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फेसबुकिया पत्रकार को काशीपुर कोर्ट से बड़ा झटका, जमानत याचिका खारिज

सोशल मीडिया पत्रकार की मुश्किलें बढ़ीं: कोर्ट ने जमानत ठुकराई, समर्थकों में निराशा, विरोधियों ने बताया न्याय की जीत

काशीपुर। काशीपुर कोर्ट में एक बहुचर्चित मामले में पत्रकारिता के नाम पर फेसबुक पर सक्रिय रहने वाले विकास गुप्ता को तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने उनकी जमानत अर्जी को खारिज कर दिया, जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। इस सुनवाई के दौरान, विकास गुप्ता की पुरानी क्रिमिनल हिस्ट्री को भी वकीलों द्वारा उजागर किया गया, जिससे उनकी रिहाई की उम्मीदें धूमिल पड़ गईं।

जमानत याचिका पर बहस के दौरान, अधिवक्ता आनंद रस्तोगी, संजीव आकाश, मुजीब अहमद और एडवोकेट अमित चौहान ने कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कोर्ट के सामने विकास गुप्ता की पुरानी गतिविधियों और उन विवादों का हवाला दिया, जिनमें उनका नाम पहले भी आ चुका है। हालांकि, पुलिस रिकॉर्ड में कोई पुराना आपराधिक मामला दर्ज नहीं था, लेकिन वकीलों ने अपनी दलीलों से अदालत को यह समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि विकास गुप्ता की छवि विवादित रही है और उन पर पहले भी गंभीर आरोप लगते रहे हैं। वकीलों के इन तर्कों के बाद कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी, जिससे उनके समर्थकों को बड़ा झटका लगा।

इस दौरान अधिवक्ता संजीव आकाश ने अदालत में दलील पेश करते हुए कहा कि अभियुक्त एक शातिर प्रवृत्ति का व्यक्ति है और यदि उसे जमानत दी जाती है, तो वह वादी को धमकाने का प्रयास कर सकता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि मामला गंभीर और अजमानतीय प्रकृति का है, इसलिए अभियुक्त को जमानत देना न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। अधिवक्ता संजीव आकाश ने तर्क दिया कि अभियुक्त की रिहाई से वादी को खतरा उत्पन्न हो सकता है और साक्ष्यों से छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि अभियुक्त को जमानत न दी जाए, जिससे न्याय की निष्पक्षता बनी रहे और वादी को किसी भी तरह का दबाव महसूस न हो।

फेसबुकिया पत्रकार विकास गुप्ता

अधिवक्ता आनंद रस्तोगी ने इस मामले पर मिडिया से बात करते हुए कहा कि विकास गुप्ता का अतीत विवादों से भरा रहा है। उन्होंने कई बार ऐसे कार्य किए हैं जो कानून की दृष्टि से संदेहास्पद हैं। हमने अदालत के सामने ठोस दलीलें रखीं, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनकी जमानत किसी भी तरह से उचित नहीं है। यदि उन्हें जमानत मिल जाती, तो यह न्याय की मूल भावना के खिलाफ होता। हम न्यायपालिका के इस फैसले का पूरा सम्मान करते हैं और मानते हैं कि यह समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश देगा। कानून सबके लिए समान है, और किसी को भी इसका उल्लंघन करने की छूट नहीं दी जा सकती।

अधिवक्ता संजीव आकाश ने भी अपनी मिडिया से कहा कि इस मामले में अदालत ने बिल्कुल सही फैसला लिया है। विकास गुप्ता का व्यवहार पहले भी संदेह के घेरे में रहा है और उसे जमानत देने से गलत उदाहरण स्थापित होता। समाज में कानून-व्यवस्था बनाए रखना सबसे जरूरी है, और यही कारण है कि अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी। यह फैसला उन लोगों के लिए एक सबक है जो सोचते हैं कि वे कानून से बच सकते हैं। हमें न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है और यह निर्णय पूरी तरह न्यायसंगत है।

अब सवाल यह है कि क्या विकास गुप्ता इस फैसले को चुनौती देकर ऊपरी अदालत में अपील करेंगे, या फिर उन्हें फिलहाल जेल में ही रहना होगा? कानूनी जानकारों का मानना है कि अगर वे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं, तो वहां भी उन्हें अपनी पुरानी छवि को लेकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इस पूरे घटनाक्रम पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि सोशल मीडिया पर एक्टिव रहकर खुद को पत्रकार कहने वाले विकास गुप्ता के मामले में आए इस फैसले से यह साफ हो गया है कि अदालतें अब तथाकथित फेसबुक पत्रकारों के मामलों को गंभीरता से ले रही हैं।

फिलहाल, विकास गुप्ता के समर्थकों में निराशा का माहौल है, जबकि उनके विरोधियों का मानना है कि यह फैसला पूरी तरह न्यायोचित है। समर्थक इसे एक सोची-समझी साजिश करार दे रहे हैं और इसे चुनौती देने की बात कर रहे हैं। वहीं, उनके विरोधी इसे कानून की जीत बता रहे हैं। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस तेज हो गई है, जहां लोग अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। कुछ लोग इसे निष्पक्ष न्याय करार दे रहे हैं, जबकि अन्य इसे मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं। विकास गुप्ता के पक्षधर मानते हैं कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है, जबकि उनके विरोधियों का कहना है कि अदालत ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया है।

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