काशीपुर(बकुल डोनाल्ड)। ज़रूरतों का समाधान बनने की बजाय काशीपुर का नवनिर्मित फ्लाईओवर आज एक विकराल चुनौती के रूप में खड़ा हो गया है, जो लोगों की जान पर बन आने की स्थिति तक पहुँच चुका है। करोड़ों रुपये की लागत से निर्मित यह पुल ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है, और इसके जिम्मेदार हैं वही हाइट बैरियर्स, जो भारी वाहनों की एंट्री रोकने के नाम पर मौत के मुहाने बनते जा रहे हैं। बीते कुछ महीनों में कई बार ऐसा हुआ है कि ट्रक और ऊँचे कंटेनर इन बैरियर्स में अटक गए, जिसके चलते घंटों लंबा जाम लगा, न सिर्फ स्थानीय नागरिकों की दिनचर्या बाधित हुई, बल्कि कई बार एम्बुलेंस तक इस जाम में फँसी रही। हैरानी की बात यह है कि यह सब बार-बार होने के बावजूद प्रशासन की तरफ से अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है।
मौजूदा हालत यह है कि काशीपुर का यह फ्लाईओवर एक ऐसा यातायात बाधा बन गया है, जो आम जनता को हर रोज तनाव, खतरे और असुविधा में झोंक रहा है। न तो इसके प्रवेश मार्ग पर कोई चेतावनी बोर्ड है, न ही कोई ऊँचाई अलर्ट सिस्टम, जिससे दूर-दराज़ से आने वाले वाहन चालकों को जानकारी मिल सके कि किस स्तर के वाहन यहाँ से गुज़र सकते हैं और कौन नहीं। यही वजह है कि भारी वाहन चालकों को जैसे ही बैरियर से टक्कर होती है, सारा ट्रैफिक अव्यवस्थित हो जाता है। स्थानीय निवासी राकेश शर्मा का कहना है कि “यह फ्लाईओवर तो जैसे रोज़ की आफत बन चुका है। बड़े वाहन तो हर दो-तीन दिन में फँसते ही हैं और फिर लोग घंटों उसी चिलचिलाती धूप या बारिश में खड़े रहते हैं।”

समस्या की गहराई को समझने वाले ट्रैफिक विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि यह सिर्फ यातायात का मसला नहीं है, यह सीधे आम नागरिकों की सुरक्षा और शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर पर उठ रहे गंभीर सवालों से जुड़ा मामला है। अगर जल्द से जल्द कोई ठोस हल नहीं निकाला गया, तो ये हाइट बैरियर्स कभी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। अब तक भले ही किसी की जान नहीं गई हो, लेकिन जब कभी कोई ट्रक बैरियर में फंसता है तो वहां मौजूद लोगों की जान सांसत में आ जाती है। स्थिति ऐसी बन चुकी है कि राहगीर और आसपास के दुकानदार भी अब इन बैरियर्स के नज़दीक खड़े होने से कतराने लगे हैं।
बाजार की हलचल और कारोबार की रफ्तार भी इस फ्लाईओवर के चलते अब बुरी तरह प्रभावित हो रही है, और व्यापारिक तबका अब खुलकर प्रशासन से जवाब मांग रहा है। व्यापार मंडल अध्यक्ष प्रभात साहानी की ओर से कई बार नगर प्रशासन को चेताया जा चुका है कि इस खतरे को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है। उनका साफ़ कहना है कि अगर प्रशासन को लगता है कि सिर्फ़ हाइट बैरियर्स लगाकर उसने अपनी ज़िम्मेदारी निभा दी है, तो यह सबसे बड़ी भूल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि या तो इन बैरियर्स को पूरी तरह हटा दिया जाए और उनकी जगह एक व्यावहारिक, सुरक्षित और बेहतर सिस्टम लागू किया जाए, या फिर आधुनिक तकनीक के सहारे ऐसे डिजिटल अलर्ट लगाए जाएं जो ऊँचे वाहनों को पहले ही चेतावनी दे सकें। व्यापारियों की मांग है कि यह पुल सहूलियत का रास्ता बने, न कि रोज़ की आफ़त का नाम।

प्रशासन की ओर से बरती जा रही उदासीनता ने लोगों की चिंताओं को और गहरा कर दिया है। अब तक नगर निगम हो या परिवहन विभाग, दोनों ही इस समस्या पर मूकदर्शक बने बैठे हैं, जैसे किसी बड़ी अनहोनी का इंतज़ार कर रहे हों। लोगों का विश्वास सरकारी व्यवस्था से डगमगाने लगा है और रोजमर्रा के यात्रियों के बीच यह चर्चा आम हो चुकी है कि क्या कोई बड़ी दुर्घटना होने के बाद ही अधिकारी जागेंगे? हालात यह संकेत दे रहे हैं कि जल्द ही अगर किसी निर्णय पर नहीं पहुँचा गया तो यह फ्लाईओवर भविष्य में न केवल जानलेवा साबित हो सकता है, बल्कि शहर के लिए बदनामी की वजह भी बन जाएगा।
काशीपुर की जनता का सब्र जवाब दे रहा है और उनका स्पष्ट कहना है कि इस फ्लाईओवर को अब झंझट नहीं, बल्कि राहत का प्रतीक बनाया जाए। रोज़ाना इस पुल पर जो जानलेवा नज़ारे देखने को मिलते हैं, वो प्रशासन की नींद तोड़ने के लिए काफी होने चाहिए, लेकिन अफ़सोस की बात है कि अधिकारी अब तक आंखें मूंदे बैठे हैं। शहरवासी चाहते हैं कि इन हाइट बैरियर्स की पूरी तरह से फिर से डिज़ाइनिंग हो, हर कोने पर स्पष्ट और बड़े चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं, और ऐसे तकनीकी उपाय किए जाएं जो ड्राइवरों को पहले से अलर्ट कर सकें। इसके साथ ही ट्रैफिक गाइडलाइंस का सख्ती से पालन और उसकी निगरानी भी अनिवार्य है। अब यह वक्त की मांग है कि यह फ्लाईओवर सुविधा का रास्ता बने, न कि मौत की गलियों में बदलता जाए। सवाल यही है-प्रशासन अब जागेगा या किसी शव यात्रा के बाद?