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मानसून बना कहर का दूसरा नाम, चार दिन में 133 मकान तबाह, 21 की मौत और येलो-ऑरेंज अलर्ट जारी

राज्य के पहाड़ों पर बारिश का कोहराम, जनजीवन अस्त-व्यस्त, घर उजड़े, सड़कें टूटीं, लोगों में डर और प्रशासन में मची है अफरा-तफरी।

रामनगर। उत्तराखंड में इस बार का मानसून राहत से ज्यादा मुसीबत का सबब बनता नजर आ रहा है। जहां आमतौर पर लोग बारिश को खेतों के लिए वरदान मानते हैं, वहीं राज्य के कई हिस्सों में पानी अब तबाही का प्रतीक बन चुका है। पिछले चार दिनों के भीतर ही प्रदेश ने वो मंजर देखा है जिसने शासन और प्रशासन दोनों को अलर्ट मोड में डाल दिया है। भूस्खलन, मकानों के गिरने, मवेशियों की मौत और सड़कों के टूटने जैसी घटनाओं ने राज्य को झकझोर दिया है। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि 1 जुलाई से 4 जुलाई के बीच 133 मकान किसी न किसी रूप में क्षतिग्रस्त हुए हैं, जिनमें से दो पूरी तरह ध्वस्त हो गए। आठ मकानों को व्यापक क्षति हुई है, जबकि 123 मकान आंशिक रूप से प्रभावित हुए हैं। वहीं, 33 मवेशियों की मौत भी इन चार दिनों में हो चुकी है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। आपदा की इस श्रृंखला में जहां इंसान और जानवर दोनों को नुकसान पहुंचा है, वहीं पूरे राज्य में दहशत का माहौल बन गया है।

आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक इस मानसूनी सीजन की शुरुआत से अब तक यानी 1 जून से 4 जुलाई तक कुल 21 लोगों की जान जा चुकी है और 11 अन्य घायल हुए हैं। इस अवधि में 9 लोग अब भी लापता हैं, जिनकी खोजबीन के लिए प्रशासन द्वारा रेस्क्यू टीमें तैनात की गई हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में हालात विशेष रूप से गंभीर बने हुए हैं। वहां पहाड़ दरक रहे हैं, सड़कें टूट रही हैं और कई गांवों का बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह कट चुका है। इसी के मद्देनज़र विनोद कुमार सुमन, आपदा प्रबंधन सचिव ने बताया कि जहां-जहां मार्ग अवरुद्ध हो रहे हैं, वहां पर पहले से ही जेसीबी मशीनों को तैयार रखा गया है ताकि किसी भी क्षण रास्ते को बहाल किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि शुक्रवार सुबह तक 52 सड़कें बंद थीं, लेकिन दिनभर अभियान चलाकर कई मार्गों को पुनः चालू कर दिया गया है। हालांकि लगातार बारिश के कारण स्थिति नियंत्रण में आने में वक्त लग सकता है।

राज्य की सड़कों की हालत भी बेतरतीब हो चुकी है। भारी बारिश और भूस्खलन के चलते वर्तमान समय में कुल 65 सड़कों पर आवाजाही पूरी तरह ठप हो गई है। इनमें एक राष्ट्रीय राजमार्ग, 15 लोक निर्माण विभाग की सड़कें और 49 ग्रामीण मार्ग शामिल हैं। लगातार भूस्खलन की घटनाएं मार्ग बहाली को चुनौतीपूर्ण बना रही हैं। इन सड़कों को खोलने के लिए युद्धस्तर पर काम किया जा रहा है, लेकिन मौसम की बेरुखी के चलते रुकावटें आ रही हैं। सरकार की कोशिश है कि चारधाम यात्रा जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक रूटों को किसी भी हाल में सुचारू रखा जाए। अभी तक यात्रा के सारे मार्ग खुले हुए हैं, केवल यमुनोत्री के पास एक स्थान पर मार्ग बाधित है, लेकिन वहां बेली ब्रिज पहुंच चुका है और जल्द ही उस रास्ते को भी बहाल कर दिया जाएगा। सुमन ने बताया कि यात्रा मार्गों की सुरक्षा और आपात स्थिति में राहत देने के लिए विशेष टीमें तैनात की गई हैं।

मौसम विभाग की चेतावनी ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है। विभाग ने साफ कर दिया है कि 9 जुलाई तक बारिश से किसी तरह की राहत की उम्मीद नहीं है। उल्टा खतरा और बढ़ता दिखाई दे रहा है। राज्य में अगले चार दिन के लिए ऑरेंज और येलो अलर्ट जारी किया गया है। 6 और 7 जुलाई को देहरादून, रुद्रप्रयाग, टिहरी और बागेश्वर जिलों में अत्यधिक भारी बारिश को लेकर ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। वहीं, 8 जुलाई को देहरादून, टिहरी, नैनीताल, चंपावत और बागेश्वर जिलों में कहीं-कहीं भारी बारिश की आशंका के चलते येलो अलर्ट जारी किया गया है। इसके अगले दिन यानी 9 जुलाई को नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में फिर से येलो अलर्ट रहेगा। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि अनावश्यक यात्रा से बचें और मौसम की जानकारी लेकर ही पर्वतीय इलाकों की ओर प्रस्थान करें। साथ ही स्कूल-कॉलेजों में छुट्टियों पर भी विचार किया जा रहा है ताकि छात्र-छात्राएं किसी अनचाही घटना का शिकार न हों।

इन खतरनाक हालातों के बीच प्रशासनिक तैयारियों पर नजर डालें तो स्थिति नियंत्रण में रखने के लिए स्थानीय प्रशासन, पुलिस, लोक निर्माण विभाग और आपदा प्रबंधन टीमें चौबीसों घंटे एक्टिव मोड में हैं। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में जहां बारिश से सबसे अधिक नुकसान होता है, वहां जेसीबी मशीनें, रेस्क्यू टीमें और स्वास्थ्य सुविधाएं तैनात की गई हैं। सभी जिलों के कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे संवेदनशील इलाकों पर विशेष निगरानी बनाए रखें और किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करें। भारी बारिश के इस दौर में जनसुरक्षा ही सबसे बड़ा लक्ष्य है और इसके लिए प्रशासन के हर स्तर पर काम हो रहा है। वहीं, आम जनता से भी सहयोग की अपील की गई है ताकि किसी भी अनहोनी से बचा जा सके।

अब जब पूरा उत्तराखंड बारिश की चपेट में है, ऐसे में राज्य के लोगों को एकजुट होकर इस आपदा से लड़ने की जरूरत है। सावधानी, सतर्कता और सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन ही फिलहाल इस संकट से बचने का एकमात्र उपाय है। प्रशासन अपने स्तर पर लगातार प्रयास कर रहा है, लेकिन यह लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब हर नागरिक जिम्मेदारी के साथ अपने और दूसरों के जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। आने वाले दिनों में मौसम की क्रूरता और बढ़ सकती है, इसलिए तैयारी, संयम और सहयोगकृयही तीन शब्द राज्य को इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं।

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