काशीपुर। मालधन की सरज़मीं पर जब औरतों की हिम्मत ने हुंकार भरी, तो सत्ता के गलियारों में सन्नाटा पसर गया। उत्तराखंड की धरती पर भाजपा सरकार की शराब नीति के खिलाफ जो ज्वाला मालधन में भड़की, उसने राजनीतिक ताकत को झुकने पर मजबूर कर दिया। “इलाज दो, नशा नहीं” की बुलंद आवाज़ के साथ जब महिला एकता मंच की अगुवाई में सैकड़ों माताएं, बहनें और बेटियां शराब के ठेके के सामने सीना तानकर खड़ी हो गईं, तो मालधन का हर कोना उनके जोश से गूंज उठा। कोई राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि एक जनांदोलन बन चुका यह आंदोलन रामनगर के प्रशासनिक ढांचे की नींव तक हिला गया। चिल्ला-चिल्लाकर न्याय मांगती इन महिलाओं ने अपने हौसले से साबित कर दिया कि जब सवाल बच्चों के भविष्य का हो, तो वे हर दीवार तोड़ सकती हैं।
इधर शासन-प्रशासन की रणनीति पहले तो डराने की रही। मुकदमों की धमकियां, कानूनी दांवपेच और पुलिस का भय दिखाकर महिलाओं को धरने से हटाने की भरपूर कोशिशें की गईं, लेकिन उन औरतों की आंखों में खौफ नहीं, बल्कि जिद की ज्वाला थी। उन्होंने साफ ऐलान कर दिया था कि वे लाठियों और गोलियों से भी डरने वाली नहीं हैं। यह कोई साधारण विरोध नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की लड़ाई थी। जब प्रशासन को अपनी साजिशों में नाकामी हाथ लगी, तो अंततः उपजिलाधिकारी प्रमोद कुमार को खुद मैदान में आना पड़ा। जनदबाव के सामने घुटने टेकते हुए उन्होंने शराब की दुकान पर ताला जड़वा दिया। यह ताला उस नीतिगत विफलता पर पड़ा जो सरकार ने गांवों को नशे में डुबोने के लिए बनाई थी। यह जीत सिर्फ एक दुकान की बंदी नहीं थी, बल्कि जनता के विश्वास और संघर्ष की पहली बड़ी विजय बन गई।
धरना स्थल का नज़ारा किसी रणभूमि से कम नहीं था, जहां हर महिला अपने बच्चों की सलामती के लिए लड़ी। नारों, गीतों और हाथों में तख्तियों के साथ ये महिलाएं दिन-रात वहीं डटी रहीं। उन्होंने ज़ोरदार मांग की कि अगर सरकार वाकई विकास चाहती है, तो गांव में अस्पताल बनाए, डॉक्टर भेजे, और शिक्षा को मजबूत करे। लेकिन हकीकत तो यह है कि सत्ता में बैठे लोग अब गांव-गांव शराब बेचकर अपना राजस्व बढ़ाना चाहते हैं। धरने में शामिल वक्ताओं ने भाजपा सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया और कहा कि यह शासन शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार देने में नाकाम रहा है, अब समाज को नशे के हवाले करना चाहता है। एक-एक शब्द सरकार की नीतियों पर प्रहार कर रहा था, और जनता की पीड़ा का आइना बन चुका था।
धरना स्थल पर उपपा नेता प्रभात ध्यानी ने अपने संबोधन में सरकार की शराब नीति को समाज के लिए घातक बताते हुए तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि यह बेहद शर्मनाक है कि जिस सरकार को रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, वह अब राजस्व बढ़ाने के लिए गांव-गांव शराब की दुकानें खोल रही है। प्रभात ध्यानी ने स्पष्ट कहा कि यदि मालधन में दोबारा शराब का ठेका खोलने की ज़रा भी कोशिश की गई, तो यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा और चक्का जाम अब सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे उत्तराखंड में फैलेगा। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि यह वक्त खामोश बैठने का नहीं, बल्कि संगठित होकर हर गांव में शराब के खिलाफ मोर्चा खोलने का है। यह लड़ाई अब हर घर की आवाज़ बन चुकी है।
धरना स्थल पर मौजूद मुनीष कुमार ने अपने जोशीले संबोधन में कहा कि यह आंदोलन अब किसी एक गांव या मोहल्ले की लड़ाई नहीं रह गया, बल्कि पूरे उत्तराखंड की जाग चुकी जनता की आवाज़ बन चुका है। उन्होंने कहा कि मालधन की माताएं और बहनें सिर्फ शराब की दुकान बंद कराने नहीं, बल्कि अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए सड़क पर उतरी हैं। अगर सरकार ने फिर से शराब की दुकान खोलने की हिमाकत की, तो जनता का यह उबाल आंदोलन की सुनामी में बदल जाएगा। उन्होंने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि लोकतंत्र में जनता की आवाज़ को नजरअंदाज करना सत्ता के लिए सबसे बड़ी भूल होगी। यह धरना अब एक चेतावनी है—हर उस जनविरोधी नीति के खिलाफ, जो समाज को अंधकार की ओर धकेल रही है।
इस जनसंग्राम में जब समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार, उपपा के प्रभात ध्यानी, इंकलाबी मजदूर केंद्र के रोहित रुहेला और कांग्रेस नेता रंजीत रावत जैसे चेहरों ने धरना स्थल पर मंच संभाला, तो लोगों का जोश सातवें आसमान पर पहुंच गया। इन नेताओं ने सरकार को सीधी चेतावनी दे दी कि यदि मालधन में फिर से शराब की दुकान खोलने की कोशिश हुई, तो यह आंदोलन और भी उग्र रूप लेगा। मालधन की धरती से उठी यह चेतावनी सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए संदेश बन चुकी है। जनता अब चुप नहीं बैठेगी। नशे के खिलाफ यह जंग अब गांव-गांव, गली-गली और घर-घर में गूंजेगी, और किसी भी कीमत पर सरकार की शराब नीति को थोपने नहीं दिया जाएगा।
शराब की दुकान के ताले ने एक चिंगारी को आग बना दिया है, जो अब पूरे राज्य में फैलने को तैयार है। यह आवाज़ सिर्फ मालधन की नहीं, बल्कि हर उस मां की है, जो अपने बच्चे को नशे से बचाना चाहती है। यह चीख है हर उस बहन की, जो भाई की जिंदगी को शराब के शिकंजे से निकालना चाहती है। यह जंग है उस समाज की, जो अपनी अगली पीढ़ी को तबाही की राह पर जाते नहीं देख सकता। उत्तराखंड में यह आंदोलन अब एक प्रतीक बन गया है—एक ऐसे बदलाव का, जो जनता के हाथों से निकला है और अब सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर करेगा। मालधन की माताओं ने बता दिया है कि वे सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, वे जब चाहें सत्ता के तख्त हिला सकती हैं।