देहरादून। उत्तराखंड की सियासी ज़मीन इस वक्त उबल रही है और वजह है यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी के तहत लिव इन रिलेशनशिप को लेकर लाए गए प्रावधान। यूसीसी के इस नए नियम के अनुसार, राज्य में अब अगर कोई जोड़ा लिव इन रिलेशन में रहना चाहता है, तो उसे खुद को अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस कानूनी आदेश के लागू होने की तारीख तो 27 जनवरी 2025 तय की गई है, लेकिन उससे पहले ही प्रदेश की राजनीति में इस मुद्दे को लेकर तीखी तलवारें खिंच चुकी हैं। जहां एक ओर भाजपा सरकार इसे सामाजिक सुधार का हिस्सा मान रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस समेत कई सामाजिक संगठन इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ बता रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा का एक बयान ऐसा आया है जिसने प्रदेश की राजनीति में गर्माहट बढ़ा दी है और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के माथे पर बल डाल दिया है।
हाल ही में जब करण माहरा उधम सिंह नगर के दौरे पर पहुंचे, तो वहां उन्होंने यूसीसी के बहाने भाजपा पर तंज कसते हुए लिव इन रिलेशनशिप के मुद्दे पर बड़ा हमला बोला। माहरा ने सवालिया लहजे में कहा कि क्या कोई भाजपा नेता ये कह सकता है कि वह अपनी बेटी को शादी से पहले किसी के साथ रहने की अनुमति देगा? उनका ये बयान किसी आम राजनीतिक तंज की तरह नहीं था बल्कि सीधा परिवार, संस्कृति और सामाजिक सोच के मूलभूत ढांचे पर चोट थी। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार ने संविधान की धारा 44 का उल्लंघन किया है और एक ऐसा कानून लागू करने की कोशिश कर रही है जो देश के सभी नागरिकों पर लागू ही नहीं होता। उन्होंने बीजेपी पर यह भी आरोप मढ़ा कि पार्टी हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव गढ़कर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है, और यह रणनीति राज्य और देश दोनों को नुकसान पहुंचा रही है।
इस तीखे बयान के जवाब में भाजपा भी चुप नहीं बैठी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने मोर्चा संभालते हुए कांग्रेस और खासतौर पर करण माहरा पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप को लेकर सुप्रीम कोर्ट की स्थिति पहले से स्पष्ट है। अगर देश की सर्वाेच्च अदालत ने इसकी अनुमति दी है और समाज में इसके कुछ नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं, तो ऐसे में कानून बनाकर उसे नियंत्रित करना सरकार की जिम्मेदारी है। भट्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई जोड़ा लिव इन रिलेशन में रहना चाहता है, तो उनके माता-पिता को इसकी जानकारी देना अनिवार्य किया गया है और यही नियम समाज में असामंजस्य फैलने से रोकने का एक रास्ता है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर क्यों चिंतित हैं? क्या यह चिंता इसलिए है क्योंकि उनके अपने घरों में इस तरह के उदाहरण देखने को मिलते हैं?
महेंद्र भट्ट ने अपनी प्रतिक्रिया में तंज कसते हुए यह भी कहा कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के बेटों और बेटियों को ऐसे संस्कार देती है जो उन्हें हमारी संस्कृति के अनुरूप जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने दावा किया कि भाजपा का यही दृष्टिकोण देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने में मदद करता है। भट्ट का यह बयान न केवल कांग्रेस पर तीखा हमला था बल्कि एक सामाजिक नैरेटिव को मज़बूती से आगे बढ़ाने की कोशिश भी। उन्होंने दो टूक कहा कि लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधान का मकसद समाज में अनियंत्रित बदलावों से बचाव करना है और यह हर उस परिवार के हित में है जो अपनी परंपराओं, संस्कृति और सामाजिक संरचना को संजो कर रखना चाहता है।
सियासी बिसात पर यह मुद्दा अब केवल कानून या सामाजिक नीति तक सीमित नहीं रहा। यह अब संस्कार बनाम स्वतंत्रता, परंपरा बनाम प्रगतिशीलता और संस्कृति बनाम आधुनिकता के बीच खींची गई एक रेखा बन गया है, जिस पर प्रदेश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियां आमने-सामने खड़ी हैं। एक ओर जहां भाजपा इसे सामाजिक संतुलन बनाए रखने का माध्यम मान रही है, वहीं कांग्रेस इसे व्यक्तिगत अधिकारों में हस्तक्षेप बताकर अपनी सियासी ज़मीन तैयार कर रही है। लेकिन इन सियासी बयानों के शोर के बीच एक बड़ा सवाल यही है कि क्या यह मुद्दा आने वाले विधानसभा या लोकसभा चुनावों में भाजपा का नया नैरेटिव बनेगा या कांग्रेस के तंज और विरोध इसे पीछे धकेल पाएंगे? फिलहाल तो इतना साफ है कि करण माहरा और महेंद्र भट्ट की इस जुबानी जंग ने प्रदेश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है, जो आने वाले समय में और भी तेज़ हो सकती है।