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मौन यात्रा की ललकार ने आतंकी दरिंदों की जड़ों तक भेजा सिहरनभरा संदेश

आतंकवाद के खिलाफ उठी एकजुट आवाज़, विरोध में निकली मौन यात्रा ने देशवासियों के दिलों में आक्रोश और समर्पण की लहर दौड़ा दी।

काशीपुर। शहर की सड़कों पर आज कुछ अलग ही सन्नाटा पसरा रहा, एक ऐसा सन्नाटा जो केवल मौन नहीं था, बल्कि गहरे आक्रोश और भीतर तक झकझोर देने वाले शोक का प्रतीक था। पहलगाम में निर्दाेष हिंदू तीर्थयात्रियों की पहचान पूछ-पूछकर की गई बर्बर हत्या ने जैसे पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया, उसी की गूंज काशीपुर की हर गली, हर नुक्कड़ और हर बंद दुकान के शटर में सुनाई दी। सुबह से ही व्यापारी अपने प्रतिष्ठानों को बंद कर आतंकवाद के खिलाफ अपने विरोध को बिना बोले सबसे बुलंद तरीके से दर्ज करा चुके थे और फिर जब शाम ढली, तो काशीपुर ने इतिहास को दोहराते हुए क़िला बाज़ार से एक ऐसी मौन यात्रा निकाली जिसने हर संवेदनशील हृदय को भीतर तक स्पंदित कर दिया। धर्म यात्रा महासंघ, उद्योग व्यापार मंडल, अग्रवाल सभा से लेकर हर धर्म, दल और संगठन के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ यह शांतिपूर्ण लेकिन तीव्र संदेश दिया कि देश के नागरिक अब और सहन नहीं करेंगे।

शहर के इतिहास में जब भी बंद का आह्वान हुआ है, तो काशीपुर ने मिलाजुला समर्थन दिखाया है, लेकिन आज जो हुआ वह बिल्कुल वैसा ही प्रतीकात्मक रहा जैसा वर्षों पहले रेल आंदोलन के समय देखा गया था। न केवल व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठानों को पूरी तरह बंद रखा, बल्कि सब्जी विक्रेता, ठेलेवाले, चायवाले और दैनिक जीविका पर निर्भर छोटे दुकानदारों ने भी जिस समर्पण से इस बंद को समर्थन दिया, उसने यह साबित कर दिया कि काशीपुर केवल एक शहर नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा की सामूहिक अभिव्यक्ति बन चुका है। ऐसा जनाक्रोश और एकजुटता शायद ही पहले कभी देखी गई हो। हर आंख में गुस्सा था, हर मन में पीड़ा, और हर कदम आतंकवादियों के खिलाफ देश की आत्मा से निकला एक शांत लेकिन तीव्र प्रहार था।

किला बाज़ार से आरंभ हुई यह मौन यात्रा जैसे ही नगर निगम परिसर की ओर बढ़ी, तो लगा कि हर कदम के साथ देश के लिए मर-मिटने की भावना और अधिक सघन होती जा रही है। मार्ग में व्यापारियों, आम नागरिकों और राजनैतिक-सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं का कारवां इतना व्यापक हो गया कि शहर की मुख्य सड़कों पर मौन होते हुए भी एक गूंज सी उत्पन्न हो रही थी। यह यात्रा केवल पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने भर की नहीं थी, यह एक प्रण था-आतंकवाद के खिलाफ आवाज़ उठाने का, एकजुट रहने का और सरकार से कठोरतम कार्यवाही की मांग करने का। जब नगर निगम परिसर में श्रद्धांजलि सभा शुरू हुई, तो सैकड़ों लोगों की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन आंसुओं में डर नहीं था-था तो केवल एक संकल्प, कि अब और चुप नहीं रहेंगे।

इस यात्रा का नेतृत्व कर रहे धर्म यात्रा महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री के के अग्रवाल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह आतंकवादी हमला सिर्फ कुछ निर्दाेष लोगों की हत्या नहीं, बल्कि भारत की एकता और हिंदू समाज की भावनाओं पर हमला है। उन्होंने प्रधानमंत्री से मांग की कि आतंकवादियों को उनके आकाओं समेत ऐसी सजा दी जाए जो भविष्य में किसी भी कट्टरपंथी को इस तरह की घिनौनी हरकत करने से पहले हजार बार सोचने पर मजबूर कर दे। इस सभा में पूर्व पालिका अध्यक्ष शमसुद्दीन, कांग्रेस नेता संदीप सहगल, बसपा के हसीन खान, भाजपा के अभिषेक गोयल, व्यापार मंडल के प्रभात साहनी, विश्व हिंदू परिषद के वीरेंद्र सिंह चौहान, शिवसेना के भगवती प्रसाद यादव, अग्रवाल सभा के मनोज अग्रवाल, गौड़ सभा के सचिव पीयूष गौड़, विपिन अरोरा, डॉ. एम ए राहुल और अनेक पार्षदों की उपस्थिति ने इसे एक संपूर्ण सामाजिक आंदोलन का स्वरूप दे दिया।

यह स्पष्ट हो गया कि आज की यह यात्रा केवल विरोध की एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि आने वाले समय के लिए एक संकेत थी-कि भारत के नागरिक अब किसी भी साजिश के आगे झुकने वाले नहीं हैं। जब धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि एक मंच पर आकर एक ही स्वर में आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं, तो वह केवल निंदा नहीं होती, वह उस जनक्रांति का आरंभ होती है जो राष्ट्र को भीतर से अडिग और मजबूत बनाती है।

काशीपुर की आज की मौन यात्रा सिर्फ एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि यह आतंकवाद के खिलाफ जन-जन की भीतर से उठी हुंकार थी, जो बिना शोर किए भी आकाश को चीरने का माद्दा रखती है। शहर की आत्मा से निकली यह यात्रा न सिर्फ 26 मासूम हिंदुओं की बर्बर हत्या के प्रति श्रद्धांजलि थी, बल्कि उन कायराना हरकतों के खिलाफ एक दृढ़ प्रण भी थी, जो धर्म की आड़ में इंसानियत को शर्मसार करती हैं। हर हाथ मौन था, पर हर आंखों में ज्वाला थी। यह परंपरा, यह एकता, यह क्रांति का संकेत था — कि अगर फिर किसी ने भारत की अस्मिता को ललकारा, तो यही जनता अब मूक नहीं रहेगी। काशीपुर की यह चुप्पी आज भले शांति में ढली हो, पर आने वाले समय में यह आतंकियों के लिए सबसे बड़ी चेतावनी बनकर गूंजेगी।

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