काशीपुर। सड़कों से लेकर गलियों तक जिस नाम की गूंज हर कोने में सुनाई देती है, वह है दीपक बाली। यह वही जनप्रतिनिधि हैं, जिन्होंने राजनीति को सिर्फ कुर्सी की महत्वाकांक्षा तक सीमित न रखकर जनसेवा की निस्वार्थ भावना से जोड़ा। जब वे महापौर बने थे, तब काशीपुर की जनता ने पहली बार महसूस किया था कि नेतृत्व क्या होता है, और किसे वास्तव में जननायक कहा जा सकता है। मगर अब, जब यह जननायक अपने ऊपर लगे राजनीतिक आरोपों और भीतरघात से आहत होकर महापौर पद से इस्तीफे की ओर बढ़ रहा है, तो एक बार फिर काशीपुर की आत्मा कांप उठी है। सूत्रों से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक, पूर्व विधायक हरभजन सिंह चीमा की कथित बयानबाज़ी ने दीपक बाली को इतनी पीड़ा दी है कि वे इस पद को छोड़ने का मन बना चुके हैं। अगर ऐसा होता है, तो काशीपुर की वह सुनहरी यात्रा, जिसकी शुरुआत हो चुकी थी, अधूरी रह जाएगी और नागरिकों की आंखों में जगे सपनों का दीपक बुझ जाएगा।
बीते कुछ महीनों में काशीपुर ने जैसा प्रशासन देखा, वैसा पहले कभी नहीं देखा था। एक ऐसा नेतृत्व, जो सुबह से लेकर रात तक न थकता है, न रुकता है, और न ही किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह में डूबा होता है। दीपक बाली ने यह साबित किया कि पद का असली अर्थ लोगों की सेवा में खुद को समर्पित करना है। उनका कार्यालय महज नगर निगम की चारदीवारी नहीं रहा, वह जनता की उम्मीदों का केन्द्र बन गया, जहां हर कोई जाकर अपने दिल की बात कह सकता था। वहां न जात-पात की दीवारें थीं, न दलगत भेद। आम आदमी से लेकर व्यापारी तक, हर किसी को विश्वास था कि यदि कहीं सुनी जाएगी, तो बस दीपक बाली की चौखट पर। और यही विश्वास अब खतरे में है। काशीपुर की जनता अब सवाल कर रही है दृ क्या सौम्यता और सज्जनता राजनीति में अपराध बन चुकी है? क्या वो नेता जो सबसे पहले दूसरों का सम्मान करता है, वह सबसे पहले अपमानित होता है?
हर मंच पर जब दीपक बाली ने पूर्व विधायक हरभजन सिंह चीमा को न केवल आमंत्रित किया बल्कि पिता तुल्य सम्मान देकर मंच पर प्रमुख आसन दिया, तब लोगों ने यह सोचा कि शायद राजनीति अब परिपक्व हो चली है। उन्होंने अपने विरोधियों को कभी दुश्मन नहीं माना, और सभी के साथ समरसता का व्यवहार कर उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके लिए काशीपुर महज एक नगर नहीं, बल्कि परिवार है। वे चुनाव को एक औपचारिक प्रक्रिया मानते रहे, लेकिन जनता को हमेशा परिवार की तरह सहेजा। दीपोत्सव जैसे आयोजनों में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से हर व्यक्ति को जोड़ा, और मुख्यमंत्री के आगमन पर पूर्व विधायक समेत सभी पार्टीजनों को पूरा सम्मान दिया। मगर अब जब वही जनसेवक इस्तीफे की बात सोचने लगे हैं, तो सवाल सिर्फ राजनीति का नहीं, बल्कि पूरे काशीपुर के भविष्य का है।
विकास का जो सपना दीपक बाली ने इस शहर के लिए देखा, वह अब अधर में लटकता नजर आ रहा है। नगर के सौंदर्यकरण से लेकर गिरीताल के पर्यटन हब बनाने तक, उन्होंने योजनाओं की एक श्रृंखला शुरू की थी। गड्ढा मुक्त सड़कें, चौराहों की नई रौनक, बाजारों की पुनर्रचना, और हर वर्ग के लिए सुनियोजित सेवाएंकृयह सब कुछ अब खतरे में है। सिर्फ योजनाएं ही नहीं, बल्कि एक संकल्प खतरे में है, जिसने काशीपुर के लोगों को उम्मीद की डोर से जोड़ा था। अब जब दीपक बाली इस्तीफे की बात कर रहे हैं, तो सवाल यह उठता है कि क्या यह शहर फिर से अंधकार में चला जाएगा? या वह जनता, जिसने उन्हें जननेता बनाया, आगे आकर यह संदेश देगी कि काशीपुर किसी साजिश की भेंट नहीं चढ़ेगा।
दीपक बाली के प्रयासों की वजह से ही काशीपुर आने वालों को अब शहर में प्रवेश करते ही एक नए अनुभव की अनुभूति होती थी। आकर्षक सड़कों और चमचमाते चौराहों से शहर की नई पहचान बनने लगी थी। उन्होंने दिखा दिया कि नेतृत्व केवल आदेश देना नहीं, बल्कि खुद जमीन पर उतरकर लोगों की सेवा करना होता है। लेकिन अब जब सैकड़ों करोड़ की योजनाएं अधूरी रह जाएंगी, तो वह विधवा मां अपनी फ़ीस माफ कराने किसके पास जाएगी, जिसका सहारा सिर्फ एक फोन कॉल पर खड़ा हो जाता था? वह छात्र, वह व्यापारी, वह रिक्शा चालक, वह महिला दृ जिनकी समस्याएं तत्काल हल हो जाती थीं, अब किससे उम्मीद रखेंगे? यह काशीपुर के लिए आत्ममंथन का समय है।
अब यह काशीपुर की जनता को तय करना है कि क्या वह उस नेता को चुपचाप जाते हुए देखेगी, जिसने बिना भेदभाव किए हर दिल को छुआ? या वह उठेगी, खड़ी होगी और यह बताएगी कि यह शहर किसी के अहंकार का नहीं, जनता के प्यार का प्रतीक है। काशीपुर अब एक और राजनैतिक बलि का शिकार नहीं बन सकता। जब कोई व्यक्ति सिर्फ जनसेवा के लिए राजनीति में आता है, तो उसे इस तरह की पीड़ा देकर किनारे करना पूरे लोकतंत्र के साथ विश्वासघात है। और अब यह आवाज उठानी होगी कि दीपक बाली जैसे जननायकों को कुर्सी नहीं, जनता की भावना का सहारा चाहिए, जो उन्हें हर कदम पर मजबूत करे। देखना यह होगा कि क्या काशीपुर फिर से आवाज उठाता है या चुपचाप अपने स्वप्नों को टूटते हुए देखता है।