रामनगर। राज्य निर्माण की भावना और उत्तराखंड की मूल अवधारणा को लगातार नजरअंदाज किए जाने से नाराज़ उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों ने रामनगर में एक विशेष बैठक के दौरान आक्रोश जाहिर किया। 15 जून 2025 को हुई इस बैठक में आंदोलनकारियों ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार की उदासीनता अब बर्दाश्त से बाहर है। चंद्रशेखर जोशी की अध्यक्षता और नवीन नैथानी के संचालन में आयोजित इस विचारमंथन में मुख्य मांग यह रही कि विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन जनसंख्या नहीं, बल्कि क्षेत्रफल के आधार पर किया जाना चाहिए। आंदोलनकारियों का स्पष्ट मत था कि पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक जटिलताओं को दरकिनार कर जनसंख्या के आधार पर सीमाएं तय करना, राज्य की आत्मा से विश्वासघात के समान है। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस दिशा में शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो उन्हें एक बार फिर उसी जनांदोलन की राह पकड़नी होगी जिससे उत्तराखंड राज्य का जन्म हुआ था।
बैठक में उपस्थित उत्तराखंड राज्य सम्मान परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष एवं पूर्व दर्जा राज्य मंत्री धीरेन्द्र प्रताप ने आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार राज्य निर्माण में जान गंवाने वाले शहीदों और उनके परिवारों की उपेक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण लागू होने के बावजूद इसका लाभ आज तक राज्य आंदोलनकारी आश्रितों को प्रभावी रूप से नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने यह भी उठाया कि जो न्यूनतम मानदेय आंदोलनकारियों को दिया जाता है, वह भी समय पर नहीं पहुंचता जिससे बुजुर्ग आंदोलनकारी आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। धीरेन्द्र प्रताप ने प्रस्ताव रखा कि जल्द ही कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों में बड़े सम्मेलन आयोजित कर एक नई रणनीति तैयार की जाएगी ताकि सरकार को मजबूर किया जा सके कि वह राज्य आंदोलनकारियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करे।
इस अवसर पर राज्य आंदोलनकारी प्रभात ध्यानी ने सरकार के रवैये पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि जिस जनआंदोलन की नींव पर उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई, आज उसी आंदोलन में भाग लेने वाले राज्य निर्माण सेनानियों की सर्वाधिक अनदेखी की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन्होंने इस पर्वतीय राज्य के लिए संघर्ष किया, जेल गए, लाठियां खाईं, जिनकी कुर्बानियों पर उत्तराखंड की इमारत खड़ी हुई—उन्हें आज सत्ता के गलियारों में कोई पहचान नहीं मिल रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब समय आ गया है कि राज्य आंदोलनकारी दोबारा सड़कों पर उतरें, और राज्य की आत्मा, गौरव, सम्मान, स्वाभिमान और शहीदों के सपनों को फिर से जीवित करें। अगर हम आज भी चुप रहे तो न सिर्फ आंदोलन की आत्मा का अपमान होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। उन्होंने आह्वान किया कि सभी आंदोलनकारी एकजुट होकर, एक मंच से, सरकार को उसके वादों की याद दिलाएं और अपने अधिकारों के लिए डटकर लड़ें।
नवीन नैथानी ने बैठक के दौरान अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य के निर्माण में जिन लोगों ने अपने जीवन का अमूल्य समय, ऊर्जा और आत्मबल समर्पित किया, उन्हें आज भी वह सम्मान नहीं मिला है, जिसके वे वास्तविक हकदार हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि सरकार बार-बार वादे तो करती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर आंदोलनकारियों के हितों के लिए कोई ठोस कार्य नहीं किए जा रहे। नैथानी ने स्पष्ट किया कि यह अब सिर्फ एक व्यक्ति या संगठन की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड के स्वाभिमान और अस्मिता का सवाल है। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों को अब फिर से एकजुट होकर अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए सरकार से सीधे संवाद करना होगा और यदि आवश्यक हो, तो सड़कों पर उतरकर जन आंदोलन का स्वर फिर से बुलंद करना होगा। यह संघर्ष अब टालना नहीं, लड़ना होगा।
पूर्व दर्जा मंत्री पुष्कर दुर्गापाल ने भी बैठक में एकजुटता की भावना पर जोर देते हुए कहा कि जब तक समस्त राज्य आंदोलनकारी एक मंच पर नहीं आएंगे, तब तक उनकी आवाज़ ना तो सरकार के गलियारों में पहुंचेगी और ना ही नीति निर्माण प्रक्रिया में स्थान पाएगी। उन्होंने कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी आंदोलनकारी अपनी विचारधारा भले अलग रखें, लेकिन राज्य हित और आंदोलनकारी सम्मान के लिए एकजुट होकर लड़ें। उनका मानना था कि एक सुनियोजित रणनीति के तहत अब हर जनपद में आंदोलनकारियों की बैठकें और जनजागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है ताकि राज्य की जनता को भी यह समझाया जा सके कि जिन लोगों ने उत्तराखंड के लिए बलिदान दिया, उन्हें आज भी न्याय नहीं मिला।
बैठक में अपने विचार व्यक्त करते हुए चंद्रशेखर जोशी ने स्पष्ट और सख्त शब्दों में कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन केवल एक भूगोलिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह यहां के जनमानस की आकांक्षाओं, संघर्षों और बलिदानों का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि जिस आंदोलन की लौ ने पूरे पहाड़ को एकजुट किया, आज उसी आंदोलन के सिपाही हाशिए पर खड़े हैं, जिन्हें सरकार बार-बार नजरअंदाज कर रही है। जोशी ने गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य निर्माण सेनानियों को मिलने वाला मानदेय समय पर नहीं दिया जाता और 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का लाभ अब तक आश्रितों तक सही ढंग से नहीं पहुंच पाया है। उन्होंने सभी आंदोलनकारियों से एक मंच पर आने और एकजुट होकर सरकार से जवाब मांगने का आह्वान किया। उनका कहना था कि अगर अब भी हम चुप रहे तो आने वाले वक्त में यह चुप्पी हमारा सबसे बड़ा अपराध मानी जाएगी।
बैठक के अंत में रामनगर की लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था, बेतरतीब यातायात, और शहर में पर्यटकों व श्रद्धालुओं की परेशानियों पर भी चिंता व्यक्त की गई। आंदोलनकारियों ने तय किया कि वे इन मुद्दों को लेकर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात करेंगे और शहर की व्यवस्था सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग करेंगे। आंदोलनकारियों का कहना था कि रामनगर जैसे महत्वपूर्ण शहर में यदि प्रशासन की यह स्थिति रही, तो न केवल स्थानीय नागरिकों की दिनचर्या बाधित होगी, बल्कि राज्य की पर्यटन छवि को भी गहरा आघात पहुंचेगा।
इस महत्वपूर्ण बैठक में राज्य आंदोलनकारियों के रूप में इन्दर सिंह मनराल, सुमित्रा बिष्ट, कमला जोशी, रईस अहमद, पान सिंह नेगी, सुरेन्द्र नेगी, डी.डी. सती, मनोज गोस्वामी, योगेश सती, नारायण सिंह रावत, जितेन्द्र गौड़, प्रभात ध्यानी, नवीन नैथानी, चंद्रशेखर जोशी, और धीरेन्द्र प्रताप सहित कई वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित रहे। सभी ने सर्वसम्मति से तय किया कि अब वक्त ष्मौनष् का नहीं, बल्कि ष्आंदोलनष् का है। यदि सरकार राज्य आंदोलनकारियों की मांगों को नजरअंदाज करती है, तो जल्द ही पूरे राज्य में एक बार फिर संघर्ष की चिंगारी धधक उठेगी।