चमोली। उत्तराखंड की पावन भूमि चमोली से आज वह अद्भुत और आत्मा को कंपा देने वाला दृश्य सामने आया, जब प्रातः ठीक 6 बजे विधिपूर्वक पूजन-अर्चन के बाद देवभूमि के धड़कते हृदय बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। जैसे ही मंदिर के द्वार खुले, मानो सृष्टि के हृदय में भक्तिरस की गंगा उमड़ पड़ी हो। भगवान बदरी-विशाल की अलौकिक मूर्ति के प्रथम दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु रातभर से जमा थे, जिन पर हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा की गई और वातावरण को पूर्णतः दिव्यता से सराबोर कर दिया गया। यह दृश्य केवल एक तीर्थ यात्रा नहीं था, यह आत्मा की यात्रा थी, जहाँ श्रद्धा ने सीमाएं लांघ दीं और हर कोई खुद को सौभाग्यशाली मान रहा था कि वह इस दुर्लभ क्षण का साक्षी बना।
इस पावन घड़ी में जब भगवान बदरी विशाल के मंदिर के सिंह द्वार को खोला गया, तो वहाँ की दिव्यता और अलौकिक भव्यता ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। वैदिक मंत्रों की ध्वनि और तीर्थ पुरोहितों द्वारा की जा रही पूजा के साथ-साथ जैसे ही आर्मी बैंड की मधुर धुन और ढोल-नगाड़ों की गूंज वातावरण में घुली, वैसे ही वहाँ मौजूद जनसमूह “जय बदरी विशाल” और “बदरीनाथ भगवान की जय” के जयकारों से आसमान गूंजा उठा। यह वह क्षण था जब आध्यात्मिक ऊर्जा ने धाम के हर कोने को अपनी पवित्र आभा से भर दिया। फूलों से लदे मंदिर की शोभा ने वहाँ की आध्यात्मिक गरिमा को चमत्कारी सौंदर्य में बदल दिया और श्रद्धालुओं की आंखें इस दृश्य को देख नम हो गईं।
फूलों से सुशोभित यह दिव्य धाम आज जैसे देवताओं की बारात में परिवर्तित हो गया हो। करीब 15 क्विंटल रंग-बिरंगे फूलों से मंदिर की साज-सज्जा की गई, जिसने धाम की शोभा को स्वर्गिक बना दिया। प्रातःकाल से ही मुख्य पुजारी रावल, धर्माधिकारी और वेदपाठी मंदिर के गर्भगृह में विशेष पूजा-अर्चना में लीन हो गए। विधिपूर्वक माता लक्ष्मी को गर्भगृह से निकालकर मंदिर की परिक्रमा कराते हुए उन्हें लक्ष्मी मंदिर में विराजमान किया गया। इस पूरे अनुष्ठान ने वहां मौजूद श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक रोमांच की पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया। यह केवल एक रीति नहीं थी, यह धर्म की वह जीवित धड़कन थी, जिसे हर आस्था से जुड़े व्यक्ति ने महसूस किया।
इसके पश्चात, परंपरा अनुसार भगवान कुबेर और उद्धव जी को बदरी विशाल मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया। शुभ मुहूर्त में जब भगवान की चतुर्भुज मूर्ति को घृत कंबल से हटाकर विधिवत अभिषेक किया गया, तब जल की हर बूंद जैसे उनके चरणों में अर्पित आस्था की वर्षों की प्रतीक्षा थी। उनके श्रृंगार की भव्यता ने वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति की आत्मा को सजीव कर दिया। अब आने वाले छह महीनों तक बैकुंठ धाम में भगवान बदरी विशाल, उद्धव, कुबेर, नारद और नर-नारायण के दिव्य दर्शन श्रद्धालुओं को प्रतिदिन उपलब्ध रहेंगे। यह एक ऐसा दुर्लभ अवसर है, जो हर श्रद्धालु के जीवन की सबसे पवित्र स्मृति बनकर हमेशा के लिए हृदय में बस जाएगा।
केवल मुख्य मंदिर ही नहीं, बल्कि धाम की परिक्रमा में स्थित गणेश, घंटाकर्ण, आदि केदारेश्वर और आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर के कपाट भी आज की शुभ घड़ी में खोल दिए गए। दूर-दराज से आए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ इस ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनी और हर किसी के मन में एक ही भाव था—धन्य हो वह पल, जो इस परम अवसर का हिस्सा बना। भारत के विभिन्न कोनों से आए श्रद्धालु न केवल दर्शन के लिए आए थे, बल्कि वे अपनी आत्मा को इस धर्मधरा की पवित्रता में डुबोने आए थे। जैसे ही पूजा पूरी हुई, हर दिशा से उठती आरती की लौ और भक्तों की प्रार्थनाएं, धाम को किसी स्वर्गिक लोक में बदल रही थीं।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, यह विश्वास सदियों से जीवित है कि वर्ष भर में केवल छह महीने (ग्रीष्मकालीन) भगवान विष्णु की पूजा मनुष्यों द्वारा होती है, जबकि शेष छह महीने (शीतकालीन) देवता स्वयं भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और इन महीनों में देवर्षि नारद को मुख्य पुजारी माना जाता है। यह विश्वास और यह परंपरा न केवल आध्यात्मिकता की जड़ें हैं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की वह धरोहर है जो समय के हर चक्र को भक्ति में परिवर्तित करती रही है। बदरीनाथ धाम आज केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि आस्था का सजीव सागर बन गया है, जहाँ हर लहर श्रद्धा से उठती है और हर बूंद मोक्ष की ओर ले जाती है।