रामनगर। पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में शोध प्रकोष्ठ द्वारा सत्र 2024-25 के नव प्रवेशित शोधार्थियों के लिए एक अभिविन्यास कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य शोधार्थियों को शोध प्रक्रिया, उसकी गुणवत्ता, विषय चयन और संभावित चुनौतियों के प्रति जागरूक करना था। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एम.सी. पाण्डे ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर शोध प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. ललित मोहन ने कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य प्रो. एम.सी. पाण्डे, सभी प्राध्यापकों एवं नव प्रवेशित शोधार्थियों का हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत किया।
कार्यक्रम में शोध प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. ललित मोहन ने शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने विश्वविद्यालय के दिशा-निर्देशों के अनुरूप शोधार्थियों की उपस्थिति और अनुसंधान प्रक्रिया से जुड़ी विभिन्न महत्वपूर्ण जानकारियों को साझा किया। उन्होंने शोधार्थियों को नियमित कक्षाओं में भाग लेने और अनुसंधान पद्धति को गंभीरता से अपनाने का सुझाव दिया।
कार्यक्रम में विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने शोध के विविध पहलुओं पर गहन विमर्श किया। उन्होंने शोध की बुनियादी अवधारणाओं से लेकर उसकी आधुनिक प्रवृत्तियों तक विस्तृत चर्चा की। शोध के महत्व, उसकी गुणवत्ता, नवाचार और वैश्विक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर भी जोर दिया गया। विशेषज्ञों ने शोध में आने वाली संभावित चुनौतियों और उनके समाधान के उपायों पर भी प्रकाश डाला। शोध कार्य में सटीक दृष्टिकोण अपनाने, उचित पद्धतियों का चयन करने और नवीन अनुसंधानों से जुड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया। मंच संचालन कर रहे डॉ. पवन टम्टा ने शोध की भूमिका और उसके प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने शोधार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि एक अच्छा शोध समाज, शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।जंतु विज्ञान विभाग प्रभारी डॉ. शंकर मंडल ने शोध की मूलभूत अवधारणाओं, शोध पद्धतियों और संभावित चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि शोध एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें धैर्य और निरंतरता बेहद आवश्यक हैं।

अर्थशास्त्र विभाग प्रभारी प्रो. अनुमिता अग्रवाल ने शोध की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा की और इसे वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि शोध केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे समाज और आर्थिक परिवर्तनों से जोड़कर एक सार्थक दिशा देनी चाहिए। उन्होंने शोधार्थियों को सुझाव दिया कि वे अपने शोध विषयों का चयन समकालीन घटनाओं, सामाजिक चुनौतियों और आर्थिक परिवर्तनों के आधार पर करें, ताकि उनके निष्कर्ष व्यावहारिक और प्रभावशाली बन सकें। प्रो. अग्रवाल ने यह भी कहा कि एक सफल शोध वही होता है, जो न केवल सैद्धांतिक रूप से मजबूत हो, बल्कि वास्तविक समस्याओं के समाधान में भी योगदान दे सके। उन्होंने शोधार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने शोध को नवाचार और रचनात्मकता से जोड़कर नई संभावनाएं तलाशें।
मनोविज्ञान विभाग प्रभारी प्रो. अनीता जोशी ने शोध में आने वाली संभावित समस्याओं, उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने शोधार्थियों को जागरूक करते हुए बताया कि एक प्रभावी शोध वही होता है, जो न केवल सैद्धांतिक रूप से मजबूत हो, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता भी रखता हो। उन्होंने कहा कि शोध प्रक्रिया के दौरान कई चुनौतियां सामने आती हैं, जैसे उपयुक्त शोध प्रश्नों का चयन, विश्वसनीय डेटा संग्रह, विश्लेषण की सटीकता और निष्कर्षों की प्रासंगिकता। इन सभी पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है ताकि शोध न केवल अकादमिक स्तर पर उपयोगी हो, बल्कि समाज के व्यापक हित में भी योगदान दे सके। प्रो. जोशी ने शोधार्थियों को सलाह दी कि वे अपने अध्ययन को व्यवहारिक और समस्या-समाधान केंद्रित बनाएं, जिससे उनका शोध अधिक प्रभावी बन सके।
गणित विभाग प्रभारी डॉ. प्रमोद जोशी ने शोध के बहुआयामी स्वरूप पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि शोध कार्य केवल सैद्धांतिक ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें गणितीय मॉडलिंग और सांख्यिकी का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। शोधार्थियों को अपने अध्ययन में गणितीय विश्लेषण को शामिल करने पर जोर देते हुए उन्होंने बताया कि किसी भी शोध की सफलता इस पर निर्भर करती है कि उसमें कितनी गहराई और सटीकता है। गणितीय मॉडलिंग न केवल शोध के निष्कर्षों को मजबूत बनाती है, बल्कि जटिल समस्याओं का प्रभावी समाधान खोजने में भी सहायता करती है। उन्होंने शोधार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने विषय में गणितीय दृष्टिकोण अपनाएं, जिससे उनके शोध अधिक तर्कसंगत और वैज्ञानिक आधार पर खरे उतर सकें। गणित, शोध की विश्वसनीयता और निष्कर्षों की पुष्टि करने में अहम भूमिका निभाता है।
संस्कृत विभाग प्रभारी डॉ. मूलचंद शुक्ला ने शोध में परंपरा और आधुनिकता के सामंजस्य पर जोर देते हुए कहा कि शोध तभी सार्थक और सफल माना जाता है जब वह प्राचीन ज्ञान का सम्मान करते हुए नवाचार को भी अपनाए। उन्होंने बताया कि भारत का समृद्ध ग्रंथ साहित्य, वेद, उपनिषद और शास्त्र न केवल हमारे अतीत की गवाही देते हैं, बल्कि आधुनिक शोध के लिए भी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। शोधार्थियों को चाहिए कि वे इन प्राचीन ग्रंथों से प्रेरणा लेकर अपने शोध कार्य को एक नई दिशा दें। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि शोध का उद्देश्य केवल नवीनता नहीं होना चाहिए, बल्कि यह परंपरा और आधुनिकता के बीच एक मजबूत पुल बनाने का कार्य भी करे। डॉ. शुक्ला ने शोधार्थियों को सलाह दी कि वे अपने शोध को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करें, ताकि भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्व आधुनिक शोध में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो सके।
हिन्दी विभाग प्रभारी प्रो. पुनीता कुशवाहा ने अपने शोध निर्देशन के अनुभव साझा करते हुए शोधार्थियों को अनुसंधान में रचनात्मकता और मौलिकता बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि एक अच्छा शोध वही होता है, जो न केवल विषयवस्तु को गहराई से परखता है, बल्कि उसमें नए दृष्टिकोण और विचारों को भी समाहित करता है। उन्होंने शोध में निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखने पर विशेष जोर दिया, ताकि यह भविष्य के अनुसंधानों के लिए एक मजबूत आधार बन सके। उन्होंने कहा कि अनुसंधान केवल जानकारी एकत्र करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह नए विचारों को जन्म देने और समाज को एक नई दिशा प्रदान करने का माध्यम है। प्रो. कुशवाहा ने शोधार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि वे अपने विषय की व्यापकता को समझें और उसमें नवीन दृष्टिकोण जोड़कर अपने शोध को सार्थक और प्रभावी बनाएं।
महाविद्यालय के चीफ प्रॉक्टर प्रो. एस.एस. मौर्य ने शोध के व्यावहारिक पहलुओं और उसकी सामाजिक उपयोगिता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि शोध केवल सैद्धांतिक ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसका उद्देश्य समाज को वास्तविक लाभ पहुंचाना होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक प्रभावी शोध वही होता है, जो समाज की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करे और उसमें सुधार लाने में सहायक हो। प्रो. मौर्य ने शोधार्थियों को सलाह दी कि वे अपने विषय के व्यावहारिक पहलुओं को गहराई से समझें और अपने अध्ययन में उन बिंदुओं को शामिल करें, जिनका वास्तविक जीवन में उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि शोध कार्य में निष्पक्षता, गहन अध्ययन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण आवश्यक है, ताकि उसका प्रभाव दीर्घकालिक हो। अंत में, उन्होंने शोधार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने अनुसंधान को समाज की उन्नति का माध्यम बनाएं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य प्रो. एम.सी. पाण्डे ने शोधार्थियों को उनके शोध निर्देशन और नवाचार से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कीं। उन्होंने बताया कि एक प्रभावी शोध के लिए शोध निर्देशन और शोधार्थी के बीच सामंजस्य अत्यंत आवश्यक है, जिससे शोध का स्तर उच्चतम श्रेणी का सुनिश्चित हो सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक अच्छा शोध वही होता है, जिसमें मौलिकता और नवीन दृष्टिकोण समाहित हो। शोध की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सतत प्रयास और नवीनता की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय में शोधार्थियों को उत्कृष्ट स्तर की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्होंने शोधार्थियों को प्रेरित किया कि वे अपने शोध कार्य को समाज के हित में उपयोगी बनाएं और उसे व्यवहारिक जीवन से जोड़कर एक सार्थक दिशा दें, जिससे उनके अध्ययन का प्रभाव व्यापक और स्थायी हो सके।
इस कार्यक्रम में शोध प्रकोष्ठ की सदस्य डॉ. ममता भादोला जोशी समेत कई प्रतिष्ठित शोध निर्देशक उपस्थित रहे, जिनमें डॉ. गुरप्रीत सिंह, डॉ. मूलचंद्र शुक्ला, डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, डॉ. अल्का, डॉ. डी.एन. जोशी, डॉ. दीपक खाती, डॉ. नीमा राना और डॉ. देव आशीष प्रमुख रूप से शामिल रहे। इसके अलावा, राधे हरि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, काशीपुर, बाजपुर और कोटाबाग से भी कई शोधार्थी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
महाविद्यालय में प्री-पीएचडी कोर्स वर्क की कक्षाएं प्रारंभ हो चुकी हैं, जिससे शोधार्थियों को अपने अध्ययन और अनुसंधान को नई दिशा देने का अवसर मिलेगा। शोध प्रकोष्ठ के संयोजक डॉ. ललित मोहन ने सभी शोधार्थियों से आग्रह किया कि वे नियमित रूप से कक्षाओं में भाग लें और अपने शोध कार्य को पूर्ण गंभीरता से संपन्न करें। उन्होंने कहा कि एक अच्छा शोध तभी संभव है जब उसमें निरंतर अध्ययन, सटीक विश्लेषण और समर्पण हो। शोध केवल व्यक्तिगत उपलब्धि तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी योगदान देता है। उन्होंने शोधार्थियों को प्रोत्साहित किया कि वे अपने अनुसंधान में नवीन दृष्टिकोण अपनाएं और वैज्ञानिक पद्धतियों का अनुसरण करें। उन्होंने यह भी कहा कि शोधार्थी ही भविष्य के विद्वान, वैज्ञानिक और विचारक होते हैं, जिनके अनुसंधान से समाज को नई दिशा मिलती है।
शोधार्थियों के लिए यह अभिविन्यास कार्यक्रम बेहद लाभदायक साबित हुआ, क्योंकि इसमें उन्हें शोध प्रक्रिया की गहराइयों से अवगत कराया गया। महाविद्यालय का यह प्रयास निश्चित रूप से अनुसंधान क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देगा और शोधार्थियों को एक मजबूत आधार प्रदान करेगा। कार्यक्रम के अंत में सभी शोधार्थियों ने अपने अनुभव साझा किए और महाविद्यालय प्रशासन के इस प्रयास की सराहना की।