spot_img
दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए. - महात्मा गांधी
Homeउत्तराखंडलोकतंत्र पर खतरा! नए विधेयक से वकीलों की स्वतंत्रता होगी खत्म, जनता...

लोकतंत्र पर खतरा! नए विधेयक से वकीलों की स्वतंत्रता होगी खत्म, जनता के अधिकार भी दांव पर: एडवोकेट सौरभ शर्मा

वकीलों की आज़ादी पर सरकार का हमलारू नया कानून न्याय प्रणाली को जकड़ने की साजिश?

काशीपुर(एस पी न्यूज़)। देशभर में अधिवक्ताओं की हड़ताल चर्चा का बड़ा मुद्दा बनी हुई है। मगर आम जनता को अब भी इसकी असली वजह समझ नहीं आ रही। काशीपुर बार एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष एडवोकेट सौरभ शर्मा का कहना है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित नया विधेयक वकीलों की स्वतंत्रता को समाप्त करने की दिशा में एक खतरनाक कदम है। सरकार वकीलों के लिए बने स्वतंत्र बार संघों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है, जिससे कानून व्यवस्था पर प्रत्यक्ष रूप से सरकार का प्रभुत्व हो जाए। वकील अधिनियम 1961 के अंतर्गत वकीलों के अधिकारों और कार्यशैली को सुरक्षित रखने के लिए संघों को स्वायत्त रखा गया था। लेकिन अब सरकार इस स्वतंत्रता को खत्म कर उन्हें अपनी छत्रछाया में लाने की कोशिश कर रही है।

एडवोकेट सौरभ शर्मा ने इस बिल की धारा 4(द) का हवाला देते हुए बताया कि इस संशोधन के तहत हर बार संघ की समिति में एक सरकारी अधिकारी को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाएगा। यह अधिकारी न केवल संघ की नीतियों में हस्तक्षेप करेगा, बल्कि भविष्य में बार संघ का अध्यक्ष भी बन सकता है। इसका मतलब यह है कि वकीलों को सरकार की मर्जी के अनुसार कार्य करना पड़ेगा, जिससे उनकी स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी। वकीलों के स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होगी, और धीरे-धीरे पूरी कानून प्रणाली सरकारी नियंत्रण में आ जाएगी। सरकार की यह नीति न केवल अधिवक्ताओं को बल्कि न्याय प्रक्रिया को भी प्रभावित करने वाली है।

इस प्रस्तावित विधेयक की एक और धारा 35(ए) के अनुसार वकीलों को हड़ताल करने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा। अधिवक्ता समाज में जब भी अन्याय होता है, वे एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करते हैं, लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद वे अपनी आवाज नहीं उठा पाएंगे। यह पूरी व्यवस्था को कमजोर कर देगा और अधिवक्ताओं को सरकारी नीतियों के अनुसार चलने पर मजबूर कर देगा। इसके अलावा, प्रस्तावित संशोधन के तहत अब कोई भी मुवक्किल वकील के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकेगा। यानी यदि कोई वकील किसी केस में हार जाता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इसका अर्थ यह होगा कि हर वकील को हर मामला जीतना अनिवार्य हो जाएगा, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। इससे वकील समाज की साख पर सीधा आघात होगा और न्यायपालिका का कार्य भी प्रभावित होगा।

एडवोकेट सौरभ शर्मा ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ एक साजिश करार दिया और कहा कि अगर इस अधिनियम को रोका नहीं गया, तो वकील समाज कमजोर पड़ जाएगा और न्याय की रक्षा करने वाला कोई नहीं बचेगा। वकीलों को सरकार के अधीन करने का अर्थ है, जनता के अधिकारों को समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू करना। आम जनता जब अपने अधिकारों के लिए लड़ती है, तो वकील उनकी मदद के लिए आगे आते हैं। लेकिन यदि सरकार वकीलों को अपनी पकड़ में कर लेती है, तो कोई भी व्यक्ति न्याय के लिए आवाज उठाने से डरने लगेगा। यह कानून व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रहार साबित हो सकता है।

एडवोकेट सौरभ शर्मा ने काह कि इस विधेयक के खिलाफ अधिवक्ताओं का आक्रोश चरम पर है और वे इसे हर हाल में रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। शर्मा ने काह कि वकीलों का मानना है कि यदि सरकार सफल हो गई तो लोकतंत्र की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। एडवोकेट सौरभ शर्मा ने समाज के प्रबुद्ध नागरिकों से इस मुद्दे पर सजग रहने और सरकार की इस नीति का पुरजोर विरोध करने का आग्रह किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल वकीलों की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को बचाने की लड़ाई है। उन्होने कहा कि अगर आज इसे नजरअंदाज कर दिया गया, तो कल पूरी न्याय प्रणाली सरकार की मर्जी पर चलने लगेगी। उन्होंने जनता को चेताते हुए कहा कि ‘लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पर मेरा ही मकान थोड़े ही है।’ उन्होने कहा कि अगर वकील समाज को इस संशोधन से बचाने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर हर नागरिक पर पड़ेगा। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि हर व्यक्ति इस संघर्ष में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे और लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवाज उठाए।

संबंधित ख़बरें
गणतंत्र दिवस की शुभकामना
75वां गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

लेटेस्ट

ख़ास ख़बरें

error: Content is protected !!