रामनगर। रामनगर स्थित पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका मुख्य विषय था “भारतीय ज्ञानपरंपरा वैदिक वाङ्मय के विशेष परिप्रेक्ष्य में”। इस कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. एम. सी. पाण्डे, चीफ प्राँक्टर प्रो. एस. एस. मौर्य और प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र ने किया। इस अवसर पर राजकीय इंटर कालेज रामनगर के पूर्व प्राचार्य डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र ने वैदिक वाङ्मय और भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संस्कृत का वैदिक वाङ्मय भारतीय ज्ञान परंपरा का स्तंभ है, जिसमें संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् और शिक्षा सहित वेदांग शामिल हैं।
डॉ. सत्यप्रकाश मिश्र ने अपने संबोधन में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि ये वेद भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रमुख स्रोत हैं। इन वेदों में दर्शन, साहित्य, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, खगोल विज्ञान, स्थापत्य, कृषि, संगीत और शिक्षा पद्धति जैसे विविध क्षेत्रों का ज्ञान समाहित है। उन्होंने यह भी कहा कि इस ज्ञान के अध्ययन के साथ-साथ हमें इसे अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है, क्योंकि ज्ञान का वास्तविक रूप तभी सामने आता है, जब हम उसे अपने आचरण में लागू करते हैं। मुख्य वक्ता ने जीवन में सदाचरण को अपनाने का संदेश देते हुए काव्य और अभिज्ञानशाकुंतल जैसे नाटकों के अध्ययन की भी सिफारिश की। उनका मानना था कि इन नाटकों से हमें न केवल साहित्यिक ज्ञान मिलता है, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को भी समझने का अवसर मिलता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत के अध्ययन से हम जीवन के प्रत्येक पहलू में गहराई और समृद्धि ला सकते हैं, जो हमें जीवन में सही मार्गदर्शन देता है।

चीफ प्राँक्टर प्रो. एस. एस. मौर्य ने अपने संबोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह परंपरा हमारे सांस्कृतिक और शैक्षिक जीवन की नींव है। उन्होंने बताया कि संस्कृत और वेदों के माध्यम से भारतीय समाज ने न केवल अपने समय के विज्ञान, गणित और दर्शन को उन्नति दी, बल्कि जीवन के हर पहलू को समझने और उसे सही दिशा देने के लिए मूल्यवान मार्गदर्शन भी प्रदान किया। प्रो. मौर्य ने विद्यार्थियों को यह संदेश दिया कि हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझने और उसका सम्मान करने की आवश्यकता है, ताकि हम अपने ज्ञान को जीवन में सही तरीके से लागू कर सकें। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि इस तरह के व्याख्यान विद्यार्थियों को एक नई दिशा देने के साथ उनके मानसिक और बौद्धिक विकास में भी सहायक होंगे।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य, प्रो. एम. सी. पाण्डे ने अत्यंत प्रभावशाली तरीके से की। अपने संबोधन में उन्होंने इस व्याख्यान के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह न केवल संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए, बल्कि समस्त स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के ज्ञानवर्धन में अत्यधिक सहायक साबित होगा। प्रो. पाण्डे ने कहा कि इस प्रकार के व्याख्यान विद्यार्थियों को गहरे शैक्षिक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं और उनके मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने विशेष रूप से इस समय की प्रासंगिकता पर जोर दिया, क्योंकि परीक्षा का समय निकट था, और इस विषय से संबंधित गहन ज्ञान प्राप्त करना विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी था। प्राचार्य ने इस बात पर भी बल दिया कि भारतीय ज्ञान परंपरा को समझने से विद्यार्थियों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण मदद मिलती है, जो उनके शैक्षिक जीवन को और भी सशक्त बनाता है।

कार्यक्रम के संयोजक और संस्कृत विभाग के प्रभारी, डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल ने भारतीय ज्ञान परंपरा के अद्वितीय महत्व पर गहराई से प्रकाश डाला। उन्होंने इस व्याख्यान के आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि यह न केवल विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और संस्कृत के प्राचीन वाङ्मय से जोड़ने का प्रयास है, बल्कि यह उनके ज्ञान को समृद्ध करने के साथ-साथ जीवन के गहरे पहलुओं को समझने की दिशा में भी एक कदम है। डॉ. शुक्ल ने विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति जागरूक किया और बताया कि यह परंपरा न केवल हमारे शैक्षिक जीवन को गहरा करती है, बल्कि व्यक्तिगत विकास और समाज में सार्थक योगदान देने की प्रेरणा भी प्रदान करती है। कार्यक्रम के सफल संचालन के बाद, उन्होंने सभी उपस्थित अतिथियों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर पीएनजी महाविद्यालय के कई प्रमुख शिक्षक और शिक्षिकाएं उपस्थित थे, जिनमें चीफ प्राँक्टर प्रो. एस. एस. मौर्य, डॉ. पुनीता कुशवाहा, डॉ. लोतिका अमित, डॉ. अलका, डॉ. शंकर मंडल, डॉ. दीपक खाती, डॉ. सुभाष पोखरियाल, डॉ. कृष्णा भारती, डॉ. नितिन ढोमणे, डॉ. मुरलीधर कापडी, जीतेन्द्र रावत और रोहित आदि प्रमुख थे। इस व्याख्यान का उद्देश्य विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और वैदिक वाङ्मय के महत्व से अवगत कराना था, और इस दिशा में यह आयोजन सफल साबित हुआ।
इस कार्यक्रम ने विद्यार्थियों को यह सिखाया कि भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन केवल एक शैक्षिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को सही दिशा में मार्गदर्शित करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। विद्यार्थियों ने इस व्याख्यान से न केवल भारतीय संस्कृति और संस्कृत के बारे में गहरी समझ प्राप्त की, बल्कि उन्हें अपने जीवन में इन ज्ञानों को कैसे लागू किया जाए, इसके लिए प्रेरणा भी मिली। इस आयोजन के सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद यह स्पष्ट है कि ऐसे कार्यक्रम विद्यार्थियों को उनके शैक्षिक और व्यक्तिगत जीवन में एक नई दिशा प्रदान करते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा का अध्ययन न केवल उनके अकादमिक विकास में सहायक है, बल्कि उन्हें एक बेहतर और अधिक जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में भी मार्गदर्शन करता है।