देहरादून। उत्तराखंड की जमीनी संवेदनाओं की गर्माहट में तपकर राज्य सरकार ने आखिरकार वो ऐतिहासिक कदम उठा लिया है जिसकी मांग लंबे समय से देवभूमि की मातृशक्ति कर रही थी। शराब की दुकानों को लेकर वर्षों से उठती आवाज़ें, अब सरकार के कानों में सिर्फ गूंज नहीं रहीं बल्कि निर्णायक कार्रवाई का कारण बन गई हैं। प्रदेश के हर कोने से उठते जनाक्रोश को समझते हुए आबकारी विभाग ने एक ऐसा आदेश जारी कर दिया है, जो प्रदेश की सड़कों पर संघर्ष कर रही महिलाओं की जीत की घोषणा है। 14 मई की शाम को आबकारी आयुक्त हरि चंद्र सेमवाल ने एक पत्र के माध्यम से समस्त जिला आबकारी अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे तत्काल अपने-अपने क्षेत्रों की उन दुकानों की पहचान करें, जहां पर हर वित्तीय वर्ष में शराब की दुकान खोले जाने का विरोध होता है। अब इन विरोध-प्रवण स्थलों पर लाइसेंस की बहाली का कोई सवाल ही नहीं उठेगा, क्योंकि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जहां जनविरोध है, वहां शराब का व्यापार नहीं चलेगा।
कभी पाटकोट की गलियों में जुलूस बनकर गूंजती नारियों की आवाज़ और कभी मालधन की मिट्टी में संकल्प बनकर उभरती जनभावनाएं आखिरकार रंग लाई हैं। यह कोई सामान्य फैसला नहीं बल्कि उत्तराखंड की जमीन से जुड़ी भावनाओं की एक संवेदनशील प्रतिक्रिया है, जिसे मुख्यमंत्री स्तर पर समझा और महसूस किया गया है। हरि चंद्र सेमवाल ने इस निर्णय को लागू करने की पुष्टि करते हुए यह स्पष्ट किया है कि सरकार अब उन दुकानों को स्थायी रूप से बंद करने जा रही है, जिनके खिलाफ स्थानीय जनों द्वारा लगातार विरोध किया गया है। यह केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं है बल्कि प्रदेश के नागरिकों की आत्मा की पुकार का सम्मान है। इतना ही नहीं, जिन दुकानों पर अब तक लाइसेंस प्राप्त अनुज्ञपियों द्वारा अग्रिम राशि जमा की गई है, उन्हें वह राशि भी वापिस लौटाई जाएगी, जिससे किसी भी प्रकार की वित्तीय अन्याय की आशंका शून्य हो जाए।
पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में शराब की दुकानों को लेकर एक असहज माहौल देखने को मिलता रहा है। खासकर जब हर बार नई दुकानें खोलने की प्रक्रिया शुरू होती थी, तब जनविरोध की आवाज़ें गूंजने लगती थीं। स्थिति इतनी गंभीर हो जाती थी कि इन विरोधों को शांत करने में प्रशासन की नाक में दम हो जाता था। अब जाकर सरकार ने यह स्वीकारा है कि यदि बार-बार एक ही जगह पर विरोध होता है, तो वहां व्यापार का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। हरि चंद्र सेमवाल द्वारा भेजे गए पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सभी जिले यह रिपोर्ट प्रस्तुत करें कि किन दुकानों पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष में स्थानीय जनता द्वारा विरोध होता है और किस हद तक यह जनसंपर्क को प्रभावित करता है। यह सूचना सरकार के अगले कदम को और भी सटीक और प्रभावशाली बनाने में मदद करेगी।
अगर बात करें मैदान से लेकर पहाड़ तक फैले जनसंघर्ष की, तो पाटकोट, मालधन, अल्मोड़ा और देहरादून जैसे क्षेत्रों में हर बार शराब की दुकानों के ठेके के खिलाफ आवाज़ बुलंद होती रही है। विशेष रूप से महिला संगठनों की बात करें, तो महिला एकता मंच और संयुक्त संघर्ष समिति ने अपने क्षेत्रीय स्तर पर जो आंदोलन छेड़े, उसने प्रशासन और सरकार दोनों को झकझोर दिया। ये विरोध केवल एक दुकान के खिलाफ नहीं थे, बल्कि वो सामूहिक चेतना थी जो प्रदेश की सामाजिक संरचना को सुरक्षित रखने की पुकार कर रही थी। इसी चेतना का परिणाम है कि आज इन स्थानों पर नई शराब की दुकानें कभी नहीं खुलेंगी। यह न केवल उत्तराखंड की नारियों की नैतिक विजय है, बल्कि प्रदेश की युवा पीढ़ी के भविष्य को बचाने की दिशा में लिया गया सशक्त कदम भी है।
अब जब सरकार ने शराब की दुकानों को स्थायी रूप से बंद करने का ऐलान कर दिया है, तो इससे एक संदेश स्पष्ट हो गया है कि राज्य की जनता की आवाज़ को अनसुना नहीं किया जा सकता। चाहे हरि चंद्र सेमवाल का आदेश हो या मुख्यमंत्री की दूरदर्शी सोच, दोनों ने मिलकर यह जता दिया है कि उत्तराखंड केवल विकास के आंकड़ों का प्रदेश नहीं, बल्कि भावनाओं और मूल्यों का भी केन्द्र है। यह फैसला उन हजारों महिलाओं की आंखों में आंसू और होंठों पर मुस्कान लेकर आया है, जो हर बार पुलिस की लाठियों से डरते हुए भी सड़कों पर उतरी थीं। शराब के खिलाफ उनके संघर्ष को अब कोई अनसुना नहीं कर सकता, क्योंकि अब उनका संघर्ष सरकार की नीति बन चुका है।