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भारतीय ज्ञान परंपरा का वैज्ञानिक और सांस्कृतिक उजास स्मृतियों में

स्मृतियाँ केवल परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सोच और सामाजिक आदर्शों की आधारशिला हैं, जो संस्कृत भाषा के माध्यम से नैतिकता, ज्ञान और संस्कृति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

रामनगर। भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल आधार स्मृतियाँ हैं, जो केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं। इसी संदर्भ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व व्याकरण विभागाध्यक्ष प्रोफेसर भगवत् शरण शुक्ल ने अपने विचार व्यक्त किए। वे पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामनगर में आयोजित गुरु दिवस व्याख्यानमाला के नौवें व्याख्यान के मुख्य वक्ता रहे। अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि स्मृतियाँ केवल धार्मिक उपदेशों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समाज को नैतिकता, संस्कार और व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करती हैं। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा में संस्कृत के महत्व पर जोर देते हुए इसे समस्त भाषाओं की जननी बताया और कहा कि यह न केवल वैदिक परंपराओं, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक चिंतन को भी प्रभावित करती है।

संस्कृत विभाग द्वारा प्रस्तुत इस व्याख्यान का विषय ‘भारतीय संस्कृत ज्ञान परम्परा (स्मृतियों के विशेष परिप्रेक्ष्य में)’ था। इस आयोजन में उन्होंने संस्कृत भाषा की महत्ता को रेखांकित करते हुए इसे समस्त भाषाओं की जननी बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि ज्ञान-विज्ञान, संस्कार, नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को आत्मसात कराने वाली निधि है। इस दौरान उन्होंने स्मृतियों में वर्णित वैज्ञानिक तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह ग्रंथ केवल आचार-विचार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सामाजिक विज्ञान की दृष्टि से मनुष्य को आदर्श रूप में गढ़ने की महत्वपूर्ण धरोहर हैं।

अपने उद्बोधन में उन्होंने मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति सहित अन्य प्रमुख स्मृतियों के वैज्ञानिक पहलुओं की व्याख्या की और बताया कि ये ग्रंथ सामाजिक नियमों, नैतिक आदर्शों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समाहित किए हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि स्मृतियाँ मात्र चातुर्वर्ण्य व्यवस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें जीवन के प्रत्येक पहलू को सुव्यवस्थित करने के लिए मार्गदर्शन किया गया है। इस अवसर पर विद्यार्थियों के प्रश्नों का समाधान करते हुए उन्होंने स्मृतियों में उल्लिखित सामाजिक, धार्मिक और वैज्ञानिक तत्वों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया।

इस व्याख्यान में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के परीक्षा नियंत्रक प्रोफेसर पवन कुमार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अपने संबोधन में उन्होंने संस्कृत की व्यापकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह मात्र भाषा या साहित्य का विषय नहीं है, बल्कि जीवन के हर पक्ष को दिशा देने वाली समृद्ध परंपरा है। उन्होंने वेदों और स्मृतियों को भारतीय जीवन-दर्शन का सार बताते हुए कहा कि इनमें न केवल धार्मिक और नैतिक मूल्यों का समावेश है, बल्कि ये वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समाज व्यवस्था को भी सुदृढ़ करने में सहायक हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा को एक सुगठित और व्यवस्थित संरचना बताते हुए उन्होंने इसे मानवता के लिए एक मार्गदर्शक बताया, जो उत्कृष्ट जीवनशैली को बढ़ावा देती है और समाज को आदर्श आचरण की ओर प्रेरित करती है।

कार्यक्रम की भव्य शुरुआत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर एम. सी. पाण्डे द्वारा मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के औपचारिक स्वागत के साथ हुई। अपने उद्बोधन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्मृतियाँ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि इनमें समाज, विज्ञान और नैतिकता के विविध आयाम समाहित हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये ग्रंथ मानव जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं और समाज को श्रेष्ठ बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि स्मृतियों में वैज्ञानिक अवधारणाएँ विस्तृत रूप से समाहित हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। इस आयोजन को सफल बनाने में संस्कृत विभाग के प्रभारी एवं आयोजक सचिव डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने विषयवस्तु की रूपरेखा प्रस्तुत करने के साथ-साथ समस्त अतिथियों और आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।

इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में कैरियर काउंसलिंग प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, सहसंयोजक डॉ. लोतिका अमित, डॉ. रागिनी गुप्ता और प्रकाश सिंह बिष्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके प्रयासों से यह व्याख्यानमाला सुव्यवस्थित और प्रभावशाली रूप से संपन्न हुई। कार्यक्रम में न केवल महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे, बल्कि अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों से भी अनेक विद्वानों और गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। संस्कृत, दर्शन, इतिहास और समाजशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञों ने इस अवसर पर अपने विचार साझा किए, जिससे भारतीय ज्ञान परंपरा और स्मृतियों के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर विस्तृत चर्चा संभव हो सकी। इस आयोजन ने शिक्षा जगत में एक नई प्रेरणा जगाने का कार्य किया।

इस व्याख्यान में प्रोफे. गिरीश पन्त, चीफ प्रॉक्टर प्रो. एस.एस. मौर्य, प्रो. पुनीता कुशवाहा, डॉ. अशोक मिश्र, डॉ. सुधा, डॉ. गणेश्वरनाथ झा, डॉ. डी.एन. जोशी, डॉ. नीलेश उपाध्याय, डॉ. वेदव्रत, डॉ. नीरज जोशी, डॉ. राजकुमार, डॉ. शारदा पाठक, डॉ. सुमन कुमार, डॉ. मुरलीधर पालीवाल, डॉ. विपिन झा, डॉ. विष्णुकान्त त्रिपाठी, डॉ. मुरलीधर कापड़ी, अशोक तिवारी, डॉ. बलवीर चन्द्र, डॉ. दीप्ति, राधेकृष्ण शुक्ल और सोनू कुमार सहित कई शिक्षाविदों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस आयोजन ने भारतीय संस्कृत ज्ञान परम्परा के महत्व को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया और स्मृतियों के वैज्ञानिक पक्षों को उजागर करने का कार्य किया।

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