रामनगर। शनिवार को तराई पश्चिमी वन प्रभाग के कुमुगडार आरक्षित वन क्षेत्र में की गई अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई ने पूरे इलाके में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। वन विभाग की अगुवाई में हुए इस अभियान में करीब 15 हेक्टेयर जमीन को अतिक्रमण मुक्त बताया गया, पर इसके साथ ही यह सवाल भी हवा में तैरने लगे हैं कि क्या राज्य सरकार की बुलडोजर नीति वाकई निष्पक्ष है या फिर यह भी एक सोची-समझी वोट बैंक गणना का हिस्सा बन चुकी है? स्थानीय स्तर पर विरोध के सुर इस कदर तेज हो गए हैं कि लोगों का कहना है, जंगलों में बरसों से बसे वन गुज्जर समुदाय को अचानक निशाना बनाया जा रहा है, जबकि अन्य इलाकों में फैले अतिक्रमण पर प्रशासन खामोश बैठा है। कुमुगडार क्षेत्र में इस अभियान का संचालन प्रभागीय वनाधिकारी, उप प्रभागीय वनाधिकारी, वन सुरक्षा बल, पुलिस बल, राजस्व विभाग और अधीनस्थ स्टाफ की संयुक्त उपस्थिति में किया गया, लेकिन कार्यवाही की समयबद्धता और इसके चुनावी समीकरणों से मेल खाने वाले स्वरूप ने इसके औचित्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।
जसपुर क्षेत्र में हुई इस कार्रवाई को लेकर अब राजनीतिक पंडितों के बीच चर्चा गर्म है कि आखिर राज्य सरकार बुलडोजर चलवाने में किस आधार पर फैसले ले रही है? आम लोगों का मानना है कि प्रशासन उन्हीं क्षेत्रों में एक्शन में नजर आता है, जहां वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन जहां सियासी नुकसान की ज़रा भी आशंका हो, वहां कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली जाती है। इस ताजा मामले से पहले आमपोखरा बीट में भी इसी तरह की अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई हुई थी, लेकिन तब भी यही सवाल उठे थे कि क्या यह सब सिर्फ दिखावा है या फिर विपक्ष की आवाज दबाने की साजिश? जानकारों का मानना है कि अगर कार्रवाई का आधार राजनीतिक लाभ और हानि बनने लगे तो इससे शासन की निष्पक्षता और प्रशासन की साख दोनों ही खतरे में पड़ सकती हैं।
दशकों से जंगलों को अपना घर मानकर रह रहे वन गुज्जर समुदाय के भीतर गुस्सा और बेबसी दोनों साफ दिख रही है। उनका आरोप है कि एकतरफा कार्रवाई करके सरकार न केवल उनकी आजीविका छीन रही है बल्कि उन्हें उजाड़ कर मानवाधिकारों का भी उल्लंघन कर रही है। झोपड़ियों के आसपास खाई खोदकर जबरन कब्जा लिए जाने से वन गुज्जरों में भारी असंतोष फैल गया है। उनका कहना है कि यह कोई नई बसावट नहीं है, बल्कि पीढ़ियों से जंगलों में रहकर वे वन संपदा की रक्षा करते आ रहे हैं। लेकिन अब उन्हें ही अवैध करार देकर बेदखल किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ राज्य के कई अन्य क्षेत्रों में दबंग अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है, जो सरकारी जमीन पर खुलेआम निर्माण कर चुके हैं।
इस पूरे मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हमला बोला है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सरकार ने बुलडोजर को ‘चुनिंदा औजार’ बना दिया है, जिसका उपयोग केवल राजनीतिक विरोधियों या कमजोर तबकों पर ही किया जाता है। राज्य सरकार पर यह भी आरोप है कि वह अतिक्रमण के नाम पर केवल उन्हीं इलाकों में कार्रवाई कर रही है, जहां से उसे चुनावी तौर पर कोई नुकसान नहीं होता। इससे यह संदेह गहराता जा रहा है कि बुलडोजर अब केवल कानूनी कार्रवाई का माध्यम नहीं, बल्कि राजनीति का हथियार बन चुका है। वहीं कई सामाजिक संगठनों का मानना है कि सरकार को चाहिए कि वह कानून के तहत एक समान नीति बनाए ताकि किसी भी समुदाय के साथ अन्याय न हो और प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल न उठे।
अब सबसे बड़ा सवाल यह बनकर उभरा है कि क्या राज्य सरकार अतिक्रमण के खिलाफ अभियान में ईमानदारी बरतेगी या फिर राजनीतिक फायदे-नुकसान का गणित ही आगे भी कार्रवाई की दिशा तय करेगा? यदि शासन को वास्तव में अवैध कब्जों के खिलाफ सख्ती दिखानी है, तो यह जरूरी है कि वह पूरे राज्य में एकरूपता के साथ कदम उठाए। अन्यथा लोगों का विश्वास प्रशासन से उठ जाएगा और यह धारणा और मजबूत होती जाएगी कि सरकार का बुलडोजर सिर्फ वहां ही चलता है, जहां उसे चुनाव में वोट नहीं मिलने का डर नहीं होता।