह फसल अब विधिवत रूप से बोली के ज़रिए नए मालिक के हाथों में जाएगी। उल्लेखनीय है कि यह फसल ग्राम धीमरखेड़ा स्थित कृषि भूमि खसरा संख्या 84/4 मि०, रक्वा 3.44 हेक्टेयर क्षेत्र में खड़ी है और यह पूरी भूमि वक्फ बोर्ड के अधीन है।

उत्तराखण्ड वक्फ बोर्ड, देहरादून की ओर से जारी आदेश संख्या 1496/उ.व.बोर्ड/14 काशीपुर/2024-25 दिनांक 22 मार्च 2025 के अनुसार इस नीलामी की अनुमति दी गई है, जिसे उपजिलाधिकारी काशीपुर द्वारा आदेश संख्या 792/व.वै.सहा./2025 दिनांक 24 मार्च 2025 के तहत पुष्टि भी कर दी गई है। इसके क्रम में गठित समिति अब नौ अप्रैल को प्रातः 11 बजे तहसील परिसर में इस फसल की खुली बोली कराने जा रही है। इच्छुक बोलीदाता को मौके पर समय से पहुंचकर भाग लेना होगा और अपनी बोली लगानी होगी। यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ संपन्न की जाएगी ताकि किसी प्रकार की प्रशासनिक या कानूनी खामी न रह जाए।

इस सार्वजनिक नीलामी में भाग लेने वाले प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को बोली लगाने से पहले कुछ जरूरी शर्तों को पूरा करना होगा। बोलीदाता को अपनी चल और अचल संपत्तियों से संबंधित प्रमाण पत्र तहसील नाजरात कार्यालय में जमा करने होंगे, जो उसकी पात्रता को प्रमाणित करेंगे। बिना इन दस्तावेजों के कोई भी व्यक्ति बोली में हिस्सा नहीं ले सकेगा। इसके अतिरिक्त, बोली से पहले हर प्रतिभागी को 20,000 रू (बीस हजार रुपए) की जमानत राशि तहसील नाजरात में जमा करनी अनिवार्य होगी। यह राशि बोली की प्रक्रिया के दौरान गारंटी के रूप में काम करेगी। नीलामी के बाद सभी असफल बोलीदाताओं को यह राशि लौटा दी जाएगी, जबकि सफल बोलीदाता को यह राशि समायोजित कर दी जाएगी।

बोली लगाने वाले को यदि वह उच्चतम बोलीदाता बनता है, तो तुरंत ही बोली की कुल राशि का एक चौथाई भाग तहसील नाजरात में जमा करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी और दोबारा नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। यह नियम न केवल प्रक्रिया को अनुशासित बनाता है, बल्कि इच्छुक बोलीदाताओं को भी गंभीरता से सोचने को प्रेरित करता है। सफल बोलीदाता को शेष तीन-चौथाई रकम तब तक जमा करनी होगी जब तक वह खेत से गेहूं की कटाई शुरू नहीं करता। कटाई की अनुमति तब ही दी जाएगी जब पूरी धनराशि जमा हो चुकी हो।

इस पूरी नीलामी प्रक्रिया में उपजिलाधिकारी काशीपुर को अंतिम अधिकार दिया गया है कि वे नीलामी को स्वीकृति दें या अस्वीकार करें। यह प्रशासनिक नियंत्रण इसलिए आवश्यक है ताकि किसी प्रकार की अनियमितता या विवाद की स्थिति न उत्पन्न हो। इससे एक ओर जहां वक्फ संपत्ति का उचित मूल्यांकन होगा, वहीं स्थानीय स्तर पर पारदर्शिता और भरोसे का माहौल भी बनेगा। ऐसे कदम आमजन में यह भरोसा जगाते हैं कि शासन-प्रशासन धार्मिक व संवेदनशील संपत्तियों के प्रबंधन में पूरी सजगता और ईमानदारी से कार्य कर रहा है।

इस नीलामी को लेकर क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। किसान वर्ग से लेकर व्यापारिक वर्ग तक सभी की नजरें इस प्रक्रिया पर टिकी हुई हैं। कुछ लोग इस भूमि की उपजाऊ क्षमता और सामरिक स्थिति के कारण इसे एक बड़ा अवसर मान रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसे धार्मिक दृष्टिकोण से भी देख रहे हैं कि वक्फ संपत्तियों का इस्तेमाल नियमों के तहत और सामाजिक भलाई के लिए हो रहा है। नीलामी को लेकर गठित समिति भी पूरी तैयारी में जुटी हुई है ताकि 9 अप्रैल को सारी प्रक्रिया बिना किसी व्यवधान के पूरी हो सके।

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