spot_img
दुनिया में जो बदलाव आप देखना चाहते हैं, वह खुद बनिए. - महात्मा गांधी
Homeउत्तराखंडबहू ने निभाया श्रवण कुमार का फर्ज, सास को पालकी में लेकर...

बहू ने निभाया श्रवण कुमार का फर्ज, सास को पालकी में लेकर पहुंची हरिद्वार

हापुड़ की आरती ने बेटियों और भतीजे संग सास को गंगाजल दिलाने के लिए हरिद्वार तक पैदल तय किया भावनाओं से भरा सफर

हरिद्वार(सुरेन्द्र कुमार)। एक बार फिर सावन की शुरुआत से पहले ही शिवभक्ति की महक से भर चुकी है। 11 जुलाई से आरंभ होने वाली कांवड़ यात्रा को लेकर जहां शासन-प्रशासन तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा, वहीं आम श्रद्धालुओं में भी उत्साह और श्रद्धा की कोई सीमा नहीं दिख रही। इस बार के मेले में आस्था के ऐसे रंग उभरकर सामने आ रहे हैं, जो हर किसी का दिल छू रहे हैं। हापुड़, उत्तर प्रदेश से आई एक बहू ने अपने कर्तव्यों और भावनाओं की ऐसी मिसाल पेश की है, जिसने हजारों श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। यह बहू अपनी बुजुर्ग सास को पालकी पर बिठाकर हरिद्वार लाई है, ताकि वह भी इस पवित्र यात्रा में शामिल हो सकें। यह दृश्य हर की पैड़ी पर मौजूद हर किसी की आंखों को नम कर गया और भावनाओं की गहराई में एक बार फिर रिश्तों की पवित्रता को उजागर कर गया।

श्रवण कुमार जैसे उदाहरण हमारे धर्मग्रंथों में सुने और पढ़े गए हैं, लेकिन आधुनिक समाज में इस भावना को जीवंत देखना किसी चमत्कार से कम नहीं है। आरती, जो एक साधारण महिला के साथ-साथ एक बहू भी हैं, ने इस बार अपनी भूमिका को असाधारण बना दिया। उन्होंने यह समझा कि कांवड़ यात्रा केवल उनके लिए नहीं, बल्कि उनकी सास के लिए भी उतनी ही पवित्र और महत्वपूर्ण है। इसी भाव को लेकर उन्होंने निर्णय लिया कि अपनी दो बेटियों और एक भतीजे के साथ मिलकर अपनी सास पुष्पा को पालकी पर बैठाकर हरिद्वार लाएंगी और उन्हें भी गंगाजल लेने की अनुभूति कराएंगी। आरती का कहना है कि यह सब संभव हो पाया है केवल भगवान भोलेनाथ की कृपा से, जिन्होंने उन्हें इस नेक कार्य की प्रेरणा दी। उनका मानना है कि जब लोग अपने माता-पिता को यात्रा कराते हैं, तो सास-ससुर को क्यों नहीं?

इधर जब हर की पैड़ी पर यह दृश्य दिखाई दिया कि एक वृद्ध महिला पालकी में विराजमान हैं और उनकी बहू उन्हें गंगाजल भरवा रही है, तब लोगों ने न केवल तस्वीरें खींचीं बल्कि इस दृश्य की सराहना भी की। पुष्पा, जो इस समय आस्था से परिपूर्ण नजर आईं, ने भावुक होते हुए कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बहू ऐसा कार्य कर दिखाएगी। उन्होंने जब अपनी बहू से कहा कि यह यात्रा उसके लिए कठिन होगी, तब आरती ने मुस्कुरा कर यह जिम्मेदारी अपने सिर ली और अब उन्हें पालकी पर बैठाकर वापसी यात्रा भी पूरी कर रही हैं। पुष्पा ने यह भी कहा कि उन्हें अपनी बहू और पोतियों पर गर्व है। यह उदाहरण न केवल परिवारिक रिश्तों की मिठास को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि आस्था का कोई रूप या सीमा नहीं होती।

जैसे-जैसे सावन नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे शिवभक्तों की आस्था हरिद्वार में आकार लेने लगी है। 11 जुलाई से आरंभ हो रही कांवड़ यात्रा के पहले ही लाखों कांवड़िए हरिद्वार पहुंचने लगे हैं। हर कोई अपने-अपने तरीके से भोलेनाथ को प्रसन्न करने की कोशिश में लगा है। कोई पैदल यात्रा कर रहा है, तो कोई समूह बनाकर सामूहिक रूप से जल भर रहा है। लेकिन इस यात्रा में जो भावना सबसे ऊपर उठ रही है, वह है सेवा और समर्पण की। यही कारण है कि इस बार की कांवड़ यात्रा केवल भक्ति का नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं का भी पर्व बन चुकी है। ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से लेकर चातुर्मास तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं और इस दौरान भगवान शिव ही सृष्टि की देखरेख करते हैं। इसलिए सावन में शिव की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।

हरिद्वार, गंगोत्री और ऋषिकेश जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल लेकर देशभर के शिवमंदिरों में अर्पित किया जाता है, ताकि भोलेनाथ प्रसन्न हो सकें। इस बार जो दृश्य हरिद्वार में उभरकर सामने आया, वह केवल एक व्यक्तिगत कहानी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक संदेश है कि सास-बहू जैसे रिश्तों में भी कितनी गहराई और पवित्रता हो सकती है, अगर भावनाएं सच्ची हों। आरती ने यह साबित कर दिया कि सिर्फ बेटा ही नहीं, एक बहू भी अपने सास-ससुर के लिए वही श्रद्धा रख सकती है, जो एक संतान अपने माता-पिता के लिए रखता है। उनके इस कार्य ने न सिर्फ हरिद्वार में बल्कि सोशल मीडिया पर भी एक सकारात्मक संदेश फैलाया है।

जब सावन की शुरुआत के साथ ही उत्तर भारत भगवान भोलेनाथ की भक्ति में सराबोर होगा, तब हापुड़ की आरती और उनकी सास पुष्पा की यह भावनात्मक यात्रा बार-बार यादों में जीवंत हो उठेगी। यह दृश्य सिर्फ एक परिवार की श्रद्धा नहीं, बल्कि उस गहराई की झलक है जहां पूजा-पाठ से ऊपर उठकर भक्ति, सेवा और रिश्तों की मिठास में समाहित हो जाती है। आरती ने जिस समर्पण से अपनी सास को पालकी पर बिठाकर हरिद्वार लाकर गंगाजल भरवाया, वह मिसाल आने वाले वर्षों में भी लोगों के दिलों को छूती रहेगी। यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि प्रेम, अपनापन और सच्चे भावों से भरी वह कथा बन गई है जो हर कांवड़िए को यह समझाएगी कि भगवान की भक्ति तब पूर्ण होती है जब उसमें रिश्तों की सेवा और आत्मीयता भी शामिल हो। यही आरती और पुष्पा की यात्रा को विशेष बना देता है।

संबंधित ख़बरें
गणतंत्र दिवस की शुभकामना
75वां गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

लेटेस्ट

ख़ास ख़बरें

error: Content is protected !!