रामनगर। उत्तराखंड, जिसे कभी देवभूमि कहा जाता था, अब ‘दारूभूमि’ बनने की ओर बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने राजस्व बढ़ाने के नाम पर रामनगर को शराब के नए गढ़ में तब्दील करने का फैसला किया है। अब छोई, हाथी डगर, मोहान मार्ग और पाटकोट मार्ग जैसे संवेदनशील इलाकों में भी शराब की दुकानें खुलेंगी। सरकार का मानना है कि अधिक ठेके खोलने से विकास होगा, लेकिन क्या सच में शराब की बिक्री को विकास का पैमाना माना जा सकता है? क्या सरकार यह भूल रही है कि शराब केवल नशा नहीं, बल्कि सामाजिक बर्बादी की जड़ है? महिलाओं पर अत्याचार, घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाएँ और अपराध—all इससे जुड़े हैं। सवाल यह है कि सरकार को राजस्व चाहिए या जनता की भलाई? क्या उत्तराखंड अब पर्यटन और संस्कृति के बजाय नशे के लिए पहचाना जाएगा?
राज्य सरकार की नई नीति के तहत नैनीताल जिले में 11 नई शराब की दुकानें खोली जा रही हैं, जिनमें से 4 रामनगर में स्थापित होंगी। इस फैसले का सीधा असर स्थानीय लोगों पर पड़ेगा, क्योंकि अब शराब की उपलब्धता और आसान हो जाएगी। ग्रामीणों को शराब खरीदने के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा—सरकारी जहर अब उनके दरवाजे तक खुद पहुंचाया जाएगा। लेकिन क्या सरकार को यह एहसास नहीं कि शराब सिर्फ एक नशा नहीं, बल्कि सामाजिक बर्बादी की जड़ है? इससे परिवार टूटते हैं, अपराध बढ़ते हैं और समाज में अस्थिरता फैलती है। शराबखोरी का सीधा संबंध महिलाओं पर अत्याचार, घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाओं और अपराधों से है। उत्तराखंड में इससे पहले महिलाओं ने शराब के खिलाफ बड़े आंदोलन किए थे। उन्होंने ठेके तोड़े, सड़कों पर प्रदर्शन किया और सरकार को झुकाने पर मजबूर किया था। लेकिन अब वही सरकार शराब के कारोबार को खुला संरक्षण दे रही है। क्या यह वही उत्तराखंड है जहां महिलाओं ने नशामुक्ति के लिए संघर्ष किया था? क्या राजस्व बढ़ाने के लिए सरकार समाज को नशे की ओर धकेलने को तैयार है?
रामनगर पहले से ही कई शराब के ठेकों से घिरा हुआ है, लेकिन सरकार को लगता है कि ये पर्याप्त नहीं हैं। अब छोई, हाथी डगर, मोहान मार्ग और पाटकोट मार्ग जैसे पर्यटन और वन्यजीव अभ्यारण्य से जुड़े संवेदनशील इलाकों में भी शराब की दुकानें खोली जाएंगी। सवाल यह उठता है कि पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध रामनगर, क्या अब नशे के केंद्र के रूप में भी पहचाना जाएगा? क्या सरकार को स्थानीय संस्कृति और पर्यटन से अधिक शराब बिक्री से होने वाले राजस्व की चिंता है? यह फैसला न केवल पर्यावरण और पर्यटन को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा। स्थानीय लोग इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार का यह कदम सिर्फ राजस्व बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि राज्य को नशे की दलदल में धकेलने की एक सुनियोजित साजिश है। अगर इस फैसले को जल्द वापस नहीं लिया गया, तो इसका असर आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा। परिवार उजड़ेंगे, अपराध बढ़ेंगे और समाज बर्बादी की ओर जाएगा।
सरकार की इस नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित वे लोग होंगे, जो पहले ही शराब के कारण तबाही झेल चुके हैं। शराब न केवल एक लत है, बल्कि यह पूरे परिवार को बर्बाद कर देती है। जब सरकार ही इसे बढ़ावा देगी, तो समाज किस दिशा में जाएगा? क्या अगला कदम यह होगा कि स्कूलों, अस्पतालों और मंदिरों के पास भी ठेके खोल दिए जाएँ? शराब की वजह से कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं। आए दिन खबरें आती हैं कि शराबी पिता ने पत्नी को पीट दिया, बच्चों के लिए रोटी के पैसे शराब में उड़ा दिए, सड़क पर नशे में धुत्त लोग हंगामा कर रहे हैं। क्या सरकार को ये घटनाएँ नहीं दिखतीं? या फिर यह सब अनदेखा कर दिया जाता है, क्योंकि शराब बिक्री से सरकार की तिजोरी भर रही है? उत्तराखंड के लोगों को अब यह तय करना होगा कि वे इस नीति का समर्थन करेंगे या इसके खिलाफ आवाज उठाएँगे। क्या वे अपने बच्चों को शराब से भरी गलियों में बड़ा होते देखना चाहते हैं, या फिर एक स्वच्छ, समृद्ध और नशामुक्त समाज चाहते हैं?
शराब बिक्री से सरकार को भारी राजस्व मिलता है, लेकिन क्या यह राजस्व समाज की बर्बादी की कीमत पर सही ठहराया जा सकता है? अगर सरकार को वाकई राजस्व बढ़ाना ही है, तो इसके और भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं—पर्यटन को बढ़ावा देना, स्थानीय हस्तशिल्प और उद्योगों को विकसित करना, और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करना। लेकिन सरकार ने आसान रास्ता चुना—लोगों को शराब के जाल में फंसाकर उनसे पैसे ऐंठने का। उत्तराखंड में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक स्थल और एडवेंचर स्पोर्ट्स देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं। अगर सरकार सही दिशा में कदम बढ़ाए, तो राज्य की अर्थव्यवस्था शराब बिक्री पर निर्भर नहीं रहेगी। लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।
रामनगर और नैनीताल जिले के लोगों को अब यह तय करना होगा कि वे इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाएंगे या चुपचाप इसे स्वीकार कर लेंगे। क्या वे अपने गाँव, शहर और समाज को नशे की गिरफ्त में जाते देखेंगे, या फिर सरकार को इस नीति को वापस लेने पर मजबूर करेंगे? अगर अभी नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब हर गली में शराब की दुकान होगी और हर घर में तबाही का मंजर। सरकार जब खुद जहर बेचेगी, तो जनता के पास दो ही विकल्प होंगे—या तो इसे पीना, या इसके खिलाफ लड़ना। अब फैसला आपको करना है।
उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के महासचिव प्रभात धयानी ने राज्य सरकार के शराब नीति को लेकर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार देवभूमि को ‘दारूभूमि’ बनाने पर तुली हुई है। राजस्व बढ़ाने के नाम पर पहाड़ों और संवेदनशील क्षेत्रों में शराब की दुकानें खोलकर सरकार राज्य को नशे की चपेट में धकेल रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार को उत्तराखंड के युवाओं और महिलाओं की चिंता नहीं है? शराब से अपराध, घरेलू हिंसा और सामाजिक पतन बढ़ेगा, लेकिन सरकार सिर्फ पैसे की लालच में अंधी हो चुकी है। प्रभात धयानी ने यह भी कहा कि उत्तराखंड में पहले भी महिलाओं ने शराब के खिलाफ आंदोलन किए थे और सरकारों को झुकाया था। अगर यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो एक बार फिर राज्यव्यापी आंदोलन होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि उत्तराखंड क्रांति दल इस फैसले के खिलाफ जनता को लामबंद करेगा और सरकार को मजबूर करेगा कि वह अपने नशाखोरी को बढ़ावा देने वाले फैसले को तुरंत रद्द करे।