रामनगर। रामदत्त जोशी संयुक्त चिकित्सालय को पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड से हटाए जाने की मांग को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नागरिकों ने विरोध प्रदर्शन किया। पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी और पालिकाध्यक्ष हाजी मोहम्मद अकरम अपने समर्थकों के साथ अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गए और अस्पताल को सरकार के नियंत्रण में वापस लेने की मांग की।
रामनगर का यह सरकारी अस्पताल वर्षों से स्थानीय जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। लेकिन इसे पीपीपी मोड में दिए जाने के बाद से ही कई तरह की समस्याएं सामने आने लगीं। क्षेत्रीय जनता और सामाजिक संगठनों का कहना है कि अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में कमी आई है, मरीजों को अनावश्यक रूप से महंगी सुविधाएँ दी जा रही हैं और कई महत्वपूर्ण सरकारी योजनाओं का लाभ यहाँ मरीजों को नहीं मिल रहा है।
इससे पहले भी कई बार स्थानीय संगठनों और नागरिकों ने इस अस्पताल को पीपीपी मोड से हटाने की मांग उठाई थी, लेकिन अब जब 31 मार्च को पीपीपी मोड के तहत अस्पताल का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, तब इसे फिर से विस्तारित करने की चर्चाएँ हो रही हैं। इसी के विरोध में आज स्थानीय नेताओं और नागरिकों ने एकजुट होकर धरना दिया।
धरने की अगुवाई कर रहे पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी ने कहा कि यह अस्पताल रामनगर की जनता के स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण केंद्र है। इसे पीपीपी मोड पर देने से इसकी सेवाएँ प्रभावित हुई हैं। हमारा सीधा और साफ संदेश है दृ अस्पताल को फिर से सरकार के नियंत्रण में लिया जाए ताकि आम जनता को बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ मिल सकें। पालिका अध्यक्ष हाजी मोहम्मद अकरम ने भी सरकार से मांग की कि जनहित को ध्यान में रखते हुए अस्पताल का फिर से विस्तारीकरण नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकारी नियंत्रण में रहने पर अस्पताल की सेवाएँ अधिक पारदर्शी होती हैं और स्थानीय गरीब एवं मध्यम वर्गीय लोगों को उचित लाभ मिल पाता है।
इस धरने में केवल राजनीतिक प्रतिनिधि ही नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य संगठनों के लोग भी शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यदि सरकार ने इस अस्पताल को दोबारा पीपीपी मोड में विस्तारित किया तो वे बड़े आंदोलन के लिए मजबूर हो जाएंगे। स्थानीय निवासी रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि सरकारी अस्पताल आम जनता की सुविधा के लिए होते हैं। लेकिन जब इन्हें प्राइवेट कंपनियों को सौंप दिया जाता है, तो वे मुनाफे के लिए काम करने लगती हैं और गरीब जनता इससे वंचित हो जाती है। हम चाहते हैं कि यह अस्पताल दोबारा सरकारी नियंत्रण में आ जाए। वहीं, एक अन्य स्थानीय महिला गीता देवी ने कहा, ष्हमारे परिवार में हर कोई इसी अस्पताल में इलाज करवाता था, लेकिन अब कई जांचें और दवाएँ बाहर से लेनी पड़ती हैं, जो महंगी पड़ती हैं।ष्
प्रदेश सरकार की ओर से अभी तक इस मांग पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग के कुछ सूत्रों का कहना है कि सरकार इस विषय पर विचार कर रही है और जल्द ही कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ष्हम स्थानीय लोगों की मांगों को समझते हैं, लेकिन कुछ प्रशासनिक और आर्थिक पहलू भी होते हैं। सरकार जनता की भावनाओं को ध्यान में रखकर ही अंतिम निर्णय लेगी।ष्
पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड में सरकार किसी सार्वजनिक सेवा या संस्था का संचालन निजी कंपनियों के हाथों सौंप देती है, ताकि सेवा में सुधार हो और प्रबंधन अधिक कुशलता से किया जा सके। हालांकि, रामनगर में इस अस्पताल को पीपीपी मोड पर देने के बाद कई समस्याएँ आईं, जैसेः
1- सरकारी योजनाओं का लाभ सीमित हो गया।
2- इलाज और दवाएँ महंगी हो गईं।
3- गरीब मरीजों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिलीं।
4- स्थानीय जनता को निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया।
5- आगे की रणनीति क्या होगी?
धरना प्रदर्शन के बाद संजय नेगी और हाजी मोहम्मद अकरम ने चेतावनी दी है कि यदि अस्पताल को पीपीपी मोड से हटाने की मांग नहीं मानी गई, तो वे बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो मुख्यमंत्री से भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की जाएगी। वहीं, स्थानीय नागरिकों ने भी सरकार से जल्द फैसला लेने की अपील की है।
रामनगर का रामदत्त जोशी संयुक्त चिकित्सालय पीपीपी मोड पर चलने के बाद से विवादों में रहा है। स्थानीय जनता और जनप्रतिनिधियों की मांग है कि इसे वापस सरकार के नियंत्रण में लिया जाए, ताकि जनता को सस्ती और प्रभावी स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल सकें। अब यह देखना होगा कि सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है और क्या जनता की मांगों को सुनते हुए अस्पताल को दोबारा सरकारी नियंत्रण में लिया जाएगा या नहीं।