काशीपुर। नगर निगम में इन दिनों अंदरूनी कलह की चिंगारी तेज़ लपटों में बदलती दिख रही है। महापौर दीपक बाली की ताबड़तोड़ और एकतरफा कार्यशैली अब भाजपा के ही दिग्गज नेताओं के निशाने पर है। पूर्व विधायक हरभजन सिंह चीमा ने खुले मंच से मेयर के फैसलों की खुलकर आलोचना की और यहां तक कह डाला कि शहर की तस्वीर बदल देने से तकदीर नहीं बदली जा सकती। उनका कहना था कि विकास के लिए केवल भौतिक ढांचा खड़ा करना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि लोकतांत्रिक संवाद और सामूहिक विमर्श ज़रूरी है। पुराने और प्रतिष्ठित चौराहों के नामों को बदलने की महापौर की पहल पर चीमा खासे नाराज़ दिखे। उन्होंने इस मुद्दे पर अफसरों के साथ मेयर की सक्रियता पर भी सवाल उठाया और यह स्पष्ट किया कि जब शासन से अभी तक नाम परिवर्तन के प्रस्ताव स्वीकृत नहीं हुए हैं, तो इस स्तर की भागदौड़ और निरीक्षण की प्रक्रिया आखिर किस तर्क पर आधारित है?
विकास की अवधारणा पर सवाल उठाते हुए हरभजन सिंह चीमा ने कहा कि सिर्फ सड़कों, चौराहों और निर्माण से जनता का जीवन नहीं सुधरता। असल विकास तब होता है जब उसमें समावेशिता और सहमति हो। उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम के भीतर जो फैसले हो रहे हैं, उनमें न तो क्षेत्रीय विधायक से राय ली जा रही है, न ही पार्टी और संगठन के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को विश्वास में लिया गया है। चीमा के साथ प्रेस वार्ता में उपस्थित राम मेहरोत्रा, खिलेंद्र चौधरी और गुरविंदर सिंह चंडोक ने भी मेयर की कार्यशैली पर अप्रत्यक्ष रूप से अपनी असहमति जताई। चीमा ने इन सभी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यहां भाजपा के अनुभवी नेता बैठे हैं, क्या कभी मेयर ने किसी विषय में इनसे मशविरा करने की आवश्यकता समझी? उन्होंने यहां तक कह दिया कि जिन दो-चार लोगों के इर्द-गिर्द महापौर घूमते हैं, उन्हें जनता का प्रतिनिधि बताना ही गलत है।
चर्चा का विषय केवल चौराहों के नामों का परिवर्तन नहीं, बल्कि पूरी निर्णय प्रक्रिया को लेकर बनी असहमति है। हरभजन सिंह चीमा ने कहा कि अगर किसी स्थल का नाम बदलना है, तो उसका स्पष्ट और वैध कारण होना चाहिए। शहर के जिन चौराहों की पहचान दशकों पुरानी है और जो नाम पूरे देश में चर्चित हैं, उन्हें यूं ही बदल देना काशीपुर की ऐतिहासिक विरासत से खिलवाड़ है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो चौराहे अभी तक नामहीन हैं, उनके लिए नए नामकरण की प्रक्रिया उचित है, लेकिन पुराने और प्रतिष्ठित नामों को हटाना जनता की भावनाओं को आहत करना है। उन्होंने चेताया कि अगर नगर निगम इस दिशा में अड़ियल रवैया अपनाता रहा, तो यह मुद्दा मुख्यमंत्री तक जाएगा क्योंकि यह केवल प्रशासनिक विषय नहीं, बल्कि काशीपुर की अस्मिता से जुड़ा मसला है।
मेयर द्वारा संबंधित अधिकारियों के साथ निरीक्षण कर नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर भी पूर्व विधायक ने तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं कि अफसरों की पूरी ‘बरात’ लेकर शहर का भ्रमण कर लिया जाए और फिर चंद घंटों में फैसले सुना दिए जाएं। हर फैसले के पीछे योजना, विमर्श और जनता की भागीदारी होनी चाहिए। चीमा ने साफ शब्दों में कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह दरकिनार कर, व्यक्तिगत सोच और निर्णयों से शहर का भविष्य तय नहीं किया जा सकता। उन्होंने कटाक्ष किया कि शायद यही वजह है कि भाजपा के तमाम पुराने नेताओं को आज कोई पूछ नहीं रहा। उनके अनुसार, यह संगठन और कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ने जैसा है।
जब उनसे पूछा गया कि क्या वह मुख्यमंत्री से इस विषय में बात करेंगे, तो हरभजन सिंह चीमा ने दो टूक जवाब दिया कि उन्होंने अपनी बात प्रेस के माध्यम से जनता और पार्टी नेतृत्व तक पहुंचा दी है। यह बात यहां रुकने वाली नहीं, क्योंकि उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि हालात नहीं बदले तो वे मुख्यमंत्री तक जाएंगे। उन्होंने दावा किया कि नगर निगम अध्यक्ष को स्थानीय विधायक के अनुभव और गरिमा का सम्मान करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने कभी ऐसा करने की कोशिश नहीं की। परिणामस्वरूप पार्टी और संगठन के लोग न केवल नजरअंदाज हो रहे हैं, बल्कि उन्हें निर्णय प्रक्रिया से पूरी तरह काट दिया गया है।
आक्रोश इस हद तक पहुंच गया है कि हरभजन सिंह चीमा ने सार्वजनिक मंच से कहा कि जो काम मिलजुलकर होते हैं, वही स्थायी विकास की ओर ले जाते हैं। उन्होंने कहा कि आज तक महापौर द्वारा जितनी घोषणाएं की गई हैं, उनमें कहीं भी न विधायक की भूमिका रही, न ही संगठन की। यहां तक कि उन्होंने खुद को भी निर्णय प्रक्रिया से बाहर बताया। उनके अनुसार, महापौर के मन में जो आता है, वह झट से कह दिया जाता है, और अधिकारी उसी के अनुसार आगे बढ़ने को मजबूर होते हैं। यह एक ऐसा तंत्र बन चुका है जहां न जन प्रतिनिधि की सुनवाई है और न ही संगठन की राय का कोई मूल्य।
इन सारी बातों के बीच हरभजन सिंह चीमा ने यह भी जोड़ा कि आज जो नाम बदले जा रहे हैं, वे सिर्फ चिन्ह नहीं हैं, बल्कि शहर की आत्मा हैं। यदि काशीपुर के किसी प्रमुख स्थल को टीम चौराहा कहकर उसका नाम बदलने की योजना है, तो यह सीधे जनता की राय और भावना को अनदेखा करना है। उन्होंने दो टूक कहा कि जनता ने जिन चौराहों को वर्षों से अपनी पहचान बनाया है, उनकी विरासत खत्म करने का कोई अधिकार किसी को नहीं है। इसलिए यह ज़रूरी है कि महापौर अपने फैसलों पर पुनः विचार करें और सभी पक्षों से राय लेकर ही कोई निर्णय लें। वरना यह विरोध की चिंगारी भविष्य में पार्टी के भीतर बड़ी आग का रूप भी ले सकती है।
पीसीयू के चेयरमैन राम मेहरोत्रा और काशीपुर की राजनीति में वर्षों से सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, ने मेयर दीपक बाली की कार्यशैली पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नगर निगम में एकतरफा फैसले लिए जा रहे हैं और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि संगठन के वरिष्ठ नेताओं, पुराने कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों को नजर अंदाज कर जिस प्रकार से चौराहों के नाम बदलने जैसे अहम निर्णय लिए जा रहे हैं, वह न केवल अस्वीकार्य है बल्कि काशीपुर की ऐतिहासिक पहचान को भी नुकसान पहुंचाने वाला है। राम मेहरोत्रा ने यह भी जोड़ा कि जनता के सुझाव और प्रतिनिधियों की सहमति के बिना ऐसे संवेदनशील फैसले लेना केवल अहंकार का परिचायक है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि काशीपुर की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने वालों को पार्टी के अंदर भी अब जवाब देना होगा और यदि यही रवैया जारी रहा तो संगठन के अंदर विरोध की आवाजें और मुखर होंगी।राम मेहरोत्रा ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नगर निगम के वर्तमान हालात देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि महापौर दीपक बाली खुद को ‘वन मैन आर्मी’ समझ बैठे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मेयर बिना किसी से सलाह लिए, एकतरफा निर्णय लेकर काम कर रहे हैं, जैसे मानो नगर निगम कोई सामूहिक संस्था न होकर केवल उनकी व्यक्तिगत जागीर हो। राम मेहरोत्रा का कहना था कि भाजपा जैसी संगठनात्मक पार्टी में इस तरह का एकपक्षीय रवैया न तो स्वीकार्य है और न ही टिकाऊ। नगर के चौराहों के नाम बदलने जैसे बड़े फैसले करने से पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, पदाधिकारियों और जनता से विचार-विमर्श होना चाहिए था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि संगठन की अनदेखी कर के लिए गए निर्णय भविष्य में पार्टी के लिए चुनौती बन सकते हैं, और समय रहते इस पर आत्ममंथन ज़रूरी है।
प्रदेश महामंत्री खिलेंद्र चौधरी ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नगर निगम में जिस प्रकार से निर्णय लिए जा रहे हैं, वह पार्टी की पारदर्शी और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के विरुद्ध हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संगठन का यह स्पष्ट सिद्धांत है कि कोई भी फैसला, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, सभी संबंधित जनप्रतिनिधियों, वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और जनता से विमर्श के बाद ही लिया जाना चाहिए। लेकिन हाल की घटनाएं दर्शाती हैं कि महापौर दीपक बाली ने एकतरफा तरीके से चौराहों के नाम बदलने, अधिकारियों को निरीक्षण में घुमाने और जनहित से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेने का जो रवैया अपनाया है, वह न केवल पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा रहा है बल्कि संगठन की गरिमा को भी ठेस पहुंचा रहा है। खिलेंद्र चौधरी ने यह भी कहा कि भाजपा में व्यक्ति नहीं, विचारधारा चलती है और जो भी पार्टी की मूल भावना से हटकर चलेगा, उसे जवाब देना ही होगा। उन्होंने संकेत दिए कि यदि इस तरह की कार्यशैली जारी रही तो प्रदेश नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। उन्होंने अंत में कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मान सर्वाेपरि है और संगठन की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। प्रदेश महामंत्री खिलेंद्र चौधरी ने काशीपुर में चौराहों के नाम बदलने के मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय दी है। उन्होंने कहा कि पुराने और प्रतिष्ठित चौराहों के नाम बदलने से बेहतर होगा कि जिन चौराहों के अभी तक नाम नहीं रखे गए हैं, उनके लिए नए और उपयुक्त नामकरण किया जाए। उनका यह मानना है कि शहर की पुरानी पहचान को बिना कारण हटाना ठीक नहीं होगा क्योंकि ये नाम वर्षों से जनता की भावनाओं और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। खिलेंद्र चौधरी ने जोर देकर कहा कि नई पहचान और सम्मान तभी संभव है जब नामकरण का काम सोच-समझकर, जनता की सहमति और संगठन के साथ संवाद से किया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि बिना सामूहिक चर्चा के लिए गए ऐसे निर्णय स्थानीय जनता और पार्टी दोनों के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं, इसलिए नामकरण में पारदर्शिता और व्यापक सहमति जरूरी है।