रामनगर। पाटकोट गाँव में शराब की दुकान खोलने के प्रशासनिक निर्णय के खिलाफ जबरदस्त जनआक्रोश देखने को मिला। ग्राम पंचायत पाटकोट से उठी विरोध की लहर ने पूरे इलाके में हलचल मचा दी। सुबह से ही महिलाओं, युवाओं और समाजसेवियों का हुजूम सड़क पर उतर आया और प्रशासन के फैसले के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि शांतिप्रिय गाँव में शराब की दुकान खोलना न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचाएगा, बल्कि बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता है। गाँव के बुजुर्गों का कहना था कि यह निर्णय न केवल युवा पीढ़ी को गुमराह करेगा बल्कि अपराध को भी बढ़ावा देगा, जिससे पूरे गाँव का माहौल खराब होगा।
इस आंदोलन की कमान समाजसेवी बबिता बिष्ट, नरेंद्र सिंह बिष्ट, ग्राम प्रधान मनमोहन पाठक, बीटीसी मेंबर भावना त्रिपाठी, बीजेपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता महेंद्र सिंह मेहरा, गोपाल सिंह कुर्या, पूनम रावत, अंजलि बॉस, गीता देवी, गौरव जोशी, चंपा देवी, मोहनी देवी, नीतू देवी, रेनू तिवारी, गीता काश्मीरा, पूनम काश्मीरा, बचौली देवी, लक्ष्मण सिंह लुधियाल, कमल सिंह तड़ियाल, चंद्र तिवारी, कमल नेगी, प्रियांशु तिवारी, दीपा पपने और सैकड़ों ग्रामवासियों ने संभाली। इन लोगों ने गाँव के हर कोने से लोगों को इकट्ठा किया और पूरे जोश के साथ प्रशासन के खिलाफ आवाज बुलंद की।

गाँव की महिलाओं ने मोर्चा संभालते हुए साफ शब्दों में चेतावनी दी कि किसी भी कीमत पर इस दुकान को यहाँ नहीं चलने दिया जाएगा। बबिता बिष्ट ने कहा कि यह हमारी संस्कृति पर हमला है। शराब की दुकान से हमारे बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा और हम इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह निर्णय ग्रामवासियों की सहमति के बिना लिया गया, जो पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है। महिलाओं और छात्रों ने प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा कि इस तरह के फैसले बिना ग्रामसभा की अनुमति के लागू करना ग्रामीणों के अधिकारों का हनन है।
प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए साफ कर दिया कि यदि शराब की दुकान खोलने का निर्णय वापस नहीं लिया गया तो अनिश्चितकालीन धरना दिया जाएगा। लोगों की माँग है कि भविष्य में इस तरह के फैसले लेने से पहले ग्रामसभा की अनुमति अनिवार्य की जाए। प्रदर्शनकारियों ने दो टूक कहा कि गाँव की संस्कृति, सम्मान और सुरक्षा के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उन्होंने चेतावनी दी, ष्अगर हमारी माँगें नहीं मानी गईं, तो ये चूल्हे नहीं जलेंगे, पर धरना जरूर चलेगा… और वो तब तक जारी रहेगा, जब तक फैसला वापस नहीं लिया जाता।ष् यह आंदोलन अब केवल शराब की दुकान के विरोध तक सीमित नहीं रहा, बल्कि गाँव की अस्मिता और संस्कृति की रक्षा की जंग बन चुका है।
गाँव के बुजुर्गों ने भी इस विरोध प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनका कहना था कि प्रशासन गाँव के हितों को दरकिनार कर पैसे कमाने की नीति अपना रहा है। उन्होंने कहा कि यह गाँव की शांति को भंग करने का प्रयास है और इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। युवाओं का कहना था कि वे अपने गाँव की पहचान और गौरव को किसी भी कीमत पर मिटने नहीं देंगे। यह फैसला सिर्फ एक दुकान खोलने का नहीं, बल्कि गाँव की सामाजिक और सांस्कृतिक नींव को कमजोर करने का है।
गाँव की महिलाओं ने प्रशासन को चुनौती देते हुए कहा कि यदि यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो वे सड़कों पर बैठकर अनिश्चितकालीन प्रदर्शन करेंगी। हम अपने परिवारों को संकट में डालने के लिए सरकार को कोई अवसर नहीं देंगे। हमारे गाँव के युवा और बच्चे शराब के आदी बनें, यह हम किसी भी हाल में नहीं होने देंगे। प्रदर्शन में शामिल एक बुजुर्ग महिला ने कहा कि हमने अपने गाँव को अब तक साफ-सुथरा और नशामुक्त रखा है, यह हमारी पहचान है और इसे हम बरकरार रखेंगे।
आंदोलन के दौरान पूरे गाँव में बंद जैसा माहौल बना रहा। बाजारों में सन्नाटा था और ग्रामीण केवल एक ही आवाज में नारे लगा रहे थे – ष्शराब दुकान नहीं चलेगी, नहीं चलेगी!ष् गाँव के युवा, बुजुर्ग, महिलाएँ और बच्चे एकजुट होकर प्रशासन को चेतावनी दे रहे थे कि अगर उनकी माँगें पूरी नहीं हुईं, तो वे उग्र प्रदर्शन के लिए भी तैयार रहेंगे।
इस आंदोलन ने प्रशासन को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि वे गाँव वालों की माँगों को उच्च अधिकारियों तक पहुँचाएंगे और जल्द ही इस पर विचार किया जाएगा। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि वे किसी भी तरह की देरी को बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्हें तत्काल कार्रवाई चाहिए, नहीं तो उनका आंदोलन और अधिक तीव्र होगा।
गाँववालों का कहना है कि यह केवल शराब की दुकान का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उनके गाँव की संस्कृति और परंपरा की रक्षा का सवाल है। उन्होंने कहा कि वे अपने गाँव को शराब और नशे से दूर रखना चाहते हैं और इसके लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर प्रशासन ने उनकी माँगें पूरी नहीं कीं, तो वे दिन-रात धरने पर बैठेंगे और यह आंदोलन तब तक चलेगा, जब तक फैसला वापस नहीं लिया जाता।