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बरसात ने थामा रोमांच का रफ्तार, बंद हुई राफ्टिंग और जंगल सफारी

गंगा में तेज बहाव, पार्कों में बाढ़ का खतरा, मानसून ने उत्तराखंड के साहसिक पर्यटन पर ब्रेक लगाकर पर्यटकों को किया मायूस।

रामनगर। उत्तराखंड की वादियों में जब आसमान से सावन की बूंदें गिरने लगती हैं, तब प्रकृति अपनी सबसे सुरम्य छटा में नजर आती है, लेकिन इसी सुहावने मौसम में साहसिक पर्यटन जैसे रोमांचक अनुभवों पर कुछ महीनों के लिए विराम लग जाता है। गंगा की लहरें जो आम दिनों में पर्यटकों को अपने रोमांचक प्रवाह से मंत्रमुग्ध कर देती थीं, अब उन्हीं लहरों में उग्रता और मटमैले रंग का समावेश हो गया है। हर साल मानसून के आगमन के साथ नदियों का बहाव तीव्र हो जाता है, जिससे रिवर राफ्टिंग जैसी साहसिक गतिविधियों पर रोक लगाना अपरिहार्य हो जाता है। ऐसे समय में जहां ऋषिकेश और चंपावत जैसे प्रमुख पर्यटन केंद्रों पर राफ्टिंग बंद कर दी जाती है, वहीं उत्तराखंड के कई नेशनल पार्क और रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र भी पर्यटकों की पहुंच से बाहर हो जाते हैं।

गर्मी और बसंत के मौसम में जब गंगा की धारा साफ, नीली और शांत होती है, तब मुनिकीरेती से लेकर कौड़ियाला तक राफ्टिंग के लिए लंबी कतारें लगती हैं। परंतु मानसून की पहली बौछार के साथ ही यह दृश्य बदल जाता है। इस बार भी पानी के स्तर में वृद्धि और गाद के चलते प्रशासन ने पर्यटकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी राफ्टिंग गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। टिहरी के पुलिस अधीक्षक जेआर जोशी ने साफ तौर पर कहा है कि गंगा का प्रवाह अत्यधिक तेज हो चुका है और इस समय किसी भी प्रकार का रोमांच पर्यटकों के लिए खतरे से खाली नहीं है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि जलप्रेमियों को कुछ सप्ताह इंतजार करना होगा। आगामी 15 सितंबर के बाद ही राफ्टिंग की अनुमति मिलने की संभावना जताई जा रही है।

राफ्टिंग पर लगे इस विराम के साथ ही नेशनल पार्कों की गतिविधियां भी पूरी तरह ठप हो चुकी हैं। राजाजी, गंगोत्री, शिवालिक और मोतीचूर जैसे महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र इस समय बंद हैं। यहां तक कि कॉर्बेट नेशनल पार्क, जो कि हमेशा से देश-विदेश के पर्यटकों का पसंदीदा रहा है, उसकी प्रमुख रेंजें जैसे ढिकाला, बिजरानी, झिरना, ढेला और गर्जिया भी अब लॉक हो चुकी हैं। मानसून के समय इन इलाकों में जंगलों से उफनती नदियां और दलदली कीचड़ राहों को अवरुद्ध कर देती हैं। इसके अलावा भूस्खलन का भी खतरा लगातार बना रहता है, जिससे जंगल सफारी पूरी तरह असंभव हो जाती है। बारिश के दौरान पार्क की आंतरिक सड़कें टूट जाती हैं और वन्य जीवों की आवाजाही भी प्रभावित होती है, इसलिए वन विभाग द्वारा 15 अक्टूबर तक इन क्षेत्रों को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है।

बीते सीजन में कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क में लाखों पर्यटक पहुंचे थे। अकेले कॉर्बेट में लगभग एक लाख और राजाजी में हजारों की संख्या में प्रकृति प्रेमी पहुंचे थे, जिन्होंने वन्यजीवों के दीदार और प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। लेकिन वर्तमान हालातों में यह संख्या लगभग नगण्य हो चुकी है। बारिश की वजह से मार्ग बंद हो गए हैं और यात्रा कठिन हो गई है, जिससे पर्यटक उत्तराखंड की इन घाटियों से दूरी बनाए हुए हैं। यही कारण है कि होटल और होमस्टे में बुकिंग की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। पर्यटन से जुड़ा हर वर्ग इस मौसम में सन्नाटा झेल रहा है।

हालांकि, यह समय पूरी तरह वीरान भी नहीं कहा जा सकता। साहसिक खेलों और सफारी के अलावा उत्तराखंड में कुछ ऐसे शांत स्थल भी मौजूद हैं, जहां पर्यटक अभी भी प्रकृति के करीब रह सकते हैं। लैंसडाउन जैसे हिल स्टेशन, जो घने जंगलों से घिरा है लेकिन बाढ़ और भूस्खलन से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है, वहां पर पर्यटक अब भी शांति और ठंडक का अनुभव ले सकते हैं। यह स्थान मानसून के मौसम में हरियाली और बादलों की चादर ओढ़े जबरदस्त दृश्य प्रस्तुत करता है। चकराता, जो देहरादून के नजदीक स्थित है, एक और विकल्प है, जहां बारिश का असर कम होता है और मौसम सुहावना बना रहता है।

ऋषिकेश भी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है। यहां के घाट, योग संस्थान, आश्रम और प्राकृतिक दृश्य आज भी सैलानियों के स्वागत में तत्पर हैं। जहां राफ्टिंग पर रोक है, वहीं ध्यान और योग के माध्यम से आत्मिक शांति की तलाश करने वालों के लिए यह स्थान अब भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। साथ ही गंगा किनारे की संध्याएं, आरती और भक्ति की स्वर लहरियां अब भी मन को सुकून देती हैं। प्रशासन भी लगातार अनाउंसमेंट के जरिए लोगों को घाटों से दूर रहने की अपील कर रहा है, ताकि कोई अनहोनी न हो।

इस मानसूनी अंतराल को पर्यटन के लिए पूरी तरह से बाधा नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह वह समय है जब प्रकृति अपने को नया जीवन देती है और एक बार फिर तैयार होती है अगले सीजन की रौनक के लिए। हालांकि इस दौरान जो पर्यटक साहसिक अनुभवों से वंचित रह जाते हैं, उन्हें अगली योजना बनाने के लिए यह मौसम एक अवसर देता है। 15 सितंबर के बाद जब नदियों का जलस्तर सामान्य होगा और 15 अक्टूबर को जब नेशनल पार्कों के दरवाजे खुलेंगे, तो एक बार फिर उत्तराखंड की वादियों में राफ्टिंग की गूंज और जंगलों की खामोशी को तोड़ती सफारी की गाड़ियां दौड़ती नजर आएंगी। तब तक उत्तराखंड की यही अपील है—प्रकृति को उसके इस विराम के साथ स्वीकारें और उन जगहों की ओर कदम बढ़ाएं, जो अब भी खुले हैं और शांति से भरपूर हैं।

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