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योग शिविर में वेद पुराण और संस्कारों की गूंज से जागा सांस्कृतिक चेतना

हनुमान धाम मंदिर में छात्रों ने योगाभ्यास के साथ जाना वेदों का विज्ञान, पुराणों की शक्ति और 16 संस्कारों की गहराई। हनुमान धाम मंदिर में छात्रों ने योगाभ्यास के साथ जाना वेदों का विज्ञान, पुराणों की शक्ति और 16 संस्कारों की गहराई।

रामनगर। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से पहले श्री हनुमान धाम मंदिर प्रांगण में आयोजित हुए विशेष योग शिविर ने रामनगर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को जीवंत कर दिया। पी. एन. जी. राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर की नमामि गंगे इकाई की नोडल अधिकारी डॉ नीमा राणा के नेतृत्व में आयोजित इस शिविर में छात्र-छात्राओं की बड़ी संख्या में भागीदारी ने वातावरण को ऊर्जावान बना दिया। मंदिर परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ मंदिर के प्रबंधक आर. गोयल ने किया। जैसे ही योगाभ्यास प्रारंभ हुआ, पूरे परिसर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति की लहर फैल गई। प्रतिभागियों ने ध्यान, प्राणायाम और योग के विभिन्न आसनों का अभ्यास करते हुए योग की वैज्ञानिकता और आध्यात्मिकता को गहराई से अनुभव किया। इस अवसर ने न केवल युवाओं में जागरूकता का संचार किया, बल्कि मंदिर में मौजूद पर्यटकों को भी भारतीय संस्कृति के इस अनमोल उपहार की गहराई से पहचान कराई।

शिविर में उपस्थित रहे जाने-माने योगाचार्य डॉ मुरली धर कापड़ी ने प्रतिभागियों को न केवल योगासन और प्राणायाम की विधियां सिखाईं, बल्कि योग के महत्व और इसके शरीर व मन पर प्रभावों को भी विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि योग कोई मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक शैली है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया है। छात्रों ने उनके निर्देशन में नाड़ी शुद्धि, भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, कपालभाति जैसे प्राचीन प्राणायामों के साथ सूर्य नमस्कार और अन्य योगासनों का अभ्यास किया। प्रत्येक अभ्यास के दौरान योगाचार्य द्वारा वैज्ञानिक कारण और शास्त्रों के संदर्भ देकर उसकी महत्ता को स्पष्ट किया गया। इस योगाभ्यास सत्र में न केवल शरीर को संतुलित करने की बात कही गई, बल्कि मन की एकाग्रता और जीवन में संतुलन लाने पर भी बल दिया गया।

आध्यात्मिक आयाम को और अधिक गहराई देने के उद्देश्य से शिविर में पधारे आचार्य घनश्याम जोशी ने वेद, पुराण और 16 संस्कारों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए युवाओं को भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद भारतीय ज्ञान परंपरा की अमूल्य निधि हैं, जिनमें जीवन के प्रत्येक पहलू को वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझाया गया है। आचार्य ने यह भी बताया कि कैसे संस्कार केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन की दिशा और उद्देश्य को स्पष्ट करने वाले मार्ग हैं। उन्होंने वर्णन किया कि 16 संस्कार, जैसे गर्भाधान, नामकरण, अन्नप्राशन, उपनयन और विवाह आदि मनुष्य के जीवन को अनुशासन, मर्यादा और सामाजिक चेतना से भरपूर बनाते हैं। इस चर्चा ने युवाओं के बीच नई चेतना का संचार किया और उन्हें अपनी संस्कृति की ओर उन्मुख किया।

नोडल अधिकारी डॉ नीमा राणा ने योग शिविर के दौरान उपस्थित छात्र-छात्राओं और अतिथियों को संबोधित करते हुए योग के महत्व और इसकी जीवनशैली में भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि योग केवल शारीरिक स्वास्थ्य का माध्यम नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक संतुलन की ओर ले जाने वाला मार्ग है। उन्होंने बताया कि नमामि गंगे इकाई का उद्देश्य केवल गंगा स्वच्छता तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और शुद्ध जीवनशैली को जन-जन तक पहुँचाना है, जिसमें योग एक मजबूत कड़ी है। डॉ राणा ने छात्र-छात्राओं को प्रेरित किया कि वे योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और साथ ही वेद, पुराण और भारतीय संस्कारों को समझकर उन्हें अपनाने की ओर अग्रसर हों। उनके संयोजन और मार्गदर्शन में इस योग शिविर ने न केवल छात्रों को, बल्कि आमजनों और पर्यटकों को भी आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक चेतना से भर दिया।

शिविर के दौरान मौजूद देश के विभिन्न हिस्सों से आए पर्यटक भी इस आयोजन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने न केवल योगाभ्यास में रुचि दिखाई, बल्कि वेदों और भारतीय संस्कृति से जुड़ी जानकारी में गहरी दिलचस्पी ली। कुछ पर्यटकों ने तो इसे अपने जीवन का सबसे अलग और यादगार अनुभव बताया। मंदिर परिसर में योगाभ्यास करते हुए जब सूर्य की किरणें छिटकतीं और श्वासों की लय वातावरण में गूंजती, तब दृश्य किसी आध्यात्मिक साधना स्थल से कम नहीं लगता था। यह शिविर केवल एक योग प्रशिक्षण नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक परंपरा, शास्त्रों की गरिमा और युवाओं में चेतना के बीज बोने का एक प्रेरणादायक प्रयास बन गया। समापन के समय सभी प्रतिभागियों के चेहरे पर आत्मिक संतोष और ऊर्जा साफ झलक रही थी, जो यह सिद्ध कर रहा था कि योग केवल कक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।

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