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मातृशक्ति की जागरूकता से बदलेगा काशीपुर, सुधा राय ने छेड़ा स्वच्छ सोच का अभियान

सुधा राय ने कहा डस्टबिन बांटना काफी नहीं, जब तक महिलाएं प्लास्टिक त्यागकर थैला नहीं अपनाएंगी, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा।

काशीपुर। नगर की स्वच्छता को लेकर काशीपुर में एक नई चेतना उभर रही है और इसकी अगुवाई कर रहे हैं नगर के महापौर दीपक बाली, जिन्होंने डस्टबिन वितरण के माध्यम से जनता को न केवल सुविधा दी है, बल्कि एक नई सोच भी बांटी है। लेकिन इस सराहनीय कदम के साथ यह भी आवश्यक है कि समाज की वह शक्ति जो घर और समाज दोनों को संभालती हैकृमातृशक्ति, वह भी इस पहल में अग्रसर हो। स्वच्छता को केवल डस्टबिन तक सीमित नहीं रखा जा सकता, यह एक जीवनशैली बननी चाहिए। घर-घर में यदि महिलाएं जागरूक हो जाएं और अपने परिवार को प्लास्टिक उपयोग से रोकें, तो काशीपुर को स्वच्छ और प्लास्टिक मुक्त बनाना कोई मुश्किल कार्य नहीं रहेगा। ऐसे में इस दिशा में महापौर द्वारा उठाया गया यह प्रयास निश्चित रूप से एक लंबी सोच का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन अब वक्त है कि मातृशक्ति भी उस सोच का अभिन्न भाग बने।

काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा राय का यह मानना है कि यदि स्वच्छता अभियान को जमीनी स्तर पर सफल बनाना है, तो महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने कहा कि नगर निगम द्वारा डस्टबिन उपलब्ध कराना एक सराहनीय पहल है, लेकिन उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उन डस्टबिनों का सही उपयोग हो। बाजारों में जो कूड़ा अधिक मात्रा में दिखता है, उसमें सबसे बड़ा हिस्सा सिंगल यूज़ प्लास्टिक का होता है, जो पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब महिलाएं बाजार जाएं तो अपने साथ थैला अवश्य रखें, जिससे प्लास्टिक की थैलियों पर निर्भरता कम हो और बाजार क्षेत्र स्वच्छ बना रहे। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं को न केवल अपने घरों में बल्कि समाज में भी स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए और अन्य महिलाओं को भी इस मुहिम से जोड़ना चाहिए, क्योंकि मातृशक्ति यदि चाहे तो पूरे समाज की दिशा बदल सकती है।

सुधा राय ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल नगर निगम की पहलें ही काफी नहीं हैं, जब तक आम जनता, विशेषकर महिलाएं उसमें भागीदारी नहीं करेंगी, तब तक स्थायी परिवर्तन संभव नहीं है। उन्होंने महापौर दीपक बाली से अपील की है कि वे आने वाले समय में महिलाओं के लिए विशेष जागरूकता अभियान चलाएं, जिसमें उन्हें बताया जाए कि डस्टबिन का सही तरीके से कैसे उपयोग किया जाए, कूड़े को कैसे अलग किया जाए और प्लास्टिक का उपयोग कैसे कम किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि बाजार क्षेत्रों में महिला स्वयंसेवी समूहों को सक्रिय किया जाए जो दुकानदारों और ग्राहकों को प्लास्टिक मुक्त विकल्पों के लिए प्रोत्साहित करें। यह एक ऐसी पहल होगी जो न केवल काशीपुर को स्वच्छ बनाएगी, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका को भी नई दिशा देगी।

काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन जैसी संस्थाएं जब आगे आकर स्वच्छता अभियान में योगदान देती हैं, तो वह केवल एक संगठन का काम नहीं होता, बल्कि एक पूरे समुदाय की भावना को दर्शाता है। सुधा राय का यह वक्तव्य स्पष्ट करता है कि अब आवश्यकता केवल डस्टबिन या कूड़ा उठाने की नहीं, बल्कि मानसिकता बदलने की है। जब हर नागरिक यह मानेगा कि कूड़े का जिम्मेदार वह स्वयं है, और जब हर महिला यह निर्णय लेगी कि उसके घर से कोई प्लास्टिक बाहर नहीं जाएगा, तब ही हम एक स्वच्छ नगर और जिम्मेदार समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं। महापौर दीपक बाली की कोशिशों को तभी पूर्ण सफलता मिलेगी, जब समाज का हर वर्ग, विशेषकर महिलाएं, इसमें अपनी भागीदारी को कर्तव्य समझें और सक्रियता से इसे अपनाएं। क्योंकि परिवर्तन तब ही संभव है जब सोच में बदलाव आएकृऔर सोच बदलने की सबसे बड़ी ताकत महिलाओं के पास है।

काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा राय ने एक बार फिर स्वच्छता को लेकर जनजागरण की नई पहल की ओर ध्यान खींचा है। नगर निगम द्वारा डस्टबिन वितरण के अभियान को उन्होंने एक सराहनीय प्रयास बताया है, लेकिन साथ ही उन्होंने इस पूरी मुहिम को केवल डस्टबिन तक सीमित न रखकर एक व्यापक सोच और सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ने की वकालत की है। सुधा राय का मानना है कि जब तक समाज की मातृशक्ति यानी महिलाएं इस पहल का केंद्र नहीं बनेंगी, तब तक कोई भी स्वच्छता अभियान केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा। उनका यह वक्तव्य न केवल यथार्थ को दर्शाता है बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका को भी नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

सुधा राय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि नगर निगम द्वारा डस्टबिन बांटना एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन उससे भी अधिक ज़रूरी है कि लोगों को उन डस्टबिन का उपयोग करने की सोच दी जाए। उन्होंने कहा कि काशीपुर जैसे तेजी से बढ़ते शहर में स्वच्छता को केवल नगर निगम की जिम्मेदारी मान लेना उचित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक का उत्तरदायित्व है। विशेषकर महिलाओं की भूमिका यहां निर्णायक हो सकती है क्योंकि वे परिवार की संरचना की नींव होती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि महिलाएं ठान लें कि प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करना है, बाजार जाते समय थैला लेकर जाना है और घर के कचरे को अलग-अलग रखना है, तो शहर की तस्वीर बदलने में देर नहीं लगेगी।

उनका यह भी कहना है कि हर बार स्वच्छता को लेकर केवल दिखावटी कार्यक्रम करना पर्याप्त नहीं है। सुधा राय ने कहा कि समाज में जागरूकता तभी आएगी जब आदतों में बदलाव होगा और यह बदलाव महिलाओं से शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन लगातार यह प्रयास कर रही है कि अधिक से अधिक महिलाएं पर्यावरण और स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर खुलकर आगे आएं। उन्होंने बताया कि एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि बाजारों में सबसे अधिक कचरा सिंगल यूज़ प्लास्टिक से होता है, जो न केवल शहर की सफाई को बाधित करता है बल्कि नालियों को जाम करके जलभराव जैसी समस्याएं भी पैदा करता है। इससे निपटने के लिए जन जागरूकता और व्यवहार में बदलाव ज़रूरी है।

सुधा राय ने महापौर दीपक बाली से आग्रह किया है कि स्वच्छता अभियान के साथ-साथ प्लास्टिक मुक्त बाजार बनाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाए जाएं। उन्होंने कहा कि यह कार्य अकेले नगर निगम का नहीं है बल्कि इसमें स्वयंसेवी संस्थाएं, महिला समूह और व्यापारिक संगठन भी भागीदार बन सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि नगर में महिला जागरूकता अभियान चलाया जाए जिसमें घर-घर जाकर महिलाओं को समझाया जाए कि कैसे वह अपने परिवार में स्वच्छता को प्राथमिकता दें और प्लास्टिक के विकल्पों को अपनाएं। उन्होंने कहा कि महिलाएं घर की व्यवस्थाओं के साथ-साथ समाज को भी बेहतर बना सकती हैं, यदि उन्हें जागरूकता के साथ दिशा दिखाई जाए।

काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन की यह सोच स्पष्ट रूप से बताती है कि स्वच्छता केवल नालियों की सफाई या डस्टबिन रखने से नहीं आएगी, बल्कि इसके लिए मानसिकता बदलनी होगी। सुधा राय ने यह भी कहा कि उनकी संस्था आने वाले समय में शहर के विभिन्न वार्डों में जाकर ‘स्वच्छ सोचदृस्वच्छ काशीपुर’ अभियान चलाएगी, जिसमें महिलाओं, युवतियों और स्कूली छात्राओं को इस विषय में प्रशिक्षित किया जाएगा। यह अभियान लोगों को यह समझाने के लिए है कि सफाई केवल बाहर की नहीं, बल्कि सोच की भी होनी चाहिए। प्लास्टिक की थैली की जगह कपड़े का थैला, बेकार चीज़ को डस्टबिन में डालने की बजाय उसे अलग करके निष्पादन करनाकृये छोटी-छोटी बातें ही बड़े परिवर्तन की नींव रखती हैं।

सुधा राय ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर प्रशासन और समाज एक साथ चलें तो स्वच्छता केवल सपना नहीं बल्कि यथार्थ बन सकती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संस्थानों में स्वच्छता और प्लास्टिक उन्मूलन को लेकर कार्यशालाएं आयोजित की जाएं, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को जोड़ा जाए। उनके अनुसार ये दो वर्ग ही समाज में स्थायी बदलाव ला सकते हैं, क्योंकि बच्चे बदलाव के वाहक होते हैं और महिलाएं घर से शुरुआत कर सकती हैं।

इस समर्पण, दूरदर्शिता और सक्रियता के साथ सुधा राय और उनकी संस्था काशीपुर राइज़िंग फाउंडेशन ने एक नई दिशा दिखाई है, जिसमें स्वच्छता केवल नगर निगम की फाइलों या फोटो खिंचवाने की रस्म नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है कृ एक ऐसी चेतना, जो हर घर, हर दिल और हर गली तक पहुंचेगी। और जब इस आंदोलन का नेतृत्व मातृशक्ति के हाथों होगा, तो काशीपुर न केवल साफ़ होगा बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए एक उदाहरण भी बनेगा।

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