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बालिकाओं को डर नहीं जागरूकता चाहिए मासिक धर्म पर काशीपुर में छेड़ी क्रांति

जब सुधा राय ने तोड़ी चुप्पी की बेड़ियां, मासिक धर्म पर खुलकर बोलीं बेटियां, राइर्जिंग फाउंडेशन ने रच दी एक नई इबारत

काशीपुर। जब संवेदना, स्वास्थ्य और स्वाभिमान के संगम की बात आती है, तो ऐसे में ‘राइर्जिंग फाउंडेशन’ का नाम खुद-ब-खुद जुबां पर आ जाता है। इसी सामाजिक सरोकार की एक कड़ी के रूप में रा. प्रा. वि. जसपुर खुर्द के प्रांगण में वह दृश्य देखने को मिला जिसने मानवता और जागरूकता के रिश्ते को नई ऊँचाई दी। जब छोटी-छोटी स्कूली बालिकाएं मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषय पर खुलकर बोलती नज़र आईं, तो यह साफ़ जाहिर हो गया कि अब बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। जिस विषय को आज भी समाज में शर्म और चुप्पी की चादर से ढँकने की कोशिश की जाती है, उसे काशीपुर ‘राइर्जिंग फाउंडेशन’ ने जिस साहस और सहजता से प्रस्तुत किया, उसने उपस्थित हर शख्स के दिल को छू लिया। अध्यक्ष सुधा राय ने अपनी सधी हुई बातों से बच्चियों के मन से भय हटाया और उन्हें बताया कि यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि प्रकृति द्वारा दी गई एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे हर स्त्री को गुजरना होता है।

गहरी सामाजिक समझ और मातृत्व-सी ममता के साथ जब सुधा राय ने बच्चियों से बात शुरू की, तो उनके शब्द सिर्फ ज्ञान नहीं थे, बल्कि सहानुभूति की पराकाष्ठा थे। उन्होंने बालिकाओं को यह विश्वास दिलाया कि मासिक धर्म कोई ऐसा मुद्दा नहीं जिससे डरना या शर्मिंदा होना पड़े। यह वह प्रक्रिया है जो स्त्री के जीवन को मातृत्व की ओर अग्रसर करती है। इस दौरान होने वाले असहनीय दर्द और असुविधा को कैसे कम किया जा सकता है, इसके लिए उन्होंने कई घरेलू उपायों को साझा किया और बच्चियों को यह भी बताया कि किस तरह खानपान और साफ-सफाई पर ध्यान देकर खुद को स्वस्थ और मजबूत रखा जा सकता है। यह संवाद ना केवल ज्ञानवर्धक था बल्कि भावनात्मक रूप से भी लड़कियों के दिल में गूंजता रहा। उनके चेहरों की मुस्कान इस बात का प्रमाण थी कि उन्हें अब इस विषय पर खुलकर बोलने में हिचक नहीं रही।

जहां ज्ञान होता है, वहां उदाहरण भी जरूरी हो जाते हैं। इसी क्रम में काजल गिरी ने बालिकाओं को डेमो दिखाया और उन्हें यह समझाया कि कैसे एक छोटा-सा सैनिटरी पैड भी उनकी सुरक्षा और सुविधा का सबसे अहम हिस्सा बन सकता है। काजल गिरी ने न केवल प्रोडक्ट की तकनीकी जानकारी दी बल्कि बेहद सरल भाषा में, अपने हावभावों से और उदाहरणों के माध्यम से बच्चियों के मन में उठने वाले हर संशय को दूर किया। इस डेमो से बच्चियों को ना सिर्फ वस्तु की उपयोगिता समझ में आई, बल्कि उन्हें अपने शरीर को लेकर एक सकारात्मक सोच भी विकसित करने का अवसर मिला। इस कार्य को इतनी सटीकता से प्रस्तुत करना केवल संभव हुआ एक संवेदनशील महिला के हाथों से, जो हर बिटिया में अपनी परछाईं देखती हो।

उल्लेखनीय है कि इस मौके पर ‘राइर्जिंग फाउंडेशन’ की ओर से सभी बालिकाओं को निःशुल्क सैनिटरी पैड वितरित किए गए, जो कि सिर्फ एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि एक सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक बनकर उनके हाथों में पहुँचा। कार्यक्रम में करुणा, अंजलि, सुनीता शर्मा और नमिता पंत जैसे समर्पित सदस्यों की उपस्थिति ने आयोजन को और भी गरिमा प्रदान की। ये महिलाएं केवल दर्शक नहीं थीं, बल्कि वो प्रेरणास्रोत थीं जो हर एक बच्ची के लिए वहां मौजूद थीं-उन्हें सुनने, समझाने और यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे अकेली नहीं हैं। इन सभी ने एकजुट होकर यह दर्शा दिया कि जब महिलाएं खुद संगठित होकर आगे आती हैं, तो किसी भी सामाजिक बंदिश को तोड़ने में देर नहीं लगती।

विद्यालय परिवार का सहयोग भी इस अभियान की सफलता में निर्णायक भूमिका निभाता दिखाई दिया। स्कूल प्रशासन ने न केवल आयोजन की अनुमति दी बल्कि संपूर्ण आयोजन में भरपूर सहभागिता भी निभाई, जिससे यह संदेश गया कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। यह आयोजन किसी एक दिन की पहल नहीं था, बल्कि काशीपुर के ‘राइर्जिंग फाउंडेशन’ के वर्षों से चले आ रहे महिला, बालिका सशक्तिकरण, स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के अभियान का हिस्सा था। संस्था लगातार समाज के उन कोनों को रोशन करने में लगी है, जहाँ अब तक अंधेरे का साम्राज्य रहा। आज के इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि जब कोई संगठन जमीनी स्तर पर ईमानदारी से काम करता है, तो उसका प्रभाव वर्षों तक समाज में दिखाई देता है।

इस जागरूकता अभियान ने यह भी सिद्ध कर दिया कि जब बच्चियों को सही उम्र में सही जानकारी दी जाती है, तो वे अपने जीवन के सबसे कठिन और संवेदनशील मोड़ों पर भी आत्मविश्वास से भरे निर्णय ले सकती हैं। ‘राइर्जिंग फाउंडेशन’ का यह प्रयास सिर्फ स्वास्थ्य जागरूकता का कार्यक्रम नहीं, बल्कि मानसिक, शारीरिक और सामाजिक स्वतंत्रता का उद्घोष था। यह आवाज़ थी हर उस बच्ची की जो अब मासिक धर्म को छुपाएगी नहीं, बल्कि समझेगी, अपनाएगी और गर्व से कहेगी कि यह उसकी शक्ति है, कमजोरी नहीं। यही सोच समाज को बदलने की असली चाबी है।

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