रामनगर। उत्तराखंड के मैदानी लेखपालों में लंबे समय से संसाधनों की कमी को लेकर भारी नाराजगी व्याप्त है, जो अब सार्वजनिक रूप से प्रकट हो गई है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मैदानी क्षेत्रों में लेखपालों के कार्यभार में लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन राज्य सरकार ने उनकी मांगों को अनदेखा करते हुए आवश्यक मानव संसाधन और तकनीकी सहायता प्रदान नहीं की है। इस परिप्रेक्ष्य में, उत्तराखंड लेखपाल संघ के प्रदेश महामंत्री तारा चन्द्र घिल्डियाल ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इस गंभीर समस्या पर जोरदार प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने बताया कि जनपदों में अंश निर्धारण कार्य के लिए राजस्व उपनिरीक्षकों पर तहसीलदारों, नायब तहसीलदारों तथा उपजिलाधिकारियों की ओर से निरंतर दबाव डाला जा रहा है, जो कार्य की गुणवत्ता एवं समय सीमा दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। इसके अतिरिक्त, मैदानी क्षेत्रों में भूमि के जटिल और संयुक्त खतौनी खाते अंश निर्धारण प्रक्रिया को और अधिक पेचीदा बना देते हैं।
उत्तराखंड लेखपाल संघ के प्रदेश महामंत्री तारा चन्द्र घिल्डियाल पे कहा कि अंश निर्धारण कार्य में आने वाली सबसे बड़ी समस्या जनपद के माल अभिलेखागार से पुराने खतौनियों की प्राप्ति है, जो अक्सर जीर्ण-शीर्ण, फटे हुए और कई बार तो इतने खराब हो चुके होते हैं कि उन्हें पढ़ पाना भी मुश्किल होता है। ये खतौनियां प्रायः इंक पेन में लिखी गई होती हैं, जो नमी और धूल की वजह से समय के साथ नष्ट हो रही हैं। उन्होने कहा कि जब लेखपालों को बार-बार ये अभिलेख लेकर तहसील में आना-जाना पड़ता है तो उनकी हालत और भी खराब हो जाती है। इस परिस्थिति में लेखपालों की जिम्मेदारी होती है कि वे समय पर अंश निर्धारण के साथ-साथ अन्य राजकीय कर्तव्यों को भी पूरा करें, लेकिन पुराने अभिलेखों को संभालना और बार-बार उनकी जांच करना उनकी जिम्मेदारी से बाहर है। तारा चन्द्र घिल्डियाल ने स्पष्ट किया कि खतौनी अभिलेख लाने की जिम्मेदारी खातेदारों की होनी चाहिए, ताकि लेखपाल अपने काम को सही समय में और बेहतर ढंग से पूरा कर सकें।
तारा चन्द्र घिल्डियाल ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति मे कहा कि राजस्व उपनिरीक्षकों के काम का दबाव बढ़ाने वाली सबसे बड़ी वजह हाल ही में जारी किए गए डिजिटल क्रॉप सर्वे के निर्देश हैं, जिसमें वर्ष 2025-26 के खरीफ सत्र से हर लेखपाल क्षेत्र में न्यूनतम पांच राजस्व ग्रामों का अंश निर्धारण कर प्रमाणित करने का आदेश दिया गया है। तारा चन्द्र घिल्डियाल ने इसे तुगलकी फरमान करार देते हुए कहा कि इस कार्य को बिना आवश्यक संसाधनों के पूरा करना लगभग असंभव है। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की है कि प्रत्येक राजस्व उपनिरीक्षक क्षेत्र में एक डाटा एंट्री ऑपरेटर, एक तकनीकी सहायक, लैपटॉप, प्रिंटर, और स्थिर इंटरनेट कनेक्शन जैसे आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे डिजिटल फॉर्मेट में काम को सुगमता से कर सकें। यदि इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाए गए तो अंश निर्धारण जैसे महत्वपूर्ण कार्य अधर में रह जाएंगे और जनसाधारण को इसका प्रत्यक्ष नुकसान होगा।
तारा चन्द्र घिल्डियाल ने संसाधनों की कमी और अत्यधिक दबाव की वजह से उत्तराखंड लेखपाल संघ ने 27 मई से 29 मई तक तीन दिनों के लिए पूरे प्रदेश में कार्य बहिष्कार करने का ऐलान किया है। इस दौरान लेखपाल कोई भी राजस्व कार्य नहीं करेंगे और पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन भी आयोजित किया जाएगा। तारा चन्द्र घिल्डियाल ने अपनीने कहा कि इस आंदोलन के दौरान राजस्व परिषद और उत्तराखंड सरकार पर कार्य बहिष्कार के कारणों को समझने और उनकी मांगों को मानने का दबाव बनाया जाएगा। 29 मई को इस आंदोलन की स्थिति का पुनः मूल्यांकन कर आगे की रणनीति बनाई जाएगी, जिसकी पूरी जिम्मेदारी उत्तराखंड शासन और राजस्व परिषद पर होगी। तारा चन्द्र घिल्डियाल ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि यदि आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए तो यह आंदोलन लंबी अवधि तक जारी रह सकता है, जिससे राजस्व विभाग के कामकाज पर भारी प्रभाव पड़ेगा।
तारा चन्द्र घिल्डियाल ने कहा कि इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में यह भी देखना होगा कि लेखपाल किस प्रकार विभिन्न राजस्व कार्यों के साथ-साथ भूमि अंश निर्धारण, फॉर्मर रजिस्ट्री, और डिजिटल क्रॉप सर्वे जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को बिना संसाधनों के पूरा कर पाएंगे। उनका मानना है कि वर्तमान में दिए जा रहे लक्ष्य और समयसीमा न केवल अव्यवहारिक हैं, बल्कि इससे राजस्व व्यवस्था में भी अराजकता उत्पन्न होने का खतरा है। इसलिए लेखपालों ने सरकार से तुरंत उचित संसाधनों और तकनीकी सहायता प्रदान करने की मांग की है, ताकि वे जनता को बेहतर सेवा दे सकें और कार्य में बाधा न आए। उन्होने कहा कि इस संघर्ष में लेखपाल अपनी आवाज बुलंद कर यह साबित कर रहे हैं कि बिना संसाधनों के कोई भी काम संभव नहीं है और इसे नजरअंदाज करना विभागीय कार्यों के सुचारू संचालन के लिए खतरा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में राजस्व विभाग के कर्मचारियों की दुर्दशा और संसाधन अभाव की समस्या को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार इस आंदोलन को गंभीरता से लेते हुए लेखपालों की मांगों को शीघ्र पूरा करेगी और उन्हें उचित उपकरण, मानव संसाधन तथा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराकर विभागीय कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद करेगी। तभी जाकर उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में जनसाधारण को सही और समयबद्ध सेवा मिल पाएगी तथा राजस्व विभाग अपनी जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वाह कर सकेगा।