काशीपुर। देशभक्ति के नाम पर जब भी कोई आवाज़ उठती है, तो उसमें सिर्फ देश के झंडे का ही नहीं, बल्कि उस बेटी की भी झलक होती है जिसने सीमाओं की परवाह किए बिना राष्ट्र के गौरव को सीने से लगाया होता है। ऐसे ही असंख्य वीरों और वीरांगनाओं में एक चमकता नाम है सोफिया कुरैशी, जो नारी सशक्तिकरण और सैन्य अनुशासन का वो प्रतीक बन चुकी हैं जिसे देख आज की हर बेटी गर्व से कह सकती है कि वह भी भारत माता की संतति है। लेकिन जब एक बहादुर महिला अधिकारी को सिर्फ उसके नाम या उसकी पहचान के आधार पर राजनीतिक निशाना बनाया जाए, तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का अपमान नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की बेटियों की अस्मिता पर सीधा हमला माना जाएगा। इस पूरे मुद्दे पर जब उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस की तेजस्वी और मुखर नेता अलका पाल ने आक्रोश व्यक्त किया तो पूरे प्रदेश में एक नई बहस शुरू हो गई।
अलका पाल, जो कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष, उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस और पीसीसी सदस्य के रूप में वर्षों से जनविरोधी बयानों के खिलाफ अपनी बुलंद आवाज़ उठाती आई हैं, उन्होंने भाजपा नेता विजय शाह के उस विवादास्पद बयान पर तीखा प्रहार किया जिसमें उन्होंने देश की जांबाज़ बेटी सोफिया कुरैशी की उपलब्धियों पर सवाल खड़े किए थे। अलका पाल ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की बेटियाँ अब किसी की राजनीति की शिकार नहीं बनेंगी। उन्होंने कहा कि एक महिला जो देश की सेना में अफसर बनकर ना सिर्फ देश की रक्षा करती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का गौरव भी बढ़ाती है, उसके नाम को लेकर ओछी मानसिकता का परिचय देना घिनौनी राजनीति का सबसे निम्नतम स्तर है। उन्होंने मांग की कि इस तरह की महिला विरोधी और राष्ट्रविरोधी मानसिकता रखने वाले विजय शाह को तत्काल अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए।
इस पूरी बहस में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जब पूरा देश सोफिया कुरैशी की उपलब्धियों को सलाम कर रहा है, तब एक सत्ताधारी पार्टी का नेता एक महिला अधिकारी के प्रति इस प्रकार की अवमाननापूर्ण टिप्पणी कर रहा है। अलका पाल ने यह बात बहुत ही स्पष्टता से कही कि यदि आज हमने चुप्पी साध ली तो कल को देश की हर उस बेटी के मन में यह भय बैठ जाएगा कि कहीं उनके नाम, धर्म या पहचान को लेकर उन्हें अपमानित न किया जाए। उन्होंने कहा कि देशभक्ति का मापदंड केवल भगवा टोपी या नारा नहीं हो सकता, बल्कि वो हर वह क़दम देशभक्ति है जो सीमा पर, अस्पताल में, स्कूल में, अदालत में, और किसी भी ज़िम्मेदारी की जगह पर ईमानदारी और समर्पण से उठाया जाए।
उत्तराखण्ड कि महिला कांग्रेस कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष अलका पाल ने कहा कि केवल ये एक बयान का विरोध नहीं, बल्कि देश की आधी आबादी के सम्मान की लड़ाई है। अलका पाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारतीय जनता पार्टी को यह स्पष्ट करना होगा कि क्या वह अपने नेता के इस बयान से सहमत है या नहीं। यदि नहीं, तो उसे तुरंत विजय शाह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए और यदि हाँ, तो यह बात देश को भी पता होनी चाहिए कि बेटियों के सम्मान के मुद्दे पर किसका असली चेहरा क्या है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज की बेटियाँ सिर्फ रसोई नहीं संभालतीं, वे मिसाइल, टैंक और माइक्रोस्कोप भी चलाती हैं और किसी भी सूरत में वह किसी राजनीतिक एजेंडे का शिकार नहीं बनने दी जाएंगी।
उत्तराखण्ड कि महिला कांग्रेस कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष अलका पाल ने दो टूक लहज़े में कहा कि यह उनकी चुप्पी नहीं, बल्कि एक स्पष्ट चेतावनी हैकृऐसी चेतावनी जो हर उस नेता के लिए है जो यह सोचकर बैठा है कि वह महिलाओं पर कोई भी बेहूदा टिप्पणी करके बच निकलेगा। उन्होंने साफ कहा कि अब वह दौर नहीं रहा जब नारी को चुप रहना सिखाया जाता था, आज की स्त्री सवाल भी पूछती है और जवाब भी मांगती है। अलका पाल ने यह भी कहा कि यह केवल एक विवादित बयान की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की नारीशक्ति की वह गर्जना है जो हर ज़ुबान पर अंकुश लगाना जानती है। उन्होंने दोहराया कि पूरे देश की हर बेटी सोफिया कुरैशी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और यदि जरूरत पड़ी, तो उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस सड़क से लेकर संसद तक इस लड़ाई को लड़ेगी। उनका साफ संदेश थाकृभारत की बेटियाँ अब किसी की भी सस्ती राजनीति का शिकार नहीं बनने वालीं, उनका आत्मसम्मान सर्वाेपरि है।
पीसीसी सदस्य अलका पाल ने तीखे और ठोस शब्दों में इस पूरे घटनाक्रम पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि अब वो समय चला गया जब महिलाओं को केवल वोटबैंक समझा जाता था। उन्होंने कहा कि आज की नारी न सिर्फ हर फैसले में भागीदार है, बल्कि सत्ता से सवाल पूछने की ताक़त भी रखती है। अलका पाल ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल किसी एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे राजनीतिक चरित्र की परीक्षा है, जिसमें भाजपा जैसे दल कटघरे में खड़े नज़र आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सम्मान का सवाल जब उठता है, तब महिलाएं चुप नहीं बैठतीं, बल्कि पूरी ताक़त के साथ खड़ी होती हैं। और अगर आवश्यकता पड़ी, तो वे सत्ता की चूलें हिला देंगी। अलका पाल का यह रुख यह साबित करता है कि अब महिलाएं निर्णायक भूमिका में हैं और कोई भी सत्ता उनके आत्मसम्मान से खेलने की हिमाकत नहीं कर सकती।