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बैलपड़ाव की रात जल उठी, जंगल की आग ने मचाया कोहराम, अफरातफरी फैली

पुलिस चौकी के पास तक पहुंची भयंकर आग, वन विभाग ने रातभर फायर लाइन काटकर बचाई रिहायशी बस्तियां, साजिश की भी आशंका जताई गई

रामनगर। रात के अंधेरे में जब पूरा रामनगर अपने घरों की छतों के नीचे चौन की नींद ले रहा था, तब बैलपड़ाव क्षेत्र के जंगलों में लपटों ने अपना खूनी नाच शुरू कर दिया। जंगल की आग धीरे-धीरे खतरनाक रूप धारण करती चली गई और उसकी आगोश में आते ही आसपास का सारा वातावरण धुएं से भर उठा। जलती टहनियों की चटकती आवाज़ें, हवा में उड़ते राख के टुकड़े और लहराती लपटों ने वहां के शांत माहौल को एक भयावह दृश्य में बदल दिया। यह आग उस स्थान तक पहुंच गई, जहां से पुलिस चौकी और रिहायशी इलाका मात्र कुछ ही दूरी पर था। जैसे ही धुएं की तेज़ लहरें पुलिस चौकी के ऊपर मंडराने लगीं, पूरे क्षेत्र में हलचल मच गई। हर कोई अपने-अपने दरवाजों पर खड़ा आसमान की ओर धुएं की दिशा देखता हुआ सोचने लगा कि कहीं यह आग अब उनके घरों की दीवारों को भी निगल न जाए।

जिस घबराहट और बेचौनी के साथ बैलपड़ाव के लोगों ने इस आग को देखा, वही स्थिति वन विभाग की टीम के लिए एक चुनौती बनकर सामने आई। जैसे ही सूचना विभाग को दी गई, वैसे ही वन विभाग के जाबांज कर्मचारियों की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई और बिना वक्त गंवाए आग को नियंत्रित करने की कोशिशों में जुट गई। इस ऑपरेशन में सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि आग जंगल के उस हिस्से में लगी थी जो सीधे तौर पर आबादी के करीब था। यानि अगर थोड़ी भी चूक होती, तो लपटें झुलसते हुए गांव तक आ सकती थीं। ऐसे में हर सेकंड एक युद्ध की तरह बीत रहा था। रात के समय फायर लाइन काटना, अंधेरे में दिशा समझना और तेज़ हवाओं के बीच आग की गति को पकड़ना, यह सब कुछ किसी रणभूमि से कम नहीं था। लेकिन इन परिस्थितियों में भी फायर वॉचर दुर्ग सिंह और उनकी टीम ने पीछे हटने का नाम नहीं लिया।

हालात को काबू में लाने के लिए जो मेहनत और सूझबूझ फायर वॉचर दुर्ग सिंह और उनकी टीम ने दिखाई, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। उन्होंने बताया कि फायर लाइन को समय रहते काटना आवश्यक था ताकि आग आगे न बढ़ सके। रात का समय, सीमित रोशनी और हवा की गति ने काम को और ज्यादा कठिन बना दिया था, लेकिन हर एक सदस्य ने अपनी जान को जोखिम में डालकर जंगल को बचाने की कोशिश की। यह आग केवल पेड़ों को नहीं निगल रही थी, बल्कि स्थानीय लोगों की उम्मीदों और सुरक्षा के एहसास को भी डरा रही थी। इस सबके बावजूद वन विभाग की टीम ने यह सुनिश्चित किया कि कोई जनहानि न हो और रिहायशी इलाका सुरक्षित रहे। गर्मियों का यह मौसम हर वर्ष ऐसी घटनाओं की आहट देता है, लेकिन इस बार आग का फैलाव जिस स्थान पर हुआ, उसने सभी को अतिरिक्त चौकन्ना कर दिया है।

इतना ही नहीं, जिस क्षेत्र में यह आग फैली, उसे संवेदनशील मानते हुए स्थानीय प्रशासन ने इसे सामान्य घटना मानने से इनकार कर दिया है। यह आशंका ज़ाहिर की जा रही है कि कहीं इस भयंकर अग्निकांड के पीछे किसी शरारती तत्व की साजिश तो नहीं है। यही कारण है कि अब वन विभाग और पुलिस मिलकर इस मामले की जांच में जुट गए हैं। आग के कारणों को लेकर कोई ठोस जानकारी अभी सामने नहीं आई है, लेकिन संभावनाएं खुली हुई हैं कि यह हादसा किसी उपद्रवी की करतूत भी हो सकती है। फायर वॉचर दुर्ग सिंह ने खुद यह स्वीकार किया है कि अभी आग लगने के कारण स्पष्ट नहीं हैं और यह भी संभव है कि यह किसी अज्ञात कारण से स्वतः ही भड़की हो। फिर भी, इस आग की गंभीरता को देखकर इसकी विस्तृत जांच और सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद करने की दिशा में तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं।

आग की घटना की सूचना जैसे ही उच्च अधिकारियों तक पहुंची, वैसे ही विभागीय हलकों में हलचल तेज हो गई। प्रशासन ने स्थानीय लोगों से स्पष्ट शब्दों में अपील की है कि वे न केवल खुद सतर्क रहें, बल्कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि को नजरअंदाज न करें। हर छोटी-बड़ी जानकारी तत्काल वन विभाग या पुलिस तक पहुंचाई जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से निपटने में सहयोग मिल सके। साथ ही यह भी कहा गया है कि अफवाहों पर ध्यान न दें और केवल अधिकृत सूचना पर ही भरोसा करें। रामनगर की इस भयानक अग्निकथा ने एक बार फिर जंगल सुरक्षा और मानव-प्रकृति संतुलन पर गहन सोचने को मजबूर कर दिया है। यह आग बुझ जाएगी, राख उड़ जाएगी, लेकिन डर की उस रात की लपटें हर आंखों में जलती रहेंगीकृऔर याद दिलाती रहेंगी कि जंगल सिर्फ हरियाली नहीं, जिम्मेदारी भी हैं।

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