काशीपुर। महानगर कि गलियों में जब किसी बुज़ुर्ग की टूटी हुई नाली की शिकायत हो, किसी महिला का सड़क किनारे फैले गंदगी से मन खिन्न हो या किसी दुकानदार का खस्ताहाल ड्रेनेज सिस्टम से व्यापार प्रभावित हो रहा हो, तो एक ही नाम है जो सीधे जुबान पर आता है-मेयर दीपक बाली। नगर की आम रिवायत रही है कि जब नेता कुर्सी पा लेता है तो फिर वह अगली बार चुनाव में वोट मांगते वक्त ही जनता की गली में दिखता है। लेकिन दीपक बाली ने मेयर बनते ही इस परंपरागत सोच को अपने कर्मों से ऐसा झटका दिया है कि अब लोग खुद हैरान हैं कि क्या कोई जनप्रतिनिधि हर दिन जनता के बीच रह सकता है? दरअसल, मेयर दीपक बाली के लिए महापौर का पद कोई शोभा का तमगा नहीं, बल्कि जनता की सेवा का वो मैदान है जहाँ हर दिन उनका सामना नई चुनौतियों और नए चेहरों से होता है।
जब भी आप नगर निगम कार्यालय की सीढ़ियाँ चढ़ेंगे, वहां बैठी आम जनता की कतारें खुद चीख-चीख कर यह कह रही होंगी कि वे किसी अफसर से नहीं, बल्कि सीधे महापौर दीपक बाली से मिलने आए हैं। सुबह के 11 बजते ही जब दीपक बाली अपने ऑफिस की कुर्सी पर बैठते हैं, तब वहां का नज़ारा किसी सियासी अफसरशाही की झलक नहीं देता बल्कि यह महसूस होता है जैसे कोई अनुभवी चिकित्सक मरीजों को परामर्श दे रहा हो-हर फरियादी की बात को पूरे धैर्य, ध्यान और विनम्रता से सुनना, उसका समाधान तुरंत बताना और कोई भी निर्णय बिना टालमटोल लिए लेना, यही बन गया है उनका रोज़ का अभ्यास। लोगों का कहना है कि पहले निगम कार्यालय तो आते थे, लेकिन वहां किसी अफसर का मुंह ताकते रह जाते थे, और अब सीधे दीपक बाली से बात होती है, वो भी बिना किसी सिफारिश या बिचौलिए के।

कई बार ऐसा होता है जब कोई परेशान नागरिक अपने गुस्से में आपा खो बैठता है और भावुक होकर शिकायत की झड़ी लगा देता है, लेकिन उस वक्त भी दीपक बाली का संयम और मृदुभाषी स्वभाव ही वह हथियार बनता है, जो सामने वाले के आक्रोश को चुटकियों में शांति में बदल देता है। शब्दों की तल्ख़ी में भी वो अपने व्यवहार से शहद घोल देते हैं। वहाँ मौजूद लोग तब दंग रह जाते हैं जब एक ग़ुस्सैल व्यक्ति भी महापौर के जवाब सुनते ही सहज हो जाता है और बातचीत एक नई दिशा में बहने लगती है। नगर के जानकार यह कहने में नहीं हिचकिचाते कि आज दीपक बाली का कार्यालय जनभावनाओं का केंद्र बन गया है, जहाँ किसी की भी फरियाद अनसुनी नहीं जाती।

हर रोज़ कोई न कोई टोली, मोहल्ले के प्रतिनिधि या फिर व्यक्तिगत शिकायत लेकर निगम भवन पहुंचता है, और यह देखने को लगातार मिल रहा है कि चाहे वह शिकायत सड़क की मरम्मत की हो या पानी की किल्लत की, दीपक बाली हर मुद्दे पर तत्काल संज्ञान लेकर ज़रूरी निर्देश जारी करते हैं। और सबसे अहम बात ये कि वह किसी वार्ड को नज़रअंदाज़ नहीं करते। उनके लिए हर गली, हर मोहल्ला और हर नागरिक एक समान है। शायद यही वजह है कि अब निगम कार्यालय को लोग ‘समाधान केंद्र’ कहने लगे हैं। शिकायतकर्ता जब यह महसूस करता है कि उसकी समस्या को शहर का सर्वाेच्च नगर प्रमुख पूरी गंभीरता से सुन रहा है, तो वह खुद को सशक्त महसूस करता है।
शहर में यह बात आम हो गई है कि दीपक बाली के दर से आज तक कोई खाली नहीं लौटा। उनका दरवाज़ा न केवल खुला रहता है बल्कि दिल भी हर व्यक्ति की समस्या के लिए खुला रहता है। काशीपुर के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है जब नगर निगम केवल बिल्डिंग और कागज़ों का नाम नहीं रहा, बल्कि वहाँ जाकर हर नागरिक को यह एहसास होता है कि उसकी बात को बिना रोके, बिना टाले, बिना घुमा-फिराकर सुना और समझा गया। आज निगम कार्यालय में जो गर्मजोशी और समाधान की तत्परता है, उसका पूरा श्रेय महापौर दीपक बाली की कार्यशैली को जाता है। यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता केवल मतदाताओं तक सीमित नहीं रही, अब तो हर आयु वर्ग, हर वर्ग और हर मोहल्ला उन्हें अपना सच्चा प्रतिनिधि मानने लगा है।

महापौर दीपक बाली ने ‘‘सहर प्रजातंत्र’’ से बात करते हुये एक ऐसा बयान दिया जिसने पूरे काशीपुर की राजनीति और जनभावना को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने दृढ़ता से कहा कि ‘मेरे लिए महापौर की कुर्सी सिर्फ सत्ता या शोभा का प्रतीक नहीं, बल्कि यह पूरे शहर के लोकतंत्र की असली आत्मा है। नगर की जनता मेरे लिए सर्वाेपरि है और उनका हर दर्द, हर शिकायत मेरे लिए व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है।’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे किसी पार्टी, पद या प्रचार के लिए काम नहीं करते बल्कि नागरिकों की सेवा को ही अपनी असली राजनीति मानते हैं। दीपक बाली ने यह संदेश दिया कि लोकतंत्र का असली अर्थ जनता के साथ खड़ा रहना है, ना कि चुनाव जीतकर पांच साल तक गायब हो जाना। उनके अनुसार, नगर निगम महज़ एक दफ्तर नहीं, बल्कि आम जनता की उम्मीदों का मंदिर है, जहाँ हर आवाज़ सुनी जाए और हर समस्या का तुरंत हल निकले। यही लोकतंत्र है और यही उनका संकल्प भी।