काशीपुर। आवास विकास क्षेत्र में स्थित बेथसदा क्रिश्चियन चर्च में रविवार को पुनरुत्थान पर्व की उमंग और आस्था का अपूर्व संगम देखने को मिला, जब ईस्टर संडे के मौके पर पूरा परिसर भक्तिभाव और उल्लास से भर उठा। प्रभु यीशु मसीह के पुनर्जीवन की स्मृति में मनाया जाने वाला यह पर्व ईसाई समाज के लिए न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और आशा की उन अनुभूतियों का प्रतीक भी है जो मानवीय जीवन को नई दिशा देती हैं। इस अवसर पर चर्च को अत्यंत मनोहारी ढंग से सजाया गया, जहां फूलों और रंगीन रोशनियों की सजीव छटा ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भक्तों की भीड़ सुबह से ही चर्च में जुटने लगी थी और सभी ने इस दिन को आध्यात्मिक उल्लास से मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चर्च परिसर में जो श्रद्धा और ऊर्जा का संचार हुआ, वह इस पर्व के महत्व को उजागर करता दिखा।
ईस्टर पर्व के दौरान आयोजित विशेष प्रार्थना सभा में बिशप डेज़ी रोज़ ने बाइबल से प्रेरणा लेकर उपस्थित समुदाय को प्रभु यीशु मसीह के जीवन, उनके बलिदान और पुनरुत्थान के आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि यह दिन उन सभी के लिए एक प्रकाश की किरण की तरह है जो अंधकार से बाहर निकलकर सत्य, करुणा और क्षमा के पथ पर चलना चाहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि यीशु मसीह का पुनर्जीवन यह संदेश देता है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का प्रतीक है। बिशप डेज़ी रोज़ ने कहा कि ईस्टर संडे ईसाई समाज के लिए अत्यंत पवित्र और आशा से भरपूर दिन होता है, क्योंकि यह दिन प्रभु यीशु मसीह के मृत्यु के बाद पुनर्जीवित होने की घटना की स्मृति में मनाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और पुनर्जन्म की उस भावना का प्रतीक है जो हर व्यक्ति के जीवन को आशा की नई किरण देती है। उन्होंने कहा कि यीशु मसीह का बलिदान यह सिखाता है कि अंधकार के बाद प्रकाश अवश्य आता है और हर दुख के बाद एक नई शुरुआत होती है। बिशप डेज़ी ने यह भी कहा कि आज के दिन हमें प्रभु की शिक्षाओं पर चलने और समाज में प्रेम, सेवा तथा भाईचारे का प्रसार करने का संकल्प लेना चाहिए, यही पुनरुत्थान दिवस का सच्चा संदेश है। चर्च के भीतर जैसे-जैसे बिशप डेज़ी रोज़ के शब्द गूंजे, उपस्थित जन समुदाय भावविभोर होता गया और हर किसी के मन में श्रद्धा की भावना और अधिक गहराती चली गई। इस अवसर ने हर हृदय को छू लेने वाली अनुभूति दी, जिसने एकता और भाईचारे का संदेश प्रसारित किया।

आराधना सभा का संचालन चिया डोनाल्ड और सामर्थ डोनाल्ड की जोड़ी ने किया, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को बड़ी ही कुशलता और श्रद्धा के साथ संपन्न कराया। उनके सधे हुए संचालन और मधुर वाणी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भावनाओं की गहराई में डुबो दिया। चिया डोनाल्ड और सामर्थ डोनाल्ड ने पुनरुत्थान पर्व की आराधना का संचालन करते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं की गहराई और महत्व से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि ईस्टर केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह उस दिव्य संदेश का प्रतीक है जिसमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जीवन के रहस्य छिपे हैं। चिया डोनाल्ड ने बताया कि यीशु मसीह का पुनर्जीवन यह दर्शाता है कि सत्य और प्रेम कभी पराजित नहीं होते, चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं। वहीं सामर्थ डोनाल्ड ने कहा कि आज के दौर में जब चारों ओर अविश्वास और द्वेष फैला हुआ है, तब प्रभु यीशु का जीवन हमें निःस्वार्थ सेवा, करुणा और क्षमा का मार्ग दिखाता है। उन्होंने उपस्थित जनसमुदाय से आग्रह किया कि वे प्रभु के बताए मार्ग पर चलकर समाज में सकारात्मकता फैलाएं और इस पावन पर्व को केवल उत्सव नहीं, एक आंतरिक जागरण बनाएं।

ईस्टर संडे के अवसर पर आयोजित प्रार्थना सभा में जो भजन-कीर्तन प्रस्तुत किए गए, उन्होंने वहां मौजूद हर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को छू लिया। इन भक्तिमय प्रस्तुतियों ने न सिर्फ वातावरण को अत्यंत आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण बना दिया, बल्कि सभी श्रद्धालुओं के भीतर नई ऊर्जा और आस्था का संचार भी किया। भजनों की मधुर स्वर लहरियाँ जब चर्च की दीवारों से टकरा रहीं थीं, तब ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं प्रभु यीशु मसीह का आशीर्वाद उन लहरियों के माध्यम से लोगों तक पहुंच रहा हो। विशेष प्रार्थनाओं में प्रभु यीशु के जीवन के संघर्ष, उनका त्याग, उनका धैर्य और उनका स्नेह याद किया गया। इस दौरान प्रभु से संपूर्ण मानवता के कल्याण और शांति की कामना की गई। उपस्थित लोगों की आँखों में प्रभु के प्रति भक्ति, कृतज्ञता और भावनात्मक एकता की स्पष्ट झलक दिखाई दे रही थी, जो इस पावन पर्व की आत्मा को साकार कर रही थी।
इस पावन आयोजन में छतरपाल, अनिकेत, बबली, अभिषेक, दीप्ति, अमरपाल, सामर्थ और वंशिका सहित बड़ी संख्या में ईसाई समुदाय के सदस्य सम्मिलित हुए और सभी ने मिलकर इस पुनरुत्थान पर्व को एक सामाजिक और आध्यात्मिक उत्सव में बदल दिया। कार्यक्रम की विशेष बात यह रही कि इसमें सभी आयु वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया, जिससे यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामूहिक एकता और सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बन गया। उपस्थित लोगों ने आपस में शुभकामनाएं बांटीं, एक-दूसरे को गले लगाया और प्रभु के पुनरुत्थान की इस स्मृति को एक नई उमंग और ऊर्जा के साथ अपने जीवन में आत्मसात किया। इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि जब आस्था और उत्सव एक साथ आते हैं, तो समाज में एक नई जागरूकता और सांप्रदायिक सौहार्द का उदय होता है।