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भक्ति, संस्कार और सृजनात्मकता से सराबोर रहा निरंकारी बाल संत समागम

नन्हे संतों की मधुर वाणी, नाटिकाएं और भक्ति भाव ने दर्शाया कि शिक्षा के साथ आध्यात्मिकता जोड़कर ही बच्चों को सच्चे संस्कार मिलते हैं।

काशीपुर। निरंकारी भवन का प्रांगण एक बार फिर साक्षात आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बन गया, जहां हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी विशाल निरंकारी बाल संत समागम एवं इंग्लिश मीडियम समागम का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत सेवा दल की उत्साहजनक रैली से हुई, जिसमें बच्चों ने ष्एक निरंकार, एक मतष् के दिव्य संदेश के साथ मिशन की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया। इस रैली में बच्चों का अनुशासन, जोश और समर्पण देखकर संगत मंत्रमुग्ध हो उठी। इसके पश्चात हुए खेलकूद कार्यक्रमों में बच्चों ने न केवल अपने शारीरिक कौशल का प्रदर्शन किया, बल्कि सहयोग, अनुशासन और आध्यात्मिक मूल्यों को भी उजागर किया। इस पूरे आयोजन में छोटी उम्र के बच्चों के जोश, आस्था और समर्पण ने सबका मन मोह लिया। यह समागम सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण का मंच था।

सत्संग का शुभारंभ नन्हे बच्चों द्वारा अवतार वाणी और हरदेव वाणी के मधुर गायन से हुआ, जिससे वातावरण पूरी तरह आध्यात्मिक रंग में रंग गया। बच्चों ने नाट्य प्रस्तुतियों, संवादों और प्रश्नोत्तर सत्रों के माध्यम से यह बताया कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों को सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि भक्ति, इंसानियत और आध्यात्मिक जागरूकता से भी जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया और भौतिकता के युग में आत्मिक संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है। नन्हे बाल संतों ने छोटे-छोटे प्रेरक प्रसंगों और रोचक संवादों से सभी को यह संदेश दिया कि जीवन की सच्ची दिशा सत्संग, सेवा और सिमरन से ही मिलती है। जिस आत्मविश्वास और शुद्धता के साथ बच्चों ने मिशन का इतिहास, सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज से जुड़े प्रश्नों के उत्तर दिए, वह अद्भुत था। बच्चों का मंच पर आत्मविश्वास, संस्कार और मिशन के प्रति समर्पण देख कर संगत भावविभोर हो गई।

समागम के दौरान हुए लघु कवि दरबार ने कार्यक्रम में रचनात्मक ऊर्जा का संचार किया। बच्चों ने अपनी कविताओं और दोहों के माध्यम से यह संदेश दिया कि सत्संग में कैसे बैठना है, किस प्रकार का आचरण रखना चाहिए और जीवन को संयमित और सकारात्मक कैसे बनाना चाहिए। वक्ता रूप में बच्चों ने अपनी कोमल वाणी में संगत को यह प्रेरणा दी कि सत्संग, सेवा और सिमरन हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि निरंकारी मिशन द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान, रक्तदान महादान और अन्य सामाजिक सेवाओं में सहभागिता करना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। गौरव द्वारा मंच संचालन अत्यंत प्रभावशाली और प्रेरणात्मक रहा। उन्होंने न केवल कार्यक्रम को खूबसूरती से आगे बढ़ाया, बल्कि यह भी समझाया कि शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को सत्संग से जोड़ना कितना आवश्यक है। बाल संगत और इंग्लिश मीडियम संगत के समन्वय से यह कार्यक्रम पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ।

कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुखी राजेन्द्र अरोड़ा ने विशाल संख्या में पधारे संत परिवार का हृदय से धन्यवाद किया और सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के संदेशों को दोहराते हुए कहा कि हमें अपने बच्चों को न केवल शैक्षणिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध बनाना है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों में बच्चों को प्रारंभ से ही जोड़ने से उनमें संस्कार, अनुशासन और सेवा की भावना स्वाभाविक रूप से विकसित होती है। उन्होंने यह भी बताया कि निरंकारी मिशन का यह प्रयास है कि प्रत्येक बच्चा एक अच्छा नागरिक बने और समाज में सकारात्मक योगदान दे। इस भावुक क्षण में उन्होंने सभी अभिभावकों का भी धन्यवाद किया, जिन्होंने अपने बच्चों को समागम में प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें प्रशिक्षण हेतु भेजा। बच्चों की उपस्थिति और सहभागिता इस बात की प्रतीक थी कि मिशन की जड़ें अब नई पीढ़ी तक सफलतापूर्वक पहुँच चुकी हैं।

बहन मुन्नी चौधरी ने भी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बच्चों के प्रयासों की सराहना की और अभिभावकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को सत्संग से जोड़ें, ताकि उनके जीवन में सही दिशा और मूल्य आ सकें। उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में जब सामाजिक, नैतिक और मानसिक दबाव बच्चों को भ्रमित कर रहे हैं, ऐसे में आध्यात्मिकता ही उन्हें स्थिरता और संतुलन प्रदान कर सकती है। बहन मुन्नी चौधरी ने बताया कि जिस समर्पण और उत्साह के साथ बच्चों ने इस कार्यक्रम की तैयारियाँ की, वह अनुकरणीय है। उन्होंने समस्त संगत का आभार व्यक्त किया और कहा कि इसी प्रकार से सभी को मिलकर बच्चों को बेहतर संस्कारों की ओर प्रेरित करना है। उनके इस संदेश ने हर अभिभावक को सोचने पर मजबूर किया कि बच्चों के जीवन में संतुलित विकास के लिए आध्यात्मिकता कितनी अनिवार्य है।

अंत में समागम की अध्यक्षता कर रहे क्षेत्रीय संचालक प्रवीण अरोड़ा ने मंच से बीते वर्षों की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि काशीपुर में बाल संत समागम की शुरुआत एक छोटे प्रयास से हुई थी, जो आज एक विशाल आध्यात्मिक पर्व बन चुका है। उन्होंने कहा कि यह सब संभव हो सका है सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता जी की निरंतर प्रेरणा और आशीर्वाद से। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे समय के साथ-साथ बच्चों की संख्या और उनकी सहभागिता बढ़ती गई और आज यह आयोजन क्षेत्र की एक पहचान बन चुका है। उनके अनुसार, यह कार्यक्रम न केवल बच्चों को आत्मिक शिक्षा देता है, बल्कि उनके भीतर नेतृत्व, सहयोग और नैतिक मूल्यों को भी मजबूत करता है। प्रकाश खेड़ा, निरंकारी मीडिया प्रभारी के अनुसार समागम में काशीपुर के साथ-साथ कुडेश्वरी, ढकिया नंबर 1 व 2, हरी नगर, गांधीनगर, थोनपुरी, भीमनगर, प्रतापपुर, हेमपुर और बैग अलीगंज जैसे स्थानों से महापुरुषों ने बच्चों का उत्साहवर्धन किया। समागम के समापन पर सभी प्रतिभागी बच्चों को पुरस्कार वितरित कर उनका मनोबल बढ़ाया गया।

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